सच का सामना | एक बहादुर महिला की जंग अपने परिवार के लिए
रिया की आंखें रंगीन बाजार की चमकती लाइटों में चमक रही थीं। वह तेज रफ्तार से दौड़ रही थी, उसके पीछे एक काली गाड़ी का शोरगुल सड़क पर गूंज रहा था। उसकी लंबी चोटी हवा में लहरा रही थी और लाल साड़ी की परतें फड़फड़ा रही थीं। “रुको रिया! सब खत्म हो जाएगा अगर तुम भागी रही,” पीछे से एक गहरी आवाज चलाई। रिया ने पीछे मुड़कर देखा, उसके चेहरे पर ना डर था, बस एक जिद्दी चमक।
वह छोटी गलियों में मुड़ गई, दीवारों से टकराते हुए उसकी सांसें तेज हो गईं। बाजार की भीड़ में घुसते ही उसने एक फल वाले के ठेले के पीछे छिप लिया। गाड़ी रुकी और दो लंबे चौड़े आदमी उतरे, आंखों में शिकारी जैसी चमक लिए। “यहां कहीं नहीं छिप सकती। लड़की, हमारा राज तेरे पास है,” एक ने गरज कर कहा।
रिया का दिल धड़क रहा था लेकिन दिमाग तेजी से घूम रहा था। उसने फुसफुसाया, “मां, बस थोड़ी देर और, मैं घर पहुंच जाऊंगी।” फल वाले ने उसे देखा, आंखों में सवाल लेकिन चुपके से सिर हिलाया। आदमियों ने ठेले को धक्का दिया, फल बिखर गए और चीखें गूंज उठीं। रिया ने मौका देखा और उछल कर दौड़ लगाई, सीधी मंदिर की ओर।
भाग 2: मंदिर की शरण
मंदिर के घंटों की आवाज में खोकर वह अंदर घुस गई। सांसें थम गईं। “भगवान, बस आज रक्षा करो। कल सब ठीक हो जाएगा,” उसने मूर्ति से प्रार्थना की। पीछे से कदमों की आहट आई। दोनों आदमी मंदिर के द्वार पर पहुंच चुके थे। रिया ने एक खंभे के पीछे छिपकर सांस रोकी और हाथ में फोन कसकर पकड़ा।
एक ने फोन चेक किया, “बॉस, वो यही है। मंदिर में घुस गई।” दूसरा हंसा, “अंदर घुसकर क्या बज जाएगी? आज रात ही सुलझा देंगे।” रिया ने चुपके से मैसेज टाइप किया, “दिव्या दीदी, मदद चाहिए। बाजार मंदिर के पास।” दिव्या उसकी बचपन की दोस्त थी, शहर की मशहूर पत्रकार।
फोन की घंटी बजी। रिया को याद आया कैसे 3 साल पहले उसकी शादी टूटी थी धोखे से। अब ये लोग उसी राज के पीछे पड़े थे जो उसके दिल का घाव था। मंदिर में पूजा की भीड़, अगरों की खुशबू हवा में तैर रही थी। रिया ने साड़ी की किनारी से पसीना पोंछा।
भाग 3: सच्चाई का सामना
आदमियों ने भीड़ में ताकना शुरू किया। “वहां देखो, लाल साड़ी वाली,” एक ने इशारा किया। रिया ने दौड़ लगाई। मंदिर के पिछवाड़े की सीढ़ियों पर फिसल पड़ी। नीचे गिरते हुए उसका हाथ पेड़ की डाल से टकराया। दर्द हुआ लेकिन रुकी नहीं। वह नदी किनारे पहुंची। चांदनी रात में पानी चमक रहा था।
पीछे से गाड़ी का हॉर्न सुनकर आदमी नदी की ओर दौड़ पड़े। रिया ने पानी में कूदने का सोचा। लेकिन फोन में मैसेज आया, “रिया, मैं आ रही हूं। 5 मिनट रुको।” दिव्या का जवाब था। उम्मीद की किरण जली। रिया ने नदी के किनारे झाड़ियों में छिपना शुरू किया।
आदमियों ने टॉर्च जलाई। “निकल आ रिया। तेरा वो पुराना राज हमें चाहिए। वरना तेरी मां को…” एक ने धमकाया। रिया का खून खौल गया। मां का नाम सुनकर उसकी आंखें नम हो गईं। वह जानती थी मां बीमार है, घर पर अकेली।
तभी दूर से सायरन की आवाज आई। पुलिस की गाड़ी बाजार की ओर आ रही थी। आदमियों ने एक दूसरे को देखा, चेहरे पर घबराहट की लकीरें खींच गईं। “चल, बाद में देखेंगे। बॉस को फोन कर,” एक ने कहा और गाड़ी में कूद गए।
भाग 4: दिव्या की मदद
रिया ने सिसकी ली और राहत की सांस ली। लेकिन डर अभी भी बाकी था। दिव्या की गाड़ी पहुंची। वह उतरी, आंखों में चिंता की आग जल रही थी। “रिया, कहां हो तुम? सब ठीक तो हो?” दिव्या ने पुकारा।
हाथ में माइक थामे रिया झाड़ियों से निकली। दोनों दोस्तों ने गले लगा लिया। “दीदी, ये लोग मेरी शादी के उस राज के पीछे हैं,” रिया ने फुसफुसाया। दिव्या ने सिर हिलाया। “चलो, पहले घर पहुंचते हैं। कल सब सुलझाएंगे।” वे गाड़ी में सवार हुईं।
रात की सड़कें सुनसान थीं, हवा ठंडी हो रही थी। रिया ने खिड़की से बाहर देखा। चांद बादलों में छिपा, रहस्यमई सा लग रहा था। घर पहुंचकर मां ने दरवाजा खोला, चेहरे पर थकान लेकिन मुस्कान बिखरी।
“बिटिया, इतनी रात को क्या हुआ?” मां ने पूछा, हाथों में चाय का गिलास थामा। रिया ने एक गले लगाया। “कुछ नहीं मां, बस थोड़ी देर हो गई।” दिव्या ने चाय पीते हुए कहा, “अंकल जी, कल सुबह आती हूं। रिया को आराम दो।”
भाग 5: अतीत की परछाई
रिया सोने गई लेकिन नींद ना आई। दिमाग में वो राज घूम रहा था। तीन साल पहले शादी की रात दूल्हा भाग गया था, एक रहस्यमय पत्र छोड़कर। पत्र में लिखा था, “प्रिया, तेरा अतीत हमें निगल जाएगा। माफ करना।” उसके बाद से धमकियां मिलने लगीं। कोई अनजान शख्स उसका पीछा करता।
रिया ने फैसला किया, अब चुप नहीं रहेगी। सच्चाई बाहर लाएगी। सुबह हुई, सूरज की किरणें कमरे में नाचने लगीं। रिया उठी, आईने में देखा। सुंदर चेहरा लेकिन आंखों में जिद्द। मां ने नाश्ता बनाया, परांठों की खुशबू घर-भर में फैल गई।
दिव्या आई लैपटॉप लेकर। “रिया, वो पत्र का फोटो दो। मैं खोजूंगी।” रिया ने पत्र निकाला। पीले कागज पर लिखावट धुंधली थी लेकिन शब्द साफ थे। “यह हैंडराइटिंग एनालिसिस करवाती हूं। शायद कोई सुराग मिले,” दिव्या ने कहा।
भाग 6: नए सिरे से शुरुआत
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई। एक अजनबी आदमी खड़ा मुस्कुराता हुआ। “रिया मैडम, मैं विक्रम, प्राइवेट डिटेक्टिव। आपकी मदद के लिए आया।” रिया ने आश्चर्य से देखा, “आप किसने भेजा आपको?” विक्रम ने कहा, “आपकी पुरानी दोस्त ने, जो दिल्ली में रहती है।”
वे अंदर आए, चाय पीते हुए बात शुरू हुई। “मैडम, आपका केस पुराना है लेकिन सुराग है। वो दूल्हा जिंदा है।” रिया का दिल धड़क उठा। “क्या कहा? बताइए!” विक्रम ने फाइल खोली। फोटो में एक चेहरा परिचित लेकिन बदला हुआ। “यह आपका दूल्हा। अब आरव शर्मा मुंबई में छिपा है।”
दिव्या ने फोटो देखा। “लेकिन क्यों भागा? और आज क्या है?” विक्रम ने सिर झुकाया। “एक बड़ा घोटाला आपके परिवार से जुड़ा है।” रिया की आंखें फैल गईं।
भाग 7: सच्चाई की खोज
“हमारे परिवार से?” रिया ने पूछा। मां ने किचन से सुना और हाथ कांप गए। “बिटिया, यह सब पापा के पुराने राज हैं।” मां ने सिसकी ली। रिया ने मां को संभाला। “मां, बताओ सब। अब छिपाना मत।”
मां ने आंसू पोछे। “तुम्हारे पापा व्यापारी थे, लेकिन एक धोखा हुआ। कहानी शुरू हुई पुराने कर्ज, दुश्मनी और एक गुप्त डायरी।” रिया ने सुना, दिल में तूफान उठा। “मैं जाऊंगी मुंबई। आरव से सच उगलवाऊंगी,” रिया ने कहा।
दिव्या ने रोका, “अकेले नहीं, हम साथ जाएंगे।” विक्रम ने हंसते हुए कहा, “ट्रेन बुक कर लो। कल सुबह चलेंगे।” रात को रिया ने बैग पैक किया।

भाग 8: मुंबई की यात्रा
दिल में डर और हिम्मत का मेल। मां ने आशीर्वाद दिया, “सावधान रहना। बिटिया, भगवान साथ है।” अगली सुबह स्टेशन पर खड़ी रिया ने ट्रेन की सीटी सुनी। वे सवार हुए। खिड़की से बाहर हरे खेत लहरा रहे थे।
मुंबई पहुंचने पर बारिश हो रही थी। सड़कें चमक रही थीं। विक्रम ने होटल बुक किया। “आरव का पता लग गया। शाम को मिलेंगे,” उसने कहा। रिया ने तैयार होकर आई, नीली ड्रेस में, चेहरा चमकदार।
शाम को एक कैफे में पहुंचे। आरव अकेला बैठा, सिगरेट पी रहा था। रिया ने टेबल पर जोर से हाथ मारा। “आरव, अब सच बोलो!” आरव चौका, चेहरा पीला पड़ गया। “रिया, तुम यहां क्यों आई? भाग जाओ, खतरा है,” आरव ने फुसफुसाया।
तभी कैफे के बाहर गाड़ियां रुकीं। वहीं दो आदमी उतरे और अंदर घुसे। “बंदूकें लहराते सब खत्म। कोई ना चले,” एक ने कहा।
भाग 9: संघर्ष का समय
रिया का दिल बैठ गया लेकिन आंखों में विद्रोह चमका। कैफे की लाइटें झपझपाईं। बंदूक की नोक पर सबने हाथ ऊपर किए। आरव ने रिया की ओर देखा, आंखों में पछतावा साफ झलक रहा था। “रिया, भागो! ये लोग मेरे पीछे हैं, तुम्हें कुछ नहीं चाहिए,” उसने चीखा।
रिया खड़ी रही। साड़ी की पल्लू कंधे पर लहरा रही थी। दोनों आदमी आगे बढ़े। एक ने दिव्या को पकड़ा, दूसरा आरव की ओर। “चलो बॉस के पास, वो राज अब हमारा होगा,” एक ने गरज कर कहा।
विक्रम ने चुपके से फोन निकाला। “लोकेशन शेयर कर,” उसने मैसेज भेजा। रिया ने मौका देखा। टेबल पर पानी का गिलास फेंक मारा। गिलास टूटा, पानी छलका, आदमी फिसला, बंदूक हाथ से छूटी।
भाग 10: भागने का रास्ता
दिव्या ने झपट्टा मारा और दूसरी बंदूक छीनने की कोशिश की। आरव ने कुर्सी उठाई और एक आदमी के सिर पर दे मारी। कैफे में अफरातफरी मच गई। ग्राहक चीखते भागने लगे। रिया ने दरवाजे की ओर दौड़ा लेकिन बाहर और गाड़ियां खड़ी थीं।
“अंदर रहो सब! कोई बाहर निकला तो गोली,” बाहर से आवाज आई। विक्रम ने रिया को खींचा। “किचन का रास्ता, पीछे से निकलो,” उसने कहा। वे किचन में घुसे। बर्तनों की झनकार हवा में गूंजी।
रिया ने गैस स्टोव बंद किया और तेल की बोतल हाथ में ली। पीछे से कदमों की आहट आई। आदमी किचन में घुस आए। दिव्या ने फ्रिज का दरवाजा खोला और अंदर से सब्जियां फेंकी। आरव ने चाकू पकड़ा लेकिन रिया ने रोका, “नहीं, खून नहीं।”
विक्रम ने तेल की बोतल फेंकी। फर्श फिसलन भरा हो गया। आदमी गिरे, सिर टकराया और चीख निकल गई। रिया ने पीछे का दरवाजा खोला। बारिश में सब बाहर निकले। गलियां संकरी थीं, पानी की धाराएं बह रही थीं।
भाग 11: अंत की ओर
“चलो, मेरी गाड़ी पास है,” विक्रम ने इशारा किया। वे दौड़े, कीचड़ उछला और कपड़े गीले हो गए। गाड़ी में सवार हुए। इंजन गरजा। सड़क पर फिसलते हुए पीछे से गोली चली। शीशा चटका लेकिन गाड़ी आगे बढ़ी।
“रिया, अब सच बोलो। वो राज क्या है?” आरव ने पूछा। “तेरे पापा का पुराना बिजनेस पार्टनर,” आरव ने कहा। “मेरा पापा तो सालों पहले गुजर गए,” रिया ने पूछा।
आरव ने आंखें मिलाई। “नहीं, वो जिंदा है। छिपे हुए हैं।” रिया का दिल रुक गया। आंखें नम और हाथ कांपने लगे। दिव्या ने गाड़ी रोकी। “क्या बकवास? सबूत कहां है?”
आरव ने पॉकेट से एक पुराना लॉकेट निकाला। “यह रिया की मां का है। यह मुझे तेरे पापा ने दिया था,” उसने कहा। रिया ने लॉकेट छुआ और पुरानी यादें आंखों के सामने घूमी।
भाग 12: सच्चाई का सामना
“वे कहां हैं? क्यों छिपे? बताओ सब,” रिया ने मांगा। आरव ने सांस ली। “एक बड़ा घोटाला, बैंक का पैसा डूबा। वे निर्दोष थे लेकिन साजिश हुई। दुश्मन ने फंसाया, अब वो लोग वापस आ गए राज दबाने के लिए।”
विक्रम ने फोन चेक किया। “मदद आ रही है, पुलिस को बुलाया,” तभी आगे बैरियर काली गाड़ियां खड़ी हो गईं। “रास्ता ब्लॉक, फंस गए अब क्या?” दिव्या ने ब्रेक मारा।
“मैं बात करूंगी। तुम लोग छिपो,” रिया ने कहा और बाहर निकली। बारिश में भीगी, चेहरा दृढ़ था। एक आदमी आगे आया। “राज दे दो, वरना मां को मार देंगे।”
रिया ने मुस्कुराया। “मां सुरक्षित है। तुम्हारा खेल खत्म।” पीछे से सायरन पुलिस की गाड़ियां घेरा बनाते आईं। आदमी भागने लगे लेकिन पकड़े गए।
भाग 13: न्याय का दिन
हथकड़ी कसी गई। इंस्पेक्टर ने सलाम ठोका। “मैडम, आपकी दोस्त ने सूचना दी।” दिव्या ने मुस्कुराया। “पत्रकार का काम सच्चाई बाहर लाना।” आरव को छोड़ा गया लेकिन रिया ने उसे पकड़ा। “पापा कहां ले चलो मुझे,” उसने मांगा।
आरव ने सिर हिलाया। “कल सुबह एक पुराना बंगला, बाहर शहर।” रात को होटल में सब इकट्ठे थे। चाय की चुस्कियां ले रहे थे। रिया ने मां को फोन किया। “मां, सब ठीक। कल आ रही हूं।”
मां की आवाज कांपी। “बिटिया, सावधान। कुछ पुराना राज है।” रिया ने फोन काटा। आंखें सोच में डूबी हुई थीं। विक्रम ने फाइल खोली। “पापा का नाम राकेश मेहरा। छिपे हैं।”
दिव्या ने लैपटॉप पर टाइप किया। “पुरानी न्यूज़ खोजी। देखो, 10 साल पुराना केस, बैंक घोटाला, करोड़ों डूबे।” रिया ने पढ़ा, दिल में दर्द। “पापा निर्दोष थे, साजिश थी। अब साबित करूंगी,” उसने कहा।
भाग 14: अंत में
सुबह हुई, सूरज बादलों से झांका। हवा ताजी थी। वे बंगले की ओर चले। पुराना घर, दीवारें उखड़ी हुई, दरवाजा खुला, अंदर अंधेरा और धूल की खुशबू हवा में।
रिया ने पुकारा, “पापा, मैं रिया, आपकी बेटी!” कोने से आवाज आई। “रिया!” सच में, एक बूढ़ा आदमी निकला, चेहरा जर्जर और आंखें नम।
रिया दौड़ी और गले लगा लिया। “आंसू बह निकले। पापा, क्यों छुपे? हमने आपको मरा समझा,” उसने रोया। पापा ने सिर सहलाया, “बेटी, दुश्मन मजबूत थे। बचाना था।”
कहानी शुरू हुई साजिश, धोखा और एक गुप्त खाता। “वो लोग पैसे वापस चाहते हैं। राज दबाना चाहते,” पापा ने बताया। आरव ने फाइल दी। “सबूत यहां, बैंक रिकॉर्ड्स।”
रिया ने पढ़ा, आंखें चमकी। “अब कोर्ट जाएंगे।” तभी बाहर शोर गाड़ियां आईं। “वही दुश्मन, अंदर घुसो। सबको मारो,” बाहर से चीखें गूंजी।
पापा ने दरवाजा बंद किया। “बेटी, पीछे का रास्ता।” वे दौड़े जंगल की ओर। पेड़ों की छांव घनी थी। पीछे से गोलियां चलीं, पत्तियां उड़ीं, धरती कांपी।
रिया ने पापा का हाथ थामा। “डरो मत, अब साथ है।” जंगल में एक झूम पड़ी। विक्रम ने इशारा किया। “अंदर छुपो, सांसें रोकीं।” बाहर कदमों की आहट।
दिव्या ने फोन निकाला, “लाइव स्ट्रीम शुरू किया। देखिए यह सच्चाई। निर्दोष परिवार पर हमला।” उसने बोला, व्यूअर्स बढ़े। दुश्मन घिर गए।
“हथियार डालो, सरेंडर करो!” रिया बाहर निकली। “पापा को गले लगाया, मुस्कान बिखरी।”
इंस्पेक्टर ने कहा, “मैडम, केस क्लोज।”
इस तरह रिया ने अपने परिवार के राज को उजागर किया और सच्चाई के साथ न्याय की ओर बढ़ी।
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