डॉक्टर ने गरीब का किया मुफ्त इलाज, 5 साल बाद जब मरीज मंत्री बनकर लौटा तो अस्पताल में सब कुछ बदल दिया

भाग 1: डॉक्टर आनंद की दुनिया – सेवा धर्म बनाम मुनाफाखोरी

लखनऊ का सबसे बड़ा और महंगा अस्पताल, “सिटी हार्ट एंड मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल”, जहाँ अत्याधुनिक मशीनें हैं, नामी डॉक्टर हैं, लेकिन इससे बढ़कर यहाँ के “बड़े-बड़े बिल” मशहूर थे। इस अस्पताल का चेयरमैन था श्री आर. के. मल्होत्रा – कड़क, व्यवहारिक, व्यापार का पुजारी। उसके लिए अस्पताल हर शुद्ध भाव के खिलाफ, एक धंधा था। वहाँ हर मरीज—सिर्फ एक ‘ग्राहक’। उस परदों के पीछे अपनी अलग ही दुनिया बुन रहे थे खुदा की अपनी दुनिया का नायक—डॉक्टर आनंद अस्थाना।

डॉ. आनंद अस्पताल की कार्डियोलॉजी विभाग के हेड, देश के टॉप हार्ट सर्जनों में। उनकी उंगलियों में जादू और दिल में करुणा भरी थी। वह अपने पेशे को धर्म समझते थे, अपने आदर्शवादी पिता की राह चल रहे थे, जिन्होंने अपने जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य गरीबों की सेवा बनाया। लेकिन उनके ये उसूल मल्होत्रा के मुनाफाखोर सिस्टम से रोज टकराते—जहाँ सिर्फ एक ही नियम था: “नो मनी, नो ट्रीटमेंट!”

भाग 2: लड़ाई – मरीज, पैसा और इंसानियत

एक दिन इमरजेंसी में एक नौजवान मजदूर अजय अपनी मां को, जो हार्ट अटैक से तड़प रही थी, लेकर आता है। मां की तुरंत बाईपास सर्जरी जरूरी थी, पर अस्पताल ने 5 लाख रुपये जमा करने के बिना पेशेंट की फाइल आगे न बढ़ाने का फरमान सुना दिया। अजय का सबकुछ सिमटा था उसकी बूढ़ी मां में, और अब उसके सामने पूरा सिस्टम, पैसा और बेरूखी दीवार बनकर खड़ा था।

डॉक्टर आनंद जब दौरों पर पहुंचे, अजय की मां की स्थिति, बेटे की बेबसी देख न रह सके। वे भागकर मल्होत्रा के ऑफिस पहुंचे—जी जान लगा दी, लेकिन मल्होत्रा ने बेहिसाब बेरुखी से ऑपरेशन की इजाजत न दी। “अगर अस्पताल पैसे नहीं छोड़ सकता तो मेरी तनख्वाह से काट लीजिए…पर मैं यह ऑपरेशन करूंगा,” आनंद बोले। मल्होत्रा हैरान—इतना जुनून, ऐसी दीवानगी! अनमने दिल से इजाजत दी—”कुछ गड़बड़ हुई तो जिम्मेदारी तुम्हारी…”

डॉक्टर आनंद ने 6 घंटे तक ऑपरेशन कर अजय की मां की जान बचा ली। अजय फूट-फूट कर डॉक्टर आनंद के पैरों में गिर पड़ा—”आप मेरे लिए भगवान हैं…” आनंद ने सिर्फ इतना कहा—”मुझे गुरु दक्षिणा तब देना, जब तुम किसी और लाचार की मदद कर सको।”

भाग 3: मुश्किलों का दौर, उसूलों पर डटे रहना

पर इंसानियत की राह कांटों से भरी। ऑपरेशन के बाद डॉ. आनंद का अस्पताल में जीवन और कठिन हो गया। मल्होत्रा उनसे चिढ़ने लगा, उन्हें बदनाम किया, उनकी तरक्की रोक दी, हर कदम पर दर्द दिया। फिर भी आनंद डटे रहे, चुपचाप—हर रोज नए मरीज की जान बचाते, उसकी हथेली थाम मुस्कुराते।

5 साल बीत गए—आनंद ने जन—सेवा को कभी छोड़ा नहीं, न थके, न झुके।

भाग 4: भाग्य की करामात – वही अजय, आज के ‘स्वास्थ्य मंत्री’

समय का चक्र घूमता है। यूपी की राजनीति में बड़ा बदलाव, एक गरीब, ज़मीनी, ईमानदार नेता चुनकर आता है—नाम: अजय। वही अजय जिसने कभी अपनी मां के लिए डॉक्टर आनंद के चरणों में सिर झुकाया था, अब प्रदेश का सबसे ताकतवर स्वास्थ्य मंत्री बन गया।

अजय ने मंत्री पद की ज़िम्मेदारी लेते ही नज़र दौड़ाई—समाज को और भी बेहतर करने की। सरकारी अस्पतालों के हाल जानने का मिशन शुरू किया।

भाग 5: एक यादगार क्षण – अतीत से सीधा सामना

बिना सूचना के एक दिन अजय का काफिला उसी सिटी हार्ट हॉस्पिटल आ पहुंचा। अफरातफरी मच गई। मल्होत्रा हाथ में गुलदस्ता लिए, कांपते, मंत्री के स्वागत में हाज़िर।

मंत्री अजय बोले—”मुझे आपके सबसे हुनरमंद हार्ट सर्जन, डॉक्टर आनंद से मिलना है।” मल्होत्रा के चेहरे पर हवाइयां उड़ गईं। डॉक्टर आनंद बुलाए गए; समझ नहीं पाए कि मंत्री साहब क्यों उनसे मिलना चाहते हैं। जब अजय ने उन्हें देखा—खड़े हो गए, भीगी आंखों से बोले, “पहचाना मुझे?”

“मैं अजय… जिसकी मां की आपने पांच साल पहले ऑपरेशन कर जान बचाई थी…”

डॉ. आनंद की आंखों में जैसे पूरा भूतकाल घूम गया। अजय ने वही शब्द दोहराए—“आपने उस दिन मुझसे वादा लिया था कि आगे चलकर मैं किसी जरूरतमंद की सेवा करूँ…मैंने उसी पल को मकसद बना लिया…आज मैं जो कुछ भी हूं आपकी वजह से हूं।”

भाग 6: इंसाफ, बदलाव और धमाकेदार फैसला

अब बारी थी इतिहास बदलने की।

अजय ने सबके सामने कहा—”मिस्टर मल्होत्रा, आपको याद है, आपने मेरी मां का इलाज करने से मना कर दिया था? कहा था, ये कोई धर्मशाला नहीं!” “आज से यह अस्पताल अमीर-गरीब सब का होगा। महीने का एक बड़ा कोटा सिर्फ गरीब, जरूरतमंद मरीजों के मुफ्त इलाज के लिए होगा—सरकारी स्कीम के तहत।”

और यहीं नहीं—वे बोले: “डॉक्टर आनंद अस्थाना के नाम पर पूरी राज्य-सरकार की नई योजना—‘डॉक्टर आनंद स्वास्थ्य सेवा योजना’—शुरू होगी। हर जिले में सुपर-स्पेशलिटी सरकारी अस्पताल, जिसमें इलाज से कोई भी गरीब वंचित नहीं रहेगा—और इस पूरे प्रोग्राम के चेयरमैन खुद डॉक्टर आनंद होंगें।”

डॉक्टर आनंद स्तब्ध—पूरा अस्पताल ताली बजा उठा, मल्होत्रा का घमंड तिनके-सा गिरा पड़ा।

“डॉक्टर साहब, मेरी तरफ से आपको असली गुरु-दक्षिणा—अब आप जैसे हज़ारों-लाखों की जान बचाएंगे…मुझे बस इतनी खुशी दीजिए।”

भाग 7: सेवा के धर्म की असली जीत

डॉक्टर आनंद की आंखों में आंसू थे—उनकी इंसानियत, उनका सेवा-धर्म, उनकी तपस्या रंग लाई थी। उन्हें अब सिर्फ पद, ताकत नहीं मिली, बल्कि लाखों लोगों की दुआओं का अधिकार मिला। अजय ने उनका हाथ थाम लिया—‘आज मैं आपका कर्ज चुकाता हूं…’

डॉक्टर आनंद के आदर्श अब संस्था की, समाज की, पूरे प्रदेश की ताकत बन गए। अस्पताल का सिस्टम बदल गया—अब वहां सिर्फ दौलत नहीं, इंसानियत का बोलबाला था।

सीख:

सेवा का धर्म, मुनाफे से कहीं बड़ा है।
सच्ची नेकी का फल देर से मिले, लेकिन अद्भुत रूप से जरूर मिलता है।
एक नेक इंसान, एक ईमानदार डॉक्टर, या कोई भी समाजसेवी—सिस्टम से अपनी लड़ाई अकेले शुरू करता है, लेकिन अंत में पूरी कायनात उसकी पीठ पर खड़ी दिखती है।
जिसने तुम्हारे लिए अच्छा किया, उसका मूल्य शब्द या पैसे से नहीं, नींव बदलने वाले बड़े कायमी बदलाव से ही चुकाया जा सकता है।

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