रेलवे स्टेशन पर पुनर्मिलन – आरव, अंजलि और उनकी बेटी की कहानी
भीड़ से भरा हुआ रेलवे स्टेशन था। प्लेटफार्म पर लोग भाग रहे थे, अनाउंसमेंट्स की आवाजें गूंज रही थीं, चाय वालों की पुकारें सुनाई दे रही थीं। इसी हलचल के बीच एक शख्स तेज कदमों से चलता हुआ नजर आया – उसका नाम था आरव मेहरा। 45 साल का सफल बिजनेसमैन, काले सूट, चमचमाते जूते और हाथ में महंगा ब्रीफ केस। उसके कान में ब्लूटूथ था और वह फोन पर किसी को डांट रहा था –
“डील टालो मत। क्लाइंट दुबई से आ रहा है। सब रेडी होना चाहिए। मैं अभी मुंबई पहुंच रहा हूं। ठीक है।”
फोन कट करता है और तेजी से फुटओवर ब्रिज की तरफ बढ़ता है। तभी उसकी नजर प्लेटफार्म नंबर छह के कोने में जाती है। भीड़ में एक मैली-कुचैली साड़ी पहने औरत जमीन पर बैठी थी। उसके पास एक छोटी सी लड़की बैठी थी, जो सड़क पर भीख मांगने वालों जैसी हालत में थी। उनके सामने एक टिन का कटोरा रखा था जिसमें कुछ सिक्के पड़े थे।
आरव के कदम रुक गए। उसका चेहरा जर्द पड़ गया, आंखें फैल गईं। वह धीरे से बुदबुदाया –
“नहीं… यह तो अंजलि… और यह लड़की…”
उसकी सांसे रुक सी गईं। सामने बैठी औरत उसकी पुरानी पत्नी अंजलि थी और वह लड़की उसकी ही बेटी थी, जिससे वह दस साल पहले अलग हो गया था।
भीड़ चलती रही, ट्रेनें आती-जाती रहीं, लेकिन आरव एक जगह जड़ हो गया।
फ्लैशबैक शुरू होता है –
दस साल पहले आरव अपने घर में गुस्से से भरा बैठा था। किसी ने उसे एक झूठी रिपोर्ट भेजी थी कि अंजलि का किसी और मर्द से रिश्ता है। बिना कुछ पूछे, बिना सुने, उसने अंजलि को घर से निकाल दिया। उस समय अंजलि मां बनने वाली थी।
आरव फ्लैशबैक में चिल्लाता है –
“अब मेरे सामने मत आना। मेरे लिए तुम मर चुकी हो।”
अंजलि रोती रही, सफाई देती रही –
“मैंने कुछ नहीं किया। आरव, प्लीज मेरी बात सुनो…”
लेकिन आरव ने एक बार भी उसकी आंखों में नहीं देखा।
वर्तमान में लौटते हैं। अंजलि ने नजरें झुका रखी थीं। वो जान गई थी कि सामने खड़ा शख्स आरव ही है। लेकिन न तो उसने कुछ कहा, न कोई शिकायत की। बस चुपचाप सामने देखती रही।
बेटी को कुछ समझ नहीं आया। उसने मां से पूछा –
“मां, यह अंकल कौन है? ऐसे क्यों देख रहे हैं?”
अंजलि ने बेटी को गले से लगाया और कुछ नहीं कहा।
आरव के हाथ से ब्रीफ केस गिर गया। वह घुटनों पर बैठ गया। उसके चेहरे से पछतावे के आंसू बहने लगे।
कांपती आवाज में बोला –
“अंजलि, तुमने बताया क्यों नहीं? मैंने तुम्हें कहां-कहां तलाशा? और यह हालत…”
अंजलि शांत स्वर में बोली –
“मैंने बताया था, आरव, पर तुमने कभी सुना नहीं।”
यह सुनकर आरव की आत्मा कांप उठी।
स्टेशन पर कुछ लोग अब यह नजारा देख रहे थे। मोबाइल कैमरे उठने लगे थे। लेकिन अंजलि अभी भी चुप थी।
आरव अपनी जैकेट उतारता है, अंजलि के कंधों पर डालता है। फिर अपनी बेटी की ओर देखता है। आंखों में आंसू हैं –
“बेटा, मैं तुम्हारा पिता हूं।”
बेटी की आंखें फटी रह गईं। कुछ समझ नहीं आया, बस मां की ओर देखती रही।
आरव दोनों को गले लगा लेता है सबके सामने।
स्टेशन पर क्राउड अब्सोल्यूट साइलेंस।
अंजलि की आंखें भी भर आईं। लेकिन कोई शिकायत नहीं, कोई गुस्सा नहीं। सिर्फ एक सर्द मुस्कान।
रेलवे स्टेशन पर अब भीड़ रुक गई थी। हर कोई उस दृश्य को देख रहा था – एक अमीर बिजनेसमैन अपने घुटनों पर बैठकर एक भिखारिन और उसकी बेटी को गले लगा रहा था।
आरव की आंखें लाल थीं। बीते दस सालों का हर एक पल उसके दिल में चुभ रहा था।
आरव टूटती आवाज में बोला –
“मुझे माफ कर दो, अंजलि। मैंने तुम्हें कभी समझने की कोशिश नहीं की। मैंने कभी तुम्हारी बात नहीं सुनी।”
अंजलि बस मौन रही। उसके चेहरे पर वो दर्द था जो चुपचाप सहा गया था, सालों तक।
भीड़ के बीच से एक युवक बोल पड़ा –
“सर, क्या आप इन्हें जानते हैं?”
आरव ने सिर हिलाया –
“यह मेरी पत्नी थी और यह मेरी बेटी है। मैंने इन्हें खो दिया, सिर्फ अपने घमंड और शक के कारण।”
भीड़ की आंखें भर आईं। स्टेशन पर मोबाइल कैमरे अब लाइव हो चुके थे। सोशल मीडिया पर यह दृश्य वायरल हो रहा था।
एक छोटा फ्लैशबैक –
अंजलि को घर से निकालने के बाद आरव ने अपना पूरा ध्यान बिजनेस में लगा दिया। पैसे कमाए, ऑफिस खोला, गाड़ियों की लाइन लगी। लेकिन एक कोना उसके दिल में हमेशा खाली रहा। जब भी अकेला होता, उसकी आंखों में वही चेहरा घूमता – अंजलि का चेहरा, उसकी मासूम बेटी। कई बार उसे अपनी गलती पर शक हुआ, पर उसने कभी हिम्मत नहीं जुटाई कि सच्चाई जाने। और अब सच उसके सामने था – एक भिखारिन की शक्ल में।
वर्तमान में लौटते हैं।
अंजलि धीरे से बोलती है –
“मैंने कभी सोचा नहीं था कि हमारी मुलाकात इस तरह होगी। लेकिन भगवान ने शायद अब सही वक्त चुना।”
आरव उठता है। अपनी जैकेट अंजलि के कंधों पर फिर से ठीक करता है। फिर बेटी के सामने घुटनों पर बैठता है –
“बेटा, मुझे माफ कर दो। मैंने तुम्हें पहचानने में तेरह साल लगा दिए। लेकिन अब मैं हर एक दिन तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूं। क्या तुम मुझे पापा कह सकती हो?”
लड़की पहले घबराई। फिर धीरे से पूछती है –
“क्या आप मुझे स्कूल भेजेंगे? मां बहुत दिनों से कहती है कि मैं पढ़ सकती हूं…”
आरव की आंखें फिर से भर आईं –
“तुम दुनिया के सबसे अच्छे स्कूल में जाओगी और मां तुम्हें हर सुबह छोड़ने जाएंगी। मेरी गाड़ी में, मेरी सुरक्षा में और मेरी ममता में।”
भीड़ अब तालियां बजा रही थी।
स्टेशन से बाहर आरव ने अंजलि और बेटी को अपनी गाड़ी में बिठाया। स्टेशन के बाहर प्रेस जमा हो चुकी थी। माइक, कैमरे और चैनल्स सब उनके सामने थे।
एक रिपोर्टर पूछता है –
“सर, यह सब अचानक कैसे?”
आरव माइक पकड़ कर बोला –
“मैंने आज एक गलती नहीं, एक पाप देखा जो मैंने खुद किया था। मैंने अपनी पत्नी पर बिना सुने शक किया और अपनी बेटी से उसका बचपन छीन लिया। अब मैं चाहता हूं कि यह गलती कोई और न दोहराए।”
रिपोर्टर – “तो आप क्या करने जा रहे हैं सर?”
आरव – “मैं एक फाउंडेशन लॉन्च कर रहा हूं – अंजलि फाउंडेशन, जो उन महिलाओं और बच्चों की मदद करेगा जिन्हें समाज ने बेवजह ठुकराया है। और इस फाउंडेशन की पहली चेयरपर्सन मेरी पत्नी अंजलि होंगी।”
अंजलि की आंखें भर आईं। पहली बार वह मुस्कुराई।
सालों बाद स्टेशन के बाहर बोर्ड लगा –
**अंजलि फाउंडेशन फॉर अबेंडंड वुमेन एंड चिल्ड्रन**
छह महीने बाद, दिल्ली के एक प्रतिष्ठित इंटरनेशनल स्कूल में एक छोटी सी बच्ची यूनिफार्म पहने बैग टांगे स्कूल की ओर बढ़ रही थी। उसके साथ एक महिला चल रही थी – साड़ी में, सिर ऊंचा, आंखों में आत्मविश्वास। वही अंजलि।
गेट पर खड़े गार्ड ने दरवाजा खोला –
“नमस्ते मैडम। छोटी मैडम को लेकर आ रही हैं आज भी?”
अंजलि हंसते हुए –
“हां भैया, जब तक बेटी को स्कूल छोड़ने का सुख है, क्यों न लिया जाए।”
बेटी मुड़ती है और अंजलि को गले लगाकर कहती है –
“मां, मैं आज क्लास में सबसे आगे बैठूंगी।”
अंजलि मुस्कुराती है –
“तेरे पापा ने जो तेरे लिए लाइब्रेरी बनवाई है स्कूल में, उसमें भी सबसे पहले तू ही जाएगी।”
आरव ऑफिस में, अंजलि फाउंडेशन के नए ऑफिस में बैठा है। दीवारों पर पोस्टर हैं –
**हर छोड़ी हुई औरत की कहानी फिर से लिखनी है।**
हमारे समाज का चेहरा तभी बदलेगा जब हम आंखों से नहीं, दिल से देखेंगे।
वहां कुछ महिलाएं बैठी हैं – झिझकी हुई, टूटी हुई, लेकिन उनकी आंखों में उम्मीद है।
आरव उन सभी को संबोधित करता है –
“आप सबका यहां स्वागत है। यह संस्था किसी भी औरत को चैरिटी नहीं देती, यह हक देती है, पहचान देती है और अपने पैरों पर खड़ा होने का आत्मविश्वास देती है।”
तालियां बजती हैं।
अंजलि दरवाजे पर खड़ी है, मुस्कुराती हुई।
अंजलि धीरे से बोलती है –
“पहले जो समाज सिर्फ मुझ पर तरस खाता था, अब वही समाज मेरे साथ कंधे से कंधा मिलाकर बदलाव ला रहा है।”
बेटी का स्कूल कार्यक्रम –
स्टेज पर बच्ची खड़ी है। पहली बार मंच से माइक पकड़कर कहती है –
“मैं एक ऐसी मां की बेटी हूं जो कभी हारी नहीं, और ऐसे पापा की बेटी जिन्होंने गलती मानी और माफी मांगने में शर्म नहीं की।”
पूरा हॉल तालियों से गूंज उठता है।
स्टेज के नीचे बैठे अंजलि और आरव की आंखों से आंसू बह रहे हैं – लेकिन वह आंसू अब कमजोरी के नहीं, गर्व के थे।
रेलवे स्टेशन – वही जगह जहां पहली बार आरव ने अंजलि और बेटी को देखा था। अब वहां एक नया बोर्ड लगा है –
**अंजलि सेवा केंद्र – महिला पुनर्वास केंद्र**
जहां हर दिन दर्जनों महिलाएं आती हैं जो या तो छोड़ दी गई थीं या खुद को खो चुकी थीं।
आरव वहां एक महिला को जॉब लेटर सौंप रहा है –
“आपके अंदर वह ताकत है जिसे बस पहचानने की देर थी।”
महिला की आंखों में चमक आ जाती है। पीछे बैठी कुछ और महिलाएं तालियां बजाती हैं।
अंजलि मुस्कुरा कर कहती है –
“जिंदगी ने जो अधूरा छोड़ा था, अब वह पूरा हो रहा है।”
आरव चुपचाप उसकी ओर देखता है –
“तुम्हारी चुप्पी ने मुझे तोड़ दिया था, लेकिन अब तुम्हारी आवाज हर ओर गूंज रही है और मैं बस उसका हिस्सा बनकर गर्व महसूस कर रहा हूं।”
अंजलि धीरे से उसका हाथ थामती है –
“कुछ पुनर्मिलन देर से होते हैं, लेकिन जब होते हैं तो इतिहास बदल देते हैं।”
**समाप्त**
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