इंग्लैंड के लंदन एयरपोर्ट पर भारतीय वैज्ञानिक को भिखारी समझ रोका,सच्चाई सामने आते ही सब चौंक गए..

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इंग्लैंड के लंदन एयरपोर्ट पर भारतीय वैज्ञानिक को भिखारी समझ रोका, सच्चाई सामने आते ही सब चौंक गए

लंदन का हीथ्रो एयरपोर्ट, जिसकी गिनती दुनिया के सबसे व्यस्त और आधुनिक एयरपोर्ट्स में होती है। हर सेकंड यहां हजारों लोग आते-जाते हैं, चमचमाती फ्लोरिंग, सीलिंग से लटकती जगमगाती लाइट्स, और सूट-बूट में बिजनेस क्लास यात्री, जिनके हाथ में टैबलेट और कान में एयरपॉड्स लगे रहते हैं। एयरपोर्ट का हर कोना रौनक और तेज़ी में डूबा होता है। फर्स्ट क्लास काउंटर पर अमीर लोग, हाथ में महंगी गाड़ियों की चाबियां घुमाते यंगस्टर्स, डिजाइनर बैग्स के साथ महिलाएं—हर कोई अपनी-अपनी दुनिया में मग्न।

इसी भीड़ में उस दिन एक बुजुर्ग व्यक्ति धीरे-धीरे चलता हुआ एयरपोर्ट के गेट के अंदर आया। उम्र करीब 65 साल, धोती-कुर्ता पहने, सिर पर गांधी टोपी, पैरों में पुरानी चमड़े की चप्पलें और कंधे पर एक फटा-सा कैनवस बैग। उसका चेहरा बेहद शांत और आंखों में अनुभव की गहराई थी, मानो उसने जीवन के हर रंग देखे हों। वह तेज़ी से नहीं, बल्कि ठहर-ठहर कर चलता था, जैसे हर कदम सोच-समझकर रख रहा हो।

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एयरपोर्ट स्टाफ ने जैसे ही उसे देखा, उनकी भौहें सिकुड़ गईं। किसी ने फुसफुसाकर कहा, “यह कौन है? लगता है कोई मजदूर या भिखारी गलती से यहां आ गया है।” कई लोगों ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा, कुछ हंस पड़े, कुछ ने तिरस्कार भरी नजरों से देखा। वह बुजुर्ग सिक्योरिटी गेट पर पहुंचा, तो गार्ड ने सख्त आवाज में कहा, “पासपोर्ट प्लीज।” बुजुर्ग ने मुस्कुराकर अपने बैग से लाल कवर वाला भारतीय पासपोर्ट निकाला और अधिकारी को सौंप दिया।

गार्ड ने पूछा, “आप कहां जा रहे हैं?” बुजुर्ग ने टूटी-फूटी अंग्रेजी में जवाब दिया, “ऑक्सफोर्ड।” गार्ड ने फिर से उसे ऊपर से नीचे तक देखा—धोती, कुर्ता, पुराना बैग, चप्पलें। शायद उसे विश्वास नहीं हुआ कि यह आदमी ऑक्सफोर्ड जैसे प्रतिष्ठित स्थान जा सकता है। उसने अपने साथी को इशारा किया। दूसरा अधिकारी आया, दोनों ने पासपोर्ट चेक किया और फुसफुसाने लगे। “डू यू हैव इनफ मनी टू ट्रैवल?” दूसरे अधिकारी ने हल्की हंसी दबाते हुए पूछा। बुजुर्ग ने जेब से कुछ पाउंड निकाले और दिखा दिए, लेकिन उनके चेहरे से लग रहा था कि वे संतुष्ट नहीं हैं।

“स्टेप असाइड प्लीज,” गार्ड ने कहा और बुजुर्ग को एक छोटे कमरे में ले जाया गया। वहां और भी अधिकारी आ गए। सवालों की बौछार शुरू हो गई—”आप यहां क्या करने आए हैं? कितने दिन रुकेंगे? किससे मिलने जा रहे हैं?” बुजुर्ग शांति से हर सवाल का जवाब देते रहे। उनके बैग की तलाशी ली गई—कुछ किताबें, एक डायरी, पुराना नोकिया फोन और एक टिफिन निकला। अधिकारी एक-दूसरे की ओर देख हंसने लगे, “ऑक्सफोर्ड पढ़ने जा रहे हो या टिफिन बेचने?”

एक अधिकारी ने पूछा, “आप किसे कॉल कर सकते हैं?” बुजुर्ग ने शांत स्वर में कहा, “बस एक कॉल करनी है।” थोड़ी बहस के बाद उन्हें फोन दिया गया। उन्होंने एक नंबर मिलाया और बोले, “मैं लंदन एयरपोर्ट पर हूं, लगता है कुछ गलतफहमी हो गई है।” फोन रखकर वे चुपचाप बैठ गए। अधिकारी हंस पड़े—”इन्हें लगता है एक फोन से कुछ हो जाएगा!”

लेकिन पांच मिनट भी नहीं बीते थे कि एयरपोर्ट का माहौल अचानक बदल गया। वीआईपी गेट से चार काले सूट पहने अफसर दौड़ते हुए अंदर आए, पीछे-पीछे एयरपोर्ट डायरेक्टर भी थे। उनके चेहरे पर घबराहट साफ झलक रही थी। उनमें से एक ने ऊंची आवाज में पूछा, “व्हेयर इज डॉक्टर वर्मा?” स्टाफ हड़बड़ा गया। किसी ने इशारा किया, “वो रहे।”

अफसर भागकर उस साधारण बुजुर्ग के पास पहुंचे, झुककर बोले, “सर, वी आर डीपली सॉरी फॉर दिस मिस्टेक।” पूरा स्टाफ और वहां मौजूद लोग हक्का-बक्का रह गए, जिसे अभी तक आम आदमी या भिखारी समझा जा रहा था, वही व्यक्ति इतने सम्मान के साथ बुलाया जा रहा था। लाउडस्पीकर पर घोषणा हुई, “डॉक्टर अनिरुद्ध वर्मा को तुरंत वीआईपी लाउंज में ले जाया जा रहा है।”

जिस बुजुर्ग को मामूली समझकर टिकट फाड़ दी गई..उसी ने एक कॉल में पूरी  एयरलाइंस बंद करवा दी...

डॉक्टर वर्मा—जी हां, वही नाम जिसने हेल्थ सेक्टर में दुनिया का चेहरा बदल दिया था। वे दुनिया के सबसे बड़े हेल्थ टेक्नोलॉजी प्रोजेक्ट के फाउंडर थे, जिन्होंने 40 से ज्यादा देशों में ग्रामीण इलाकों के लिए हेल्थ सिस्टम खड़ा किया था। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी उन्हें ग्लोबल हेल्थ अवार्ड देने के लिए बुला रही थी। एयरपोर्ट डायरेक्टर ने खुद उनके पास आकर माफी मांगी, “सर, हमें बेहद अफसोस है। हमारे स्टाफ को सस्पेंड किया जा रहा है।”

लेकिन डॉक्टर वर्मा ने सिर्फ मुस्कुराकर कहा, “गलतफहमियां इंसानियत का हिस्सा हैं। उनसे सीखना चाहिए।” कुछ ही घंटों में यह घटना सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। लंदन टाइम्स में हेडलाइन छपी—“सिंप्लिसिटी पर्सनिफाइड: द मैन हू चेंज्ड ग्लोबल हेल्थ केयर”। अमेरिका, ब्रिटेन, भारत—हर जगह न्यूज चैनल्स पर यही चर्चा थी—”कौन हैं डॉक्टर वर्मा?”

रिपोर्टर्स भाग-भाग कर इंटरव्यू लेने आए, “सर, क्या आपको भेदभाव का सामना करना पड़ा?” डॉक्टर वर्मा ने बस इतना कहा, “कपड़े इंसान को छोटा या बड़ा नहीं बनाते, कर्म बनाते हैं।” यह एक लाइन पूरी दुनिया में गूंज गई। #RespectAll ट्विटर पर ट्रेंड करने लगा। जब खबर भारत पहुंची, तो पूरे देश में गर्व की लहर दौड़ गई। प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया, “डॉक्टर अनिरुद्ध वर्मा भारत का गौरव हैं—सादगी में महानता।”

जब डॉक्टर वर्मा भारत लौटे, तो दिल्ली एयरपोर्ट पर हजारों लोग उनका स्वागत करने आए। छात्रों ने नारे लगाए—”भारत माता की जय”, “डॉक्टर वर्मा अमर रहें!” इस घटना के बाद ब्रिटेन ने अपने एयरपोर्ट सिक्योरिटी प्रोटोकॉल बदल दिए, ड्रेस-बेस्ड प्रोफाइलिंग पर बैन लगा दिया। भारत में भी चर्चा शुरू हुई—क्या हम भी कपड़ों से लोगों को जज करते हैं?

कॉलेजों और स्कूलों में डॉक्टर वर्मा के भाषण होने लगे। डॉक्टर वर्मा ने इस घटना को एक मौका माना और “सम्मान सबके लिए” अभियान शुरू किया। वे दुनिया भर के स्कूलों, कॉलेजों, सरकारी संस्थानों में जाकर भाषण देने लगे। उनका संदेश साफ था—दिखावे से नहीं, इंसानियत और कर्म से इंसान की पहचान होती है।

सिर पर गांधी टोपी, धोती-कुर्ता, साधारण इंसान जैसी शक्ल, लेकिन सोच दुनिया बदलने वाली। डॉक्टर वर्मा ने साबित कर दिया—सम्मान हर इंसान का हक है, चाहे वह साधारण दिखे या असाधारण। कपड़े इंसान को नहीं, इंसान अपने कर्मों से पहचाना जाता है।

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