करोड़पति का पर्स लौटाया तो हुई जेल , मिला ईमानदारी का ऐसा ईनाम की आप दंग रह जायेंगे
दिल्ली की सड़क से होटल तक: अर्जुन की ईमानदारी की कहानी
दिल्ली की एक सड़क पर उस शाम हल्की ठंड थी। अर्जुन, 22 साल का बेरोजगार लड़का, सिर झुकाए चल रहा था। उसकी जेब में सिर्फ ₹10 थे और घर पर उसकी मां सरिता अकेली थी। नौकरी की तलाश में तीन महीने से भटक रहा अर्जुन परेशान था। अचानक उसकी नजर सड़क किनारे पड़े एक काले चमड़े के पर्स पर पड़ी। उसने इधर-उधर देखा, कोई नहीं था। उसने पर्स उठाया और खोला। अंदर नोटों की गड्डी थी और एक बिजनेस कार्ड – विक्रम सिंह, मालिक होटल ग्रैंड रीजेंसी दिल्ली।
अर्जुन का दिल तेज धड़का। पैसे देखकर उसकी आंखों में चमक आई – मां की दवा आ सकती थी। पर फिर उसने कार्ड देखा, अगर पर्स लौटा दूं तो शायद इनाम मिले। अर्जुन ने फोन निकाला और नंबर डायल किया। “सर, मुझे आपका पर्स मिला है।” दूसरी ओर से ठंडी आवाज आई, “ठीक है, आ रहा हूं।”
अर्जुन इंतजार करने लगा। आधे घंटे बाद एक चमकती एसयूवी रुकी। विक्रम सिंह उतरे – सूट, चश्मा, सख्त चेहरा। अर्जुन ने पर्स थमाया। विक्रम ने खोला – खाली था। “पैसे कहां हैं?” उसने गुस्से से पूछा। अर्जुन हकबकाया, “मुझे ऐसा ही मिला सर।” विक्रम ने फोन उठाया, “पुलिस को बुलाओ। यह चोर है।” अर्जुन चिल्लाया, “मैंने कुछ नहीं लिया। आपको फोन क्यों करता अगर चोर होता?” पर विक्रम नहीं माना। पुलिस आई और अर्जुन को थाने ले गई। हवालात में ठंडी फर्श पर बैठाया गया। उसका फोन छीन लिया गया। “मैं चोर नहीं हूं,” वो बार-बार कहता, पर सिपाही हंसते।
उधर विक्रम अपने होटल लौटा। उसकी आंखों में अर्जुन की मासूमियत घूम रही थी। क्या सच में वो चोर था? उसे याद आया, पांच साल पहले एक पार्टनर ने उसे धोखा दिया था। तब से वह हर किसी पर शक करता था।
तीन दिन की रिमांड पर रखा गया अर्जुन। उसे भूखा रखा गया, थप्पड़ मारे गए। मां को खबर भी नहीं थी। सरिता परेशान थी – बेटा सुबह से नहीं लौटा। पड़ोसियों से पूछा, किसी ने अर्जुन को देखा? सबने सिर हिलाया। सरिता की आंखें नम थी। उसने सिलाई करके अर्जुन को पढ़ाया था, अब सब बंद। रात गहरी हो गई, अर्जुन की कोई खबर नहीं।
तीसरी शाम को इंस्पेक्टर ने सड़क के सीसीटीवी फुटेज चेक करने का आदेश दिया। रात को फोन आया – “सर, फुटेज मिल गई।” स्क्रीन पर दिखा – विक्रम सिंह भीड़ में चल रहे थे, एक लड़का उनकी जेब से पर्स निकालता है, पैसे खींचकर सड़क पर फेंक देता है। थोड़ी देर बाद अर्जुन आता है, पर्स उठाता है और फोन करता है। इंस्पेक्टर ने कहा, “तू सच कह रहा था। तुझे खाली पर्स मिला।”
अर्जुन को हवालात से बाहर लाया गया। उसकी कमीज फटी थी, चेहरा थका हुआ। विक्रम अंदर आया। अर्जुन की आंखें नम हो गईं, “आपने मुझे चोर कहा, मैंने तो आपकी मदद की थी।” विक्रम ने नजरें झुका लीं, “मुझे गलतफहमी हुई।” इंस्पेक्टर ने कहा, “अगर चोर होता, पर्स क्यों लौटाता?” विक्रम ने जेब से नोटों की गड्डी निकाली, “यह लो, अपनी मां को दे देना।” अर्जुन ने हाथ पीछे कर लिया, “मुझे आपके पैसे नहीं चाहिए। मैं बेरोजगार हूं, पर भिखारी नहीं।”
विक्रम ने उसे रोका, “रुक जाओ, कल मेरे होटल आना। मैं तेरे लिए कुछ करूंगा।” अर्जुन ने कार्ड लिया, बाहर निकला। घर पहुंचते ही सरिता दरवाजे पर थी। अर्जुन को गले लगाया, “कहां था तू?” अर्जुन ने सब बताया – पर्स मिलना, विक्रम का इल्जाम, थाने के तीन दिन। सरिता की आंखें भर आईं, “मैंने तुझे ईमानदारी सिखाई और यह सजा मिली।” अर्जुन ने कहा, “मां, सच जीत गया।”
अगली सुबह अर्जुन तैयार हुआ – पुरानी कमीज, घिसे जूते। होटल ग्रैंड रीजेंसी पहुंचा। बाहर शीशे की इमारत चमक रही थी। गार्ड ने उसे रोका, “कहां जा रहे हो?” अर्जुन ने कार्ड दिखाया, “विक्रम सर ने बुलाया।” गार्ड ने फोन किया, फिर अंदर जाने दिया। लॉबी में सोने की सजावट थी, लोग सूट में घूम रहे थे। अर्जुन को लगा यह उसकी दुनिया नहीं।
विक्रम ऑफिस में था, “आ गया, बैठ।” अर्जुन बैठा, “मुझे नौकरी चाहिए।” विक्रम ने कहा, “मैं तेरी ईमानदारी से प्रभावित हूं। तुझे मैनेजर की नौकरी दूंगा।” अर्जुन चौंका, “मेरे पास तो डिग्री भी नहीं।” विक्रम बोला, “ईमानदारी डिग्री से बढ़िया है।” अर्जुन ने कहा, “ठीक है, पर मेरी मां को बताना होगा।” विक्रम ने फोन दिया, “बता दे।” अर्जुन ने सरिता को कॉल किया, “मां, मुझे नौकरी मिल गई।” सरिता खुश हुई, पर बोली, “सावधान रहना।”
पहला दिन मुश्किल था। अर्जुन को नंबर समझ नहीं आते थे। स्टाफ उसे घूरता, कुछ फुसफुसाते, “यह लड़का मैनेजर कैसे बन गया?” अर्जुन ने सुना, पर चुप रहा। शाम को घर लौटा, “मां, सब मुझे अजीब देखते हैं, पर मैं कोशिश करूंगा।” सरिता ने गले लगाया, “तू मेरी शान है।”
धीरे-धीरे काम समझ आने लगा। स्टाफ भी उसकी मेहनत देखकर नरम पड़ने लगा। हफ्ता बीत गया। अर्जुन अब फाइलें चेक करने में तेज हो गया था। एक दिन उसने होटल के खाते में गड़बड़ी देखी – “सर, यह बिल ठीक नहीं लगता।” विक्रम ने कागज देखा, “अच्छा पकड़ा, यह मेरा पुराना मैनेजर करता था।” अर्जुन को गर्व हुआ – उसकी ईमानदारी रंग ला रही थी।
पर उस रात फिर फोन आया, “होटल से दूर रह, वरना मां को ढूंढ लेंगे।” अर्जुन का खून ठंडा हो गया। “कौन हो तुम?” लाइन कट गई। वो सरिता के पास दौड़ा, “मां, किसी ने धमकी दी, तुम्हें कुछ करेंगे?” सरिता घबरा गई। अर्जुन बोला, “मैं पुलिस को बताऊंगा।” इंस्पेक्टर ने कहा, “नंबर ट्रेस करेंगे, पर सबूत चाहिए।” विक्रम ने सिक्योरिटी बढ़ा दी।
अगले दिन होटल में एक नया आदमी आया – कालाकोट, चेहरा सख्त, “मैं विक्रम का पार्टनर हूं। तू नया मैनेजर है?” अर्जुन ने हां कहा। “खबरदार, मेरे काम में दखल मत देना।” वो चला गया। अर्जुन को शक हुआ, क्या वही धमकी दे रहा था?
शाम को विक्रम ने बुलाया, “अर्जुन, मेरे पार्टनर से मिला?” “हां सर, वो अजीब लगा।” विक्रम चुप रहा, “वो पुराना दोस्त है, पर तू सिर्फ मुझ पर भरोसा कर।” अर्जुन ने पूछा, “सर, क्या कोई मुझे हटाना चाहता है?” विक्रम ने कहा, “हो सकता है, पर मैं तुझे नहीं हटाऊंगा।”
रात को फिर फोन आया, “यह आखिरी चेतावनी है, नौकरी छोड़ वरना…” आवाज कट गई। अर्जुन ने फोन पुलिस को दिया। अगले दिन इंस्पेक्टर ने बुलाया, “नंबर ट्रेस हो गया – यह होटल का पुराना मैनेजर है, वो तुझे डरा रहा था।” अर्जुन ने विक्रम को बताया। विक्रम गुस्से से लाल हो गया, “उसे पकड़ो।” पुलिस ने छापा मारा, पुराना मैनेजर पकड़ा गया। उसने कबूल किया – पैसे चुराए थे और अर्जुन को हटाना चाहता था।
अर्जुन को राहत मिली। पर शाम को विक्रम ने बुलाया, “अर्जुन, मेरे पास एक और ऑफर है।” उसने अपनी बेटी काव्या को बुलाया। “यह मेरी बेटी है। क्या तू…” वो रुक गया। अर्जुन सन्न रह गया।
काव्या सामने आई – लंबे बाल, सलवार सूट, चेहरा शांत। “हाय।” उसने मुस्कुरा कर कहा। अर्जुन ने हिचकते हुए जवाब दिया, “हाय।” विक्रम बोला, “अर्जुन, तूने मेरे होटल को बचाया। मैं चाहता हूं कि तू मेरे परिवार का हिस्सा बने।” अर्जुन का गला सूख गया, “मतलब?” विक्रम ने काव्या की ओर देखा, “मैं काव्या की शादी तुझसे करना चाहता हूं।” अर्जुन की सांस रुक गई, “सर, मैं तो गरीब हूं।” काव्या ने कहा, “पापा ने तुम्हारी ईमानदारी की बात की, मुझे वह पसंद है।” अर्जुन चुप रहा, “मुझे सोचने का वक्त चाहिए।” विक्रम ने सिर हिलाया, “ठीक है, पर जल्दी जवाब दे।”
अर्जुन घर लौटा। सरिता रोटी बना रही थी। “मां, विक्रम सर ने अपनी बेटी से शादी की बात की।” सरिता का हाथ रुक गया, “क्या तू तैयार है?” अर्जुन बोला, “पता नहीं, वो अमीर हैं, हम गरीब। क्या यह सही होगा?” सरिता ने कहा, “बेटा, दिल से पूछ, पैसे से नहीं, प्यार से शादी होती है।”
रात भर सोचता रहा। काव्या की मुस्कान अच्छी थी, पर क्या वो उसे जानता भी था? अगले दिन होटल गया। विक्रम ने पूछा, “सोचा?” अर्जुन ने कहा, “सर, मुझे काव्या से बात करनी है।” विक्रम ने हां कहा। अर्जुन और काव्या होटल की छत पर मिले। “क्या तुम सच में मुझसे शादी करना चाहती हो?” काव्या ने कहा, “पापा तुम्हें पसंद करते हैं। मैंने तुम्हारी कहानी सुनी – पर्स लौटाना, धमकियों का सामना। मुझे लगता है तुम अच्छे इंसान हो।” अर्जुन बोला, “पर हमारी दुनिया अलग है।” काव्या मुस्कुराई, “दुनिया बदल सकती है।”
धीरे-धीरे अर्जुन को उससे लगाव होने लगा। एक दिन उसने हिम्मत की, “मां, मुझे काव्या पसंद है।” सरिता खुश हुई, “तो हां कर दे।” अर्जुन ने विक्रम को फोन किया, “सर, मैं तैयार हूं।” विक्रम हंसा, “अगले हफ्ते सगाई कर लेते हैं।”
सगाई के दिन होटल की लॉबी सजी थी। अर्जुन नई शेरवानी में था। काव्या लहंगे में। विक्रम ने मेहमानों से कहा, “यह मेरे लिए गर्व का दिन है।” रिंगें बदली गईं। सरिता की आंखें नम थी, “मेरा बेटा अब सेटल हो गया।” पर तभी एक आदमी भीड़ से निकला – कालाकोट चेहरा सख्त। “विक्रम, यह क्या कर रहे हो?” विक्रम चौंका, “राकेश, तू यहां?” राकेश ने कहा, “हां, तू अपनी बेटी की शादी इस लड़के से कर रहा है?”
अर्जुन को याद आया, यह वही पार्टनर था जिसने उसे चेतावनी दी थी। काव्या ने पूछा, “पापा, यह कौन है?” विक्रम ने कहा, “मेरा पुराना दोस्त।” राकेश हंसा, “दोस्त, मैंने तुझे होटल बनाया और तू इसे इस लड़के को दे रहा है?” मेहमान फुसफुसाने लगे। अर्जुन ने कहा, “मैं कुछ नहीं ले रहा, मैंने सिर्फ काम किया।” राकेश ने तंज कसा, “तूने चालाकी की, पहले नौकरी अब बेटी।” विक्रम गुस्से से लाल हो गया, “बाहर निकल।” राकेश ने कहा, “ठीक है, पर यह शादी नहीं चलेगी।”
अर्जुन का मन भारी हो गया, “मां, क्या मैं गलत हूं?” सरिता ने कहा, “नहीं बेटा, तू सही है।” काव्या ने उसका हाथ पकड़ा, “मैं तुम्हारे साथ हूं।” पर उस रात अर्जुन को नींद नहीं आई। क्या राकेश कोई नया खेल खेलने वाला था?
अगले दिन पुलिस ने फोन किया, “राकेश ने शिकायत की है, कहता है होटल का हिस्सा उसका है।” विक्रम ने कहा, “यह झूठ है, मैं कोर्ट में लडूंगा।” हफ्ते बीते। अर्जुन और काव्या की शादी की तारीख नजदीक आई। राकेश का केस कोर्ट में था।
एक शाम अर्जुन घर लौटा। सरिता बाहर थी। “मां!” उसने पुकारा, पर जवाब नहीं आया। सब बिखरा था। टेबल पर एक चिट्ठी थी, “अर्जुन, शादी छोड़ वरना मां को नहीं देखेगा।” उसका दिल धड़क उठा। वो चीखा, “मां!” सड़क पर भागा, पर कोई नहीं दिखा। उसने विक्रम को फोन किया, “सर, मां गायब है।” विक्रम बोला, “पुलिस को बुलाओ, मैं आ रहा हूं।” पुलिस आई, “हम ढूंढेंगे।” अर्जुन रोते हुए बोला, “यह राकेश का काम है।”
रात गहरा गई। अर्जुन सड़क पर खड़ा था, आंखें सूखी, दिल टूटा। तभी एक ऑटो रुका। उसमें से एक औरत उतरी, साड़ी में चेहरा ढका। “अर्जुन!” उसने पुकारा। अर्जुन दौड़ा, “मां!” औरत ने पल्लू हटाया – सरिता थी। चेहरा थका हुआ, आंखें नम। “मां!” अर्जुन ने उसे गले लगाया, “आप कहां थी?” सरिता रोते हुए बोली, “किसी ने मुझे अगवा किया, एक गोदाम में बंद रखा।”
पुलिस और विक्रम वहां पहुंचे। “कौन था?” विक्रम ने पूछा। सरिता ने कहा, “उसका चेहरा नहीं देखा, पर वह कह रहा था अर्जुन को शादी से रोकूं।” अर्जुन चिल्लाया, “यह राकेश का काम है।” पुलिस ने राकेश के ठिकाने पर दबिश दी। वो एक पुराने गोदाम में मिला। उसने कबूल किया – सरिता को अगवा किया था ताकि अर्जुन शादी छोड़ दे और होटल पर उसका दावा कमजोर हो।
पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। अर्जुन और सरिता घर लौटे। “मां, आप मेरी ताकत हो। अब कोई हमें नहीं डरा सकता।” विक्रम आया, “अर्जुन, मुझे माफ कर दो। मेरे पुराने पार्टनर ने यह सब किया।” अर्जुन बोला, “सर, गलती आपकी नहीं। पर अब शादी का क्या?” विक्रम ने कहा, “तुम और काव्या तय करो।” अर्जुन ने काव्या को फोन किया, “मां ठीक है, क्या तुम अब भी मुझसे शादी करना चाहती हो?” काव्या ने कहा, “हां अर्जुन, तुमने सच के लिए सब कुछ झेला।”
शादी की तारीख फिर तय हुई। होटल ग्रैंड रीजेंसी में मंडप सजा। अर्जुन शेरवानी में था। काव्या दुल्हन के जोड़े में। सरिता नई साड़ी में थी, आंखें खुशी से चमक रही थी। मेहमानों में स्टाफ भी था जो अब अर्जुन को सम्मान देता था। विक्रम ने कहा, “आज मेरी बेटी सही इंसान के साथ है।” फेरे हुए, मंगलसूत्र बंधा। सरिता रो पड़ी, “मेरा बेटा अब सेटल हो गया।” अर्जुन ने कहा, “मां, यह आपकी जीत है।”
राकेश का केस कोर्ट में चला, उसे सात साल की जेल हुई। विक्रम ने होटल का पूरा कंट्रोल अर्जुन को दिया, “तू मेरा दामाद ही नहीं, मेरा वारिस भी है।” अर्जुन ने कहा, “सर, मैं इसे ईमानदारी से चलाऊंगा।”
महीने बीते। अर्जुन और काव्या ने होटल को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। एक दिन अर्जुन ने स्टाफ को बुलाया, “जब मुझे पर्स मिला, मैंने उसे लौटाया। आज उस नेकी ने मुझे यह सब दिया।” सबने ताली बजाई। सरिता अब होटल में मेहमानों के लिए खाना बनाती थी। उसकी सिलाई मशीन कोने में थी, पर अब सिर्फ यादों के लिए।
एक शाम अर्जुन और काव्या छत पर थे। काव्या ने कहा, “तुमने मेरे पापा को बदल दिया, वो अब शक नहीं करते।” अर्जुन मुस्कुराया, “और तुमने मुझे परिवार दिया।”
दिल्ली की उस सड़क पर लोग अब अर्जुन की कहानी सुनाते थे – एक पर्स ने उसकी जिंदगी बदल दी। एक साल बाद अर्जुन ने होटल के पास एक छोटा स्कूल खोला – गरीब बच्चों के लिए। सरिता ने उद्घाटन किया, “मेरे बेटे ने सच का रास्ता चुना।” अर्जुन ने कहा, “मां, यह आपकी सिखाई ईमानदारी का फल है।”
काव्या ने उसका हाथ पकड़ा, “और हमारी शुरुआत…” उस रात अर्जुन छत पर था। उसने उस सड़क की ओर देखा, जहां पर्स मिला था। एक छोटी नेकी ने सब बदल दिया।
दोस्तों, यह कहानी खत्म होती है। अर्जुन ने एक पर्स लौटाकर ना सिर्फ अपनी जिंदगी बदली, बल्कि सच और प्यार की मिसाल कायम की। उसने पैसे नहीं, ईमान चुना। आप क्या चुनते? क्या अर्जुन का फैसला सही था? क्या विक्रम को पहले सच पता करना चाहिए था? नीचे कमेंट करें। अपने विचार शेयर करें। इस कहानी को दोस्तों के साथ बांटें और हमारे चैनल को सब्सक्राइब करें ताकि ऐसी और कहानियां आपके पास पहुंचे। याद रखें, ईमानदारी की कीमत बड़ी होती है। सच के साथ रहें, नेकी करें। जय हिंद।
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