राजेश्वर सिंघानिया: अतीत का वारिस
यह कहानी है श्रीमती गायत्री देवी की, जो अपने समय के सबसे बड़े उद्योगपति राजेश्वर सिंघानिया की इकलौती वारिस और पत्नी थीं। राजेश्वर की मृत्यु को एक साल हो चुका था, और गायत्री देवी शहर के सबसे आलीशान बंगले “शांति निवास” में अपनी इकलौती बेटी आस्था और अपने वफादार लीगल एडवाइजर अधिवक्ता मेहता के साथ रहती थीं। सिंघानिया इंडस्ट्रीज का विशाल साम्राज्य उनके कंधों पर था, लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा चिंता थी उनके पति की वसीयत में छिपे एक अजनबी वारिस की।
राजेश्वर की वसीयत में साफ लिखा था कि उनका एक और बेटा है, जिसे उन्होंने कभी दुनिया के सामने नहीं लाया। यह बात गायत्री देवी के लिए बेहद तनावपूर्ण थी। सुबह का सन्नाटा और एक साया शांति निवास में सुबह के ठीक 10:00 बजे थे। लॉन में बैठी गायत्री देवी रेशम की महंगी साड़ी पहने अखबार में अपनी कंपनी की बढ़ती सफलता की खबरें पढ़ रही थीं। लेकिन उनके चेहरे पर एक अजीब सी बेचैनी थी।
भाग 2: आस्था का सवाल
आस्था, जो लंदन से बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई करके लौटी थी, अपनी मां के पास आकर बैठी। “मां, आप क्यों चिंतित हैं? सिंघानिया इंडस्ट्रीज दुनिया भर में छाई हुई है। सब कुछ परफेक्ट है।” गायत्री देवी ने एक गहरी सांस लेते हुए कहा, “परफेक्ट नहीं है, बेटा। आज उस वसीयत को खोले जाने का अंतिम दिन है। और मुझे अभी तक उस अजनबी के बारे में कोई खबर नहीं है।”
आस्था का चेहरा फीका पड़ गया। राजेश्वर सिंघानिया की वसीयत एक साल से एक तिजोरी में बंद थी, जिसमें यह शर्त थी कि अगर उनके दूसरे वारिस की पहचान एक साल के अंदर सामने नहीं आई, तो सारी संपत्ति चैरिटी को चली जाएगी। “मां, मुझे नहीं लगता कि कोई दूसरा वारिस है। यह पापा की कोई पुरानी शरारत होगी। शायद वह चाहते थे कि हम इस एक साल में अपना काम और लगन से करें।”
भाग 3: विजय का आगमन
ठीक उसी क्षण मुख्य द्वार पर एक पुरानी धूल भरी मोटरसाइकिल की आवाज आई। घर के गार्ड ने दरवाजा खोला। बाहर खड़ा था एक साधारण सा नौजवान, जिसकी आंखों में एक अजीब सी चमक थी। उसके कपड़े साधारण थे और उसके हाथ में एक पुराना मुड़ा हुआ लिफाफा था। उसका नाम था विजय। गार्ड ने विजय को वेटिंग एरिया में बैठाया, जो कि बंगले के मुख्य हॉल से थोड़ा दूर था।
विजय नर्वस था, लेकिन उसके चेहरे पर आत्मविश्वास झलक रहा था। थोड़ी देर बाद अधिवक्ता मेहता अपने काले सूट और तीखी नजरों के साथ वेटिंग एरिया में आए। मेहता सिंघानिया परिवार के वफादार थे, लेकिन उनका असली मकसद हमेशा सिंघानिया इंडस्ट्रीज पर नियंत्रण पाना था। उन्होंने विजय को सिर से पांव तक देखा और उनके चेहरे पर घृणा का भाव आ गया।
भाग 4: विजय का दावा
“क्या काम है?” मेहता ने पूछा। “देखो, यह कोई चैरिटी हाउस नहीं है। जल्दी बताओ।” विजय ने कांपते हाथों से मोड़ा हुआ लिफाफा मेहता की ओर बढ़ाया। “सर, मेरा नाम विजय है। मैं राजेश्वर सिंघानिया का बेटा हूं और यह मेरे पास सबूत है।” मेहता ने लिफाफा लिया और उसे खोले बिना ही ठहाका लगाया। “क्या मजाक है? हर गली का भिखारी राजेश्वर सिंघानिया का बेटा बनने आ जाता है। तुम्हारा दावा सरासर झूठ है। निकल जाओ यहां से, नहीं तो पुलिस को बुलाऊंगा।”
भाग 5: गायत्री देवी का संज्ञान
हॉल में बैठी गायत्री देवी और आस्था ने यह शोर सुना। आस्था को गुस्सा आया। “यह कौन है? कितनी हिम्मत से बोल रहा है?” लेकिन गायत्री देवी का दिल जोर से धड़का। उन्हें महसूस हुआ कि यह सिर्फ कोई ढोंगी नहीं है। उनकी आंखें मेहता और विजय के बीच चल रहे इस ड्रामा को देखने लगीं। विजय जमीन पर बैठा रहा। उसकी आंखों में आंसू नहीं थे, लेकिन एक गहरा दर्द और सच्चाई थी।
“सर, मैं सच कह रहा हूं। राजेश्वर जी मेरे पिता थे। उन्होंने अपनी मृत्यु से एक दिन पहले यह लिफाफा मुझे दिया था और कहा था कि मैं सही समय पर यहां आऊं। कृपया एक बार लिफाफा खोलकर देख लीजिए।” मेहता ने गुस्से से लिफाफा फाड़ दिया। उसमें से एक पुरानी तस्वीर निकली। तस्वीर में राजेश्वर सिंघानिया एक साधारण सी महिला के साथ खड़े थे और उनके बीच में एक छोटा बच्चा था, जो दिखने में विजय जैसा लग रहा था।
भाग 6: सच्चाई का सामना
यह तस्वीर देखते ही गायत्री देवी के होठ कांप गए। उन्हें लगा जैसे समय ठहर गया हो। उन्हें पता था कि उनके पति का अतीत साफ नहीं था। लेकिन उन्हें इस सस्पेंस का एहसास नहीं था। गायत्री देवी अपनी जगह से उठी और धीमी कठोर चाल से विजय के पास पहुंची। “मेहता जी रुकिए, पुलिस को मत बुलाइए। इस लिफाफे में क्या है? मुझे दिखाइए।”
उन्होंने फटे हुए लिफाफे से तस्वीर उठाई। तस्वीर में महिला के चेहरे को देखकर उनके चेहरे पर ईर्ष्या और डर का भाव आ गया। “तो तुम राजेश्वर के बेटे हो?” विजय ने कहा, “हां, मैम। मैं उनकी पहली पत्नी का बेटा हूं। वह मेरी मां थी।” इस बात ने मेहता और आस्था को भी स्तब्ध कर दिया।
भाग 7: वसीयत का रहस्य
सिंघानिया इंडस्ट्रीज की असली नीव पर अब एक अनजाना वारिस दावा कर रहा था। अधिवक्ता मेहता मन में सोच रहा था, “अगर यह सच है तो मेरी सारी योजनाएं खत्म हो जाएंगी।” आस्था दुख और गुस्से से बोली, “नहीं, यह झूठ है। मेरे पापा सिर्फ मेरे हैं।” गायत्री देवी ने ठंडी दृढ़ आवाज में वसीयत को खोलने का आदेश दिया।
गायत्री देवी ने एक पुरानी रत्नजड़ित चाबी निकाली जो राजेश्वर सिंघानिया की निशानी थी। उनके हाथ कांप रहे थे। उन्होंने मेहता की ओर देखा जिनकी आंखों में लालच और डर का अजीब मिश्रण था। अधिवक्ता मेहता ने बनावटी चिंता से कहा, “मैडम, आपको पता है कि यह कितनी संवेदनशील घड़ी है। अगर यह नौजवान सच बोल रहा है तो…”
भाग 8: तिजोरी का रहस्य
गायत्री देवी ने बीच में टोकते हुए कहा, “कमान कहां जाएगी? यह सिंघानिया जीत तय कर चुके हैं।” आस्था जो सदमे में थी, विजय को घूर रही थी। वह इस साधारण दिखने वाले लड़के को अपने पिता की संपत्ति में हिस्सेदार मानने को तैयार नहीं थी। “तुम सिर्फ पैसे के लिए आए हो। है ना? मेरे पापा के मरने का इंतजार कर रहे थे।”
विजय ने कहा, “मैम, मैं सिर्फ सच के लिए आया हूं। अगर मुझे पैसे चाहिए होते तो मैं एक साल पहले ही आ जाता। मेरे पिता ने मुझे वादा किया था।” गायत्री देवी ने चाबी घुमाई। तिजोरी का भारी दरवाजा एक धीमी धार्मिक ध्वनि के साथ खुला। अंदर मखमली कपड़े में लिपटी राजेश्वर सिंघानिया के हस्ताक्षर वाली वसीयत रखी थी।
भाग 9: वसीयत का खुलासा
मेहता ने आगे बढ़कर वसीयत उठाई। उसने जानबूझकर पढ़ने से पहले चश्मा साफ करने में समय लगाया ताकि सबका सस्पेंस और बढ़ जाए। आखिरकार उसने पढ़ना शुरू किया। “मैं राजेश्वर सिंघानिया, अपनी पूरी संपत्ति का आधा भाग 50% अपनी पत्नी श्रीमती गायत्री देवी को देता हूं और शेष आधा भाग 50% अपनी बेटी आस्था सिंघानिया को देता हूं।”
लेकिन उसने जानबूझकर रुका और विजय की ओर देखा, जो सिर झुकाए सुन रहा था। “लेकिन यदि मेरे जीवित रहते या मेरी मृत्यु के एक वर्ष के भीतर मेरा जेष्ठ पुत्र, जिसका नाम मैं विक्रांत रखता हूं, अगर वह सामने आता है, तो वह मेरी कुल संपत्ति का चौथाई भाग 25% प्राप्त करेगा।”
भाग 10: सन्नाटा
हॉल में सन्नाटा पसर गया। मेहता की आवाज गूंज रही थी। “आस्था, चौंक कर बोली, ‘विक्रांत? यह नाम यह कौन है?’” गायत्री देवी ने आंखें बंद करके कहा, “यह वही नाम है जो उन्होंने मुझे बताया था। जब वह मेरे साथ शादी से पहले मिलते थे।”
मेहता ने वसीयत का एक और भाग पढ़ा जिसमें लिखा था कि विक्रांत को अपनी पहचान साबित करने के लिए खून का रिश्ता डीएनए टेस्ट साबित करना होगा, जिसके नमूने राजेश्वर सिंघानिया ने गुप्त रूप से तिजोरी में रखे थे।

भाग 11: मेहता की चाल
वसीयत पढ़ते ही मेहता के चेहरे पर जीत की एक झलक आई। उन्हें पता था कि अगर विजय ने अपना हिस्सा ले लिया तो सिंघानिया इंडस्ट्रीज में उनकी पकड़ कमजोर हो जाएगी। अधिवक्ता मेहता विजय की ओर मुद्द कर बोले, “देखो नौजवान, वसीयत में तुम्हारा नाम विक्रांत लिखा है, ना कि विजय। क्या तुम यह साबित कर सकते हो कि तुम ही विक्रांत हो?”
विजय ने जमीन से अपना पुराना झोला उठाया और उसमें से एक टूटी हुई चांदी की चैन निकाली। “मेरे पिता ने यह चैन मुझे मेरे पांचवे जन्मदिन पर दी थी। उन्होंने कहा था यह विक्रांत के नाम का पहला अक्षर है। मेरी मां ने मुझे बताया था कि यह मेरा असली नाम है। लेकिन हमारे गांव में लोग मुझे विजय कहते थे।”
भाग 12: गायत्री देवी का निर्णय
गायत्री देवी ने उस चैन को पहचान लिया। उनकी आंखों में पुरानी यादों की एक चमक आई, जो जल्दी ही कड़वाहट में बदल गई। “यह चैन हां, मैंने यह डिजाइन सिंघानिया जी को बनाते देखा था।” अधिवक्ता मेहता तेजी से स्थिति संभालते हुए बोले, “चैन सबूत नहीं है। डीएनए ही अंतिम सत्य है। मैडम, हमें तुरंत टेस्ट करवाना होगा।”
मेहता ने जल्दी से एक मेडिकल टीम को बुलाया। डीएनए टेस्ट के लिए राजेश्वर सिंघानिया के बाल के नमूने और विजय के रक्त का नमूना लिया गया। परिणाम आने में केवल 2 घंटे का समय था, जो सदियों जैसा लग रहा था।
भाग 13: तनाव का समय
आस्था अपनी मां के गले लगकर रो रही थी। वहीं विजय एक कोने में बैठा शांत था। ठीक 2 घंटे बाद मेहता ने एक सीलबंद लिफाफा खोला। अधिवक्ता मेहता सांस रोक कर रिपोर्ट देखकर उनके माथे पर पसीना आ गया। “डीएनए रिपोर्ट पुष्टि करती है कि विजय विक्रांत 99.9% राजेश्वर सिंघानिया के जैविक पुत्र हैं।”
गायत्री देवी के हाथ से चाय का कप छूट गया। आस्था जमीन पर बैठ गई। विजय, जिसने अब तक धैर्य बनाए रखा था, की आंखों में आंसू आ गए। यह आंसू जीत के नहीं, बल्कि अपने पिता से अंतिम जुड़ाव के थे। अधिवक्ता मेहता मन में सोच रहा था, “खेल शुरू हो चुका है। अब यह नौसिखिया मेरी राह का रोड़ा बनेगा। मुझे इसे हटाना होगा हमेशा के लिए।”
भाग 14: विजय का नया सफर
विजय अब सिर्फ एक अजनबी नहीं था। वह सिंघानिया इंडस्ट्रीज का चौथाई वारिस था और यह बात मेहता को सबसे ज्यादा चुभ रही थी। डीएनए रिपोर्ट की घोषणा के बाद गायत्री देवी ने अपने दुख और क्रोध को छुपा लिया। सिंघानिया इंडस्ट्रीज की मालकिन होने के नाते वह जानती थी कि अब विजय को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
गायत्री देवी ने एक बनावटी शांति के साथ कहा, “विजय, या मैं तुम्हें विक्रांत कहूं, वसीयत का सम्मान किया जाएगा। यह घर अब तुम्हारा भी है। मेहता जी, इनके लिए गेस्ट विंग तैयार करवाइए।”
विजय ने कहा, “मैम, मैं यहां रुकने के लिए नहीं आया हूं। मुझे बस अपने पिता की अंतिम इच्छा पूरी करनी थी।” गायत्री देवी ने तीखी नजरों से कहा, “वसीयत में यह भी लिखा है कि वारिस को एक साल तक व्यवसाय और परिवार के साथ रहना होगा ताकि वह अपनी जिम्मेदारियां समझ सके। यह मेरे पति का नियम है और तुम्हें इसका पालन करना होगा।”
भाग 15: आस्था का संघर्ष
विजय के पास कोई चारा नहीं था। वह जानता था कि सिंघानिया इंडस्ट्रीज और राजेश्वर का साम्राज्य कितना विशाल है और वह इसे आसानी से ठुकरा नहीं सकता था। उधर आस्था पूरी तरह से टूट चुकी थी। उसने खुद को अपने कमरे में बंद कर लिया और विजय से बात करने से मना कर दिया।
भाग 16: मेहता की साजिश
अधिवक्ता मेहता के चेहरे पर अब चिंता और निराशा साफ झलक रही थी। विजय के आने से उनके सिंघानिया इंडस्ट्रीज पर कब्जा करने के सारे सपने चूर हो गए थे। उन्होंने देर रात अपने निजी केबिन में गायत्री देवी को बुलाया। “मैडम, आप समझ क्यों नहीं रही? यह विजय एक पढ़ा लिखा नौसिखिया है जो गांव के बैकग्राउंड से आया है। अगर यह 25% हिस्सेदारी के साथ बोर्ड में आया तो हमारे सारे फैसले कमजोर हो जाएंगे।”
गायत्री देवी ने कहा, “मैं क्या कर सकती हूं मेहता जी? वसीयत मेरे हाथ में नहीं है।” अधिवक्ता मेहता धीरे से साजिशपूर्ण ढंग से बोले, “वसीयत को चुनौती दी जा सकती है। या अगर यह वारिस किसी कारणवश अपनी जिम्मेदारियां निभाने में अक्षम साबित हो जाए।”
गायत्री देवी ने सिर उठाया। उन्हें मेहता की आंखों में खतरा दिखा। “आपका मतलब क्या है? मेहता जी?”
भाग 17: साजिश का आरंभ
अधिवक्ता मेहता ने कहा, “मेरा मतलब साफ है। यह लड़का बाहरी है। हमें बस इंतजार करना है कि यह कोई बड़ी गलती करे या हम इसे गलती करने के लिए मजबूर कर दें। अगर यह अयोग्य साबित हुआ तो इसका हिस्सा हमें ही मिल जाएगा।”
गायत्री देवी ने कुछ देर सोचा। उनके अंदर की ईर्ष्या और डर उन्हें मेहता की बात मानने को मजबूर कर रहे थे। उन्होंने धीमी आवाज में हां कह दी। “ठीक है, लेकिन कोई खून खराबा नहीं होना चाहिए। यह मेरे पति का बेटा है। भले ही वह किसी और से हो।”
भाग 18: विजय की चुनौती
अगले ही दिन विजय को कंपनी के एक छोटे से ऑफिस में बिठाया गया। मेहता ने उसे जानबूझकर सिंघानिया इंडस्ट्रीज के एक मुसीबत ग्रस्त प्रोजेक्ट, एक पुरानी माइनिंग यूनिट की फाइलें थमा दी। “विक्रांत जी, यह आपका पहला असाइनमेंट है। यह यूनिट वर्षों से घाटे में चल रही है। अगर आप इसे एक हफ्ते में प्रॉफिटेबल बना सकें तो हम समझेंगे कि आप इस वारिस पद के योग्य हैं।”
विजय जानता था कि यह एक जाल है। वह माइनिंग यूनिट के बारे में कुछ नहीं जानता था। लेकिन उसने यह चुनौती स्वीकार की। “ठीक है सर। मैं अपनी पूरी कोशिश करूंगा। मेरे पिता की विरासत को बचाना मेरी जिम्मेदारी है।”
भाग 19: मेहता की साजिश
जब विजय उस यूनिट की फाइलों को पढ़ रहा था तो मेहता के आदमी दिनेश ने चुपके से उसकी छाया में धीमा झर मिला दिया। यह जहर ऐसा था जो तत्काल नहीं, लेकिन धीरे-धीरे मानसिक भ्रम और कमजोरी पैदा करता था। विजय को लगा कि उसका सिर घूम रहा है। वह तुरंत बाथरूम की ओर भागा।
लेकिन वहां उसने एक पुराना कागज देखा जिस पर राजेश्वर सिंघानिया की लिखावट थी। कागज पर लिखा था, “विक्रांत, मुझे पता है कि मेहता तुम्हें फंसाएगा। जिस माइनिंग यूनिट की फाइलें वह तुम्हें देगा उसकी असली समस्या जमीन में नहीं बल्कि हिसाब किताब में है। कोड 777।”
भाग 20: विजय की योजना
विजय के होश उड़ गए। उसे समझ आया कि उसके पिता ने उसकी मदद के लिए गुप्त संदेश छोड़े थे। वह तुरंत अलर्ट हो गया। उसी रात विजय देर तक माइनिंग यूनिट की फाइलों में कोड 777 की तलाश कर रहा था। तभी आस्था चुपके से उसके कमरे में आई।
आस्था ने उसकी बात ध्यान से सुनी। “विजय, तुम सच में सोचते हो कि तुम यह कर सकते हो? तुम शहर के बड़े प्रोजेक्ट्स के बारे में क्या जानते हो?” विजय ने कहा, “दुख से, शायद कुछ नहीं जानता। लेकिन मैं यह जानता हूं कि धोखा क्या होता है। मुझे माफ करना आस्था। मुझे तुम्हारे और तुम्हारी मां के बीच आना पड़ा।”
भाग 21: नया मोड़
आस्था ने विजय की ईमानदारी महसूस की। उसने देखा कि विजय अपनी मां की तरह सत्ता का भूखा नहीं है। “मेहता तुम्हें फंसा रहा है। वह इस कंपनी को सालों से खा रहा है। वह नहीं चाहता कि कोई नया वारिस आए। तुम्हें सावधान रहना होगा।”
विजय ने कहा, “मैं आप सबको वादा करता हूं, सिंघानिया इंडस्ट्रीज अब सिर्फ मुनाफे पर ध्यान नहीं देगी बल्कि ईमानदारी, मेहनत और कर्मचारियों के सम्मान पर भी ध्यान देगी। यह मेरे पिता का असली सपना था।”
भाग 22: विजय का संघर्ष
गायत्री देवी ने घर के हॉल में एक आपात बैठक बुलाई। विजय, आस्था और सिंघानिया इंडस्ट्रीज के सभी बोर्ड सदस्य मौजूद थे। गायत्री देवी ने सबके सामने स्वीकार किया कि कैसे उन्होंने और मेहता ने विजय को संपत्ति से दूर रखने की कोशिश की थी।
गायत्री देवी ने कहा, “मैंने तुम्हें अपने कपड़े और तुम्हारे अतीत से आंका, ना कि तुम्हारे दिमाग और ईमानदारी से। तुमने इस घर को मेहता जैसे जहरीले सांप से बचाया है।”
भाग 23: विजय की पहचान
कुछ दिनों बाद सिंघानिया इंडस्ट्रीज के बोर्ड की बैठक हुई। गायत्री देवी ने बोर्ड के सामने एक पदह ऐलान किया। “मैं अपनी 50% हिस्सेदारी में से 10% विक्रांत विजय को तुरंत दे रही हूं जिससे उसकी हिस्सेदारी 85% हो जाएगी और वह कंपनी का सबसे बड़ा व्यक्तिगत शेयर होल्डर बनेगा।”
भाग 24: परिवार का पुनर्मिलन
विजय ने सबके सामने खड़े होकर कहा, “मैं आप सबको वादा करता हूं, सिंघानिया इंडस्ट्रीज अब सिर्फ मुनाफे पर ध्यान नहीं देगी बल्कि ईमानदारी, मेहनत और कर्मचारियों के सम्मान पर भी ध्यान देगी।”
शांति निवास में अब सही मायने में शांति आ चुकी थी। गायत्री देवी को बेटा मिला था। आस्था को भाई मिला था और विजय को अपना घर और अपने पिता की विरासत मिली थी।
भाग 25: सीख
इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि इंसानियत और चरित्र किसी भी दौलत से बड़े होते हैं। विजय ने साबित कर दिया कि सादगी में भी कितनी बड़ी ताकत होती है।
अगर आपको यह भावनात्मक ड्रामा, सस्पेंस और विजय का न्याय पसंद आया हो तो इस कहानी को लाइक जरूर करें। दो कमेंट में बताएं कि आपको गायत्री देवी का पश्चाताप और विजय की जीत कैसी लगी। ऐसी ही शानदार कहानियों के लिए हमारे चैनल को सब्सक्राइब करना बिल्कुल ना भूलें। धन्यवाद और मिलते हैं अगली कहानी में।
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