करोड़पति बेटे की किस्मत और एक बूढ़ी मां की तलाश
कभी-कभी किस्मत ऐसे खेल खेलती है कि इंसान हैरान रह जाता है। मुंबई की एक बरसाती रात थी, जब सड़कों पर पानी बह रहा था और लोग अपने-अपने घरों में सिमटे बैठे थे। उसी रात, शहर की एक सुनसान सड़क किनारे, बस स्टॉप के नीचे बैठी एक बूढ़ी बेसहारा महिला ठंड और बारिश से कांप रही थी। उसके कपड़े भीग चुके थे, होंठ नीले पड़ गए थे और वह एक पुराने कपड़ों के गठ्ठर को अपने सीने से लगाए बैठी थी। उसकी आंखों में एक ऐसी उदासी थी, जैसे जिंदगी की सारी उम्मीदें अब चुक गई हों।
इसी बीच एक चमचमाती लाल मर्सिडीज कार वहां आकर रुकती है। कार में बैठा है राहुल — एक बड़े बिजनेसमैन का बेटा, खुद अपनी मेहनत से करोड़ों की संपत्ति का मालिक, लेकिन प्रेम और अपनेपन से कोसों दूर। उसकी सफलता की दुनिया में भावनाओं की कोई जगह नहीं थी।
कार की हेडलाइट्स जब बूढ़ी महिला पर पड़ती हैं, तो राहुल के दिल में कुछ पिघल जाता है, जिसे उसने सालों से महसूस भी नहीं किया। वह जल्दी से अपनी महंगी जैकेट निकालता है, बारिश की परवाह किए बिना बाहर निकलकर उस महिला के कांपते कंधों पर डाल देता है। जैकेट की गर्मी पाते ही महिला के चेहरे पर हल्की-सी रोशनी दौड़ जाती है। उसी पल महिला की कांपती आवाज गूंजती है— “मेरा बेटा, मेरा राहुल… तुम कहां थे बेटा?” राहुल थोड़ा चौंकता है, सोचता है शायद ये कोई भ्रम है या बस यादों में डूबी महिला की बड़बड़ाहट। वह महिला को शेल्टर होम पहुंचा देता है, लेकिन उसके शब्द ‘मेरा राहुल’ उसके दिल-दिमाग में गूंजते रह जाते हैं।
अगली सुबह वह बेचैन रहता है, मां की कुछ धुंधली यादों की जंजीरों में जकड़ा सा महसूस करता है। वह अपने पिता की पुरानी अलमारी टटोलता है और एक पुरानी तस्वीर पाता है— जिसमें एक महिला गोद में अमित मुस्कुराता हुआ बच्चा लिए है। महिला की एक उंगली पर खास निशान है। उसे याद आता है, पिछली रात जब उसने जैकेट डाली थी, क्या उस महिला की उंगली पर भी वैसा ही निशान था?
राहुल अपने चाचा-चाची से सच जानना चाहता है। बहुत मनाने पर वे बताते हैं कि मां मरी नहीं थी, बल्कि पिता की मौत के बाद मानसिक सदमे में घर छोड़कर चली गई थी। वह ढूंढी गई, लेकिन फिर कभी नहीं मिली। राहुल का दिल टूट जाता है, उसे एहसास हो जाता है कि वह महिला, जिसे उसने बारिश में बचाया था… वही उसकी मां थी।
अब राहुल पूरी ताकत से मां को खोजने में जुट जाता है। उसका हर दिन, हर रात, हर सांस मां के इंतजार और तलाश में बीतने लगती है। कई खोजबीनों के बाद, उसे पता चलता है कि पुलिस उस महिला को एक आश्रम में छोड़ गई थी। राहुल वहां पहुंचता है। आश्रम में जब वह अपनी मां से मिलता है, तो सबसे पहले उसकी उंगली देखता है— वही निशान। राहुल फूट-फूट कर रोता है, मां के पांव पकड़ लेता है, “मां, मैं राहुल हूं। देखो, मैं आ गया हूं… तुम्हारा बेटा।”
कई सालों के बाद वह बिछड़ी ममता फिर से लिपट जाती है। दोनों की आंखों में आंसुओं का सैलाब बह रहा था। राहुल मां को अपने घर ले आता है, उनका हर इलाज कराता है, खुद उनका ध्यान रखता है। धीरे-धीरे मां उसे पहचानने लगती है। राहुल अब अपने जीवन का असली उद्देश्य समझ चुका था— सिर्फ दौलत कमाना नहीं, बल्कि रिश्तों की गर्माहट और ममता की तलाश ही असली दौलत है।
राहुल अपनी मां के नाम पर एक ट्रस्ट बनाता है— ताकि और कोई मां-बेटा ऐसे बिछड़कर दुःखी ना रहें। अब राहुल की दुनिया विनम्रता, सेवा और ममता से भर गई थी। उसकी कहानी ने हजारों लोगों को सिखा दिया कि पैसा हमेशा सब कुछ नहीं, असली दौलत है— दिलों का मिलना, मां की मुस्कान और इंसानियत की पहचान।
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