प्रियंका सिंह – न्याय की बेटी

सुबह की ठंडी हवा में जब शहर की गलियां धीरे-धीरे जाग रही थीं, बाजार की सड़कों पर सब्जीवालों की आवाजें गूंज रही थीं। उसी भीड़ में सड़क के किनारे एक बूढ़ा दंपत्ति — रमेश और अनीता — बैठकर सब्जियां बेच रहे थे। उनके कपड़े सादे थे, चेहरों पर मेहनत की लकीरें साफ झलक रही थीं, लेकिन आंखों में ईमानदारी और सुकून था।

रमेश की बेटी प्रियंका सिंह, भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट थी। वह दूर किसी सैन्य शिविर में देश की सेवा कर रही थी। उसे यह नहीं पता था कि उसी दिन, जब वह अपने देश की रक्षा के लिए गर्व से वर्दी पहने खड़ी थी, उसके माता-पिता अपने ही देश में अन्याय का सामना करने वाले थे।


🚨 बाजार का अपमान

रमेश और अनीता सब्जियां बेचते हुए मुस्कुरा रहे थे कि तभी एक तेज़ मोटरसाइकिल सड़क किनारे आकर रुकी। उस पर बैठा था थाने का इंस्पेक्टर रविंद्रनाथ, जिसकी आंखों में सत्ता का नशा और वर्दी का घमंड था। उसने बिना कुछ पूछे रमेश की पीठ पर लाठी दे मारी। अनीता चीख पड़ी।

“यह सड़क तुम्हारे बाप की है क्या?” वह चिल्लाया। “जहां मन किया दुकान लगा दी! ट्रैफिक जाम कर दिया है। उठाओ ये सब!”

इतना कहकर उसने रमेश की चटाई को लात मारकर पलट दिया। सारी सब्जियां सड़क पर बिखर गईं। कुछ गाड़ियों के नीचे आकर कुचल गईं। अनीता रोते हुए हाथ जोड़ने लगी —
“साहब, हमसे गलती हो गई। अगली बार नहीं बैठेंगे यहां। बस सब्जियां मत फेंकिए, हमारी रोज़ी रोटी है।”

रमेश भी गिड़गिड़ा उठा —
“साहब, हम गरीब हैं, पर चोर नहीं। हमें माफ कर दीजिए।”

पर इंस्पेक्टर का दिल पत्थर बन चुका था। उसने और गालियां दीं, एक और लाठी चलाई और बोला — “जल्दी सब हटाओ यहां से, नहीं तो सब फेंक दूंगा!”

लोगों की भीड़ जमा हो गई, पर कोई आगे नहीं आया। हर कोई सिर्फ तमाशा देखता रहा।
सबके मोबाइल हाथ में थे, पर किसी ने मदद के लिए एक कदम नहीं बढ़ाया।


📹 डॉक्टर अंशिका की गवाही

भीड़ में एक लड़की खड़ी थी — डॉक्टर अंशिका, प्रियंका की बचपन की सहेली।
उसने सारी घटना देखी। पहले तो वह भी हतप्रभ रह गई, फिर उसे समझ आया कि इस घटना का सबूत बनाना ज़रूरी है। उसने अपना मोबाइल निकाला और पूरी घटना का वीडियो रिकॉर्ड कर लिया।

वीडियो में साफ दिख रहा था — इंस्पेक्टर बिना वजह लाठी चला रहा है, गालियां दे रहा है, और दो बुजुर्ग गरीब लोगों की सब्जियां सड़क पर फेंक रहा है।

अंशिका के भीतर गुस्से की आग जल उठी। उसने उसी वक्त तय किया कि वह यह वीडियो प्रियंका को भेजेगी।


💔 प्रियंका का गुस्सा और दर्द

शाम तक वह वीडियो प्रियंका के मोबाइल पर पहुंच गया।
प्रियंका ने जैसे ही देखा, उसका खून खौल उठा।
उसकी आंखों के सामने बचपन की यादें घूम गईं — कैसे उसके माता-पिता ने गरीबी में मेहनत करके उसे पढ़ाया, खिलाया, और देश की सेवा करने के लायक बनाया।

अब वही माता-पिता सड़क पर बेइज्जत किए गए थे।
वह फूट-फूट कर रो पड़ी। उसकी आंखों में सिर्फ एक भाव था — न्याय

“मैं इसे ऐसे नहीं छोड़ूंगी,” उसने खुद से कहा।

अगले ही दिन उसने एक हफ्ते की छुट्टी ली, वर्दी उतारी, साधारण कपड़े पहने और बस से अपने शहर लौट आई।


🏚️ घर की दहलीज़ पर दर्द

जब प्रियंका घर पहुंची, दरवाज़ा खोला तो सामने उसका पिता रमेश खड़ा था।
थका हुआ, टूटा हुआ, पर आंखों में वही स्नेह।
प्रियंका ने कुछ बोले बिना पिता को गले लगाया। दोनों की आंखों से आंसू बहने लगे।

अनीता भीतर से बाहर आई, बेटी को देखकर रो पड़ी।
प्रियंका बोली —

“मां, पापा, चिंता मत कीजिए। जिसने आपके साथ यह किया है, उसे मैं कानून के कटघरे में खड़ा करूंगी।”

अनीता ने डरते हुए कहा, “बेटा, वह इंस्पेक्टर है, उसी थाने में जाना होगा। मत उलझो उससे।”

प्रियंका ने दृढ़ स्वर में कहा,

“मां, अगर वर्दी में बैठा इंसान ही गरीब को मारने लगे, तो हम किससे न्याय मांगें? मैं भी वर्दी पहनती हूं — फर्क बस इतना है कि मेरी वर्दी देश की रक्षा करती है, और उसकी वर्दी लोगों को डराती है। अब फर्क दिखाऊंगी।”


⚖️ थाने का सामना

अगली सुबह प्रियंका उसी थाने पहुंची, जहां इंस्पेक्टर रविंद्रनाथ अपनी कुर्सी पर बैठा था।
वह सिगरेट पी रहा था, और अपने साथियों के साथ हंस रहा था।

प्रियंका ने शांत स्वर में कहा, “सर, मुझे एक रिपोर्ट दर्ज करवानी है।”
इंस्पेक्टर हंसा — “रिपोर्ट? ₹500 दो, तभी रिपोर्ट लिखी जाएगी।”

प्रियंका ने सख्त आवाज़ में कहा,

“रिपोर्ट लिखवाने के पैसे नहीं लगते, इंस्पेक्टर। यह आपका फर्ज़ है, दया नहीं।”

रविंद्रनाथ का चेहरा तमतमा गया। वह उठा, और बोला —
“बहुत बोलती है तू। निकाली जाऊंगी यहां से।”
इतना कहकर उसने डंडा उठाया और प्रियंका की कमर पर दे मारा।

प्रियंका ने आंखों में क्रोध भरकर कहा —

“बस! अब बहुत हो गया। तुमने मेरे माता-पिता पर हाथ उठाया, और अब मुझ पर? तुम्हें लगता है कि यह वर्दी तुम्हें कानून से ऊपर बना देती है?”

वह अपने बैग से आर्मी आईडी कार्ड निकालती है —

“मैं लेफ्टिनेंट प्रियंका सिंह, भारतीय सेना।”

यह सुनते ही इंस्पेक्टर के हाथ कांपने लगे। उसके चेहरे से सारा रंग उड़ गया।
वह गिड़गिड़ाने लगा — “मैडम, माफ कर दीजिए, हमें पता नहीं था।”

प्रियंका ने ठंडे स्वर में कहा,

“अब माफी नहीं, सजा मिलेगी।”


🕵️‍♀️ आईपीएस कीर्ति सिंह की एंट्री

प्रियंका सीधे आईपीएस अधिकारी कीर्ति सिंह के कार्यालय पहुंची।
वहां उसने पूरी वीडियो और सारी घटना विस्तार से बताई।

कीर्ति सिंह ने वीडियो देखा, चेहरा सख्त हो गया।
उन्होंने कहा,

“प्रियंका, यह सिर्फ आपके माता-पिता का मामला नहीं है। यह पूरे विभाग की प्रतिष्ठा का सवाल है। जिसने वर्दी को शर्मसार किया है, उसे अब उसी वर्दी में हथकड़ी पहननी होगी।”

उन्होंने तुरंत जांच शुरू कर दी।
वीडियो, गवाह, बयान — सब इकट्ठा किया गया।
रात भर फाइल तैयार की गई और अगली सुबह डीएम कार्यालय में पूरी रिपोर्ट पहुंचाई गई।


📰 न्याय का दिन

अगले दिन सुबह 10 बजे प्रेस मीटिंग बुलाई गई।
हॉल में डीएम साहब, आईपीएस कीर्ति सिंह, वरिष्ठ अफसर और मीडिया मौजूद थे।
प्रियंका अपने माता-पिता के साथ सामने बैठी थी।

डीएम ने गंभीर आवाज़ में कहा,

“जांच से यह सिद्ध हुआ है कि इंस्पेक्टर रविंद्रनाथ ने दो निर्दोष बुजुर्गों पर अत्याचार किया, रिश्वत मांगी और कानून का उल्लंघन किया।”

कीर्ति सिंह ने खड़े होकर कहा,

“सर, यह घटना न केवल अमानवीय है, बल्कि पुलिस विभाग की छवि पर कलंक है। ऐसे व्यक्ति को वर्दी में रहने का कोई अधिकार नहीं।”

हॉल में सन्नाटा छा गया।
डीएम ने सख्त स्वर में आदेश दिया —

“इंस्पेक्टर रविंद्रनाथ को तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाता है। उसके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया जाएगा।”

दो पुलिसकर्मी अंदर आए।
रविंद्रनाथ का सिर झुका हुआ था।
उसकी आंखों से भय टपक रहा था।
उसके हाथों में हथकड़ी डाली गई।

प्रियंका की आंखों में अब आंसू नहीं थे — सुकून था
अनीता ने बेटी का हाथ थामा और फुसफुसाई —

“बेटा, आज हमारी इज्जत लौट आई।”

प्रियंका ने कहा,

“मां, यह सजा सिर्फ हमारे लिए नहीं, हर उस गरीब के लिए है जो चुप रह जाता है।”

डीएम ने मुस्कराते हुए कहा,

“देश को तुम जैसी बेटियों पर गर्व है, प्रियंका। अगर हर नागरिक ऐसा साहस दिखाए, तो कोई भी भ्रष्ट इंसान सिर नहीं उठा पाएगा।”


🌤️ अंतिम दृश्य – न्याय की जीत

इंस्पेक्टर को पुलिस वैन में बैठाकर जेल भेज दिया गया।
प्रेस के कैमरों ने उस पल को कैद कर लिया।
समाचार चैनलों पर सुर्खियां थीं —
“आर्मी अफसर ने दिलाया अपने माता-पिता को न्याय, भ्रष्ट इंस्पेक्टर सस्पेंड।”

प्रियंका ने डीएम और कीर्ति सिंह को सैल्यूट किया और कहा,

“आपने सिर्फ मेरे मां-बाप का नहीं, वर्दी की इज्जत भी बचाई है।”

कीर्ति सिंह ने उत्तर दिया —

“हम सब एक ही वर्दी के सिपाही हैं, प्रियंका। फर्क बस काम करने के तरीके का है।”

प्रियंका बाहर निकली, मां-बाप के साथ आसमान की ओर देखा।
हल्की हवा बह रही थी। सूरज की किरणें उसके चेहरे पर पड़ रही थीं।
उसने धीरे से कहा —

“अब कोई भी तुम्हारे साथ ऐसा नहीं करेगा, मां-पापा… जब तक मैं जिंदा हूं।”


🕊️ कहानी का संदेश

प्रियंका की यह कहानी केवल एक बेटी की बहादुरी की नहीं,
बल्कि उस हर आम नागरिक की है जो अन्याय के खिलाफ खड़ा होना जानता है।

यह सिखाती है —

“अगर हम अपने हक के लिए आवाज नहीं उठाएंगे,
तो अन्याय करने वालों की आवाज हमेशा ऊंची रहेगी।”

न्याय देर से मिलता है, पर मिलता ज़रूर है।
और जब सच्चाई वर्दी पहनकर लौटती है —
तो हर अत्याचारी का सिर झुक जाता है।


🌺 समाप्त।