अमर की कहानी – रिश्तों का असली मूल्य
अमर एक साधारण लड़का था, जो अपने परिवार की बेहतर जिंदगी के लिए विदेश गया था। पूरे दो साल बाद, आज वह अपने देश भारत लौट रहा था। हवाई जहाज से उतरकर वह दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुँचा और ट्रेन से अपने शहर रायबरेली की ओर रवाना हो गया। रायबरेली से पहले एक स्टेशन पर ट्रेन करीब 30 मिनट के लिए रुकी। अमर ने सोचा, थोड़ा वक्त है, स्टेशन से कुछ खाने-पीने का सामान ले लूं।
स्टेशन पर उतरते ही उसने जो दृश्य देखा, उससे उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं। उसके बूढ़े मां-बाप और पत्नी प्रिया स्टेशन पर भीख मांग रहे थे। वे अमर को पहचान नहीं पाए और भीख मांगते हुए बोले, “साहब, कुछ पैसे दे दीजिए, दो दिन से कुछ नहीं खाया।” प्रिया ने जैसे ही अपने पति अमर को देखा, वह वहीं फूट-फूटकर रोने लगी।
आखिर ऐसा क्या हुआ कि अमर के विदेश जाने के बाद उसके मां-बाप और पत्नी को भीख मांगनी पड़ी? यह कहानी रायबरेली, उत्तर प्रदेश की सच्ची घटना है। अमर एक मध्यमवर्गीय परिवार से था, उसके दो भाई थे – अमर और सुरेश। दोनों की शादी हो चुकी थी। सुरेश की पत्नी, अमर की भाभी, स्वभाव से बहुत तीखी और सख्त थी।
जब तक अमर की शादी नहीं हुई थी, उसकी भाभी ने उसे अपनी बातों में इस कदर फंसा लिया था कि वह जो कहती, अमर वही करता। अमर की शादी प्रिया से हुई, जो गरीब लेकिन बहुत ईमानदार और नेक दिल लड़की थी। लेकिन अमर अपनी पत्नी प्रिया को कभी प्यार नहीं दे पाया, हमेशा भाभी की बातों में ही उलझा रहता था। प्रिया तिरस्कार और अपमान सहती रही, लेकिन कभी शिकायत नहीं की।
एक दिन भाभी ने अमर से कहा, “देवर जी, सुना है विदेश में लोग बहुत पैसा कमाते हैं। तुम भी क्यों नहीं जाते?” अमर भाभी की बात टाल नहीं सका और कुछ ही महीनों में विदेश चला गया। जाने से पहले उसने अपने मां-बाप की देखभाल और खर्च की जिम्मेदारी बड़े भाई सुरेश और भाभी को सौंप दी, “मैं पैसा भेजता रहूंगा, आप मां-बाप का ख्याल रखना।”
भाभी को संपत्ति का लालच था। उसने सुरेश से कहा, “जब तक अमर विदेश में है, बूढ़े मां-बाप की सारी जमीन-जायदाद अपने नाम करवा लो।” सुरेश ने भी लालच में आकर मां-बाप को तहसील ले जाकर सारी संपत्ति अपने नाम करवा ली। फिर दोनों ने मां-बाप को घर से निकाल दिया, और घर में ताला लगाकर चले गए।
बेचारे मां-बाप के पास अब कुछ नहीं था। वे पेट पालने के लिए गांव से दूर रेलवे स्टेशन पर भीख मांगने लगे। इसी बीच प्रिया की हालत भी खराब हो गई। घर में ताने सुन-सुनकर वह भी घर छोड़ने को मजबूर हो गई और स्टेशन पर पहुंच गई, जहां उसने अपने सास-ससुर को भीख मांगते देखा। प्रिया उनके साथ रहने लगी, क्योंकि उनके पास कोई और सहारा नहीं था।
करीब दो साल बाद, अमर को घर की याद सताने लगी। वह वापस लौटा, लेकिन घर पर ताला लगा था। पड़ोसियों ने बताया, “तुम्हारा भाई और भाभी घर और जमीन-जायदाद बेचकर कहीं चले गए हैं। तुम्हारे मां-बाप को भी घर से निकाल दिया था, वे रेलवे स्टेशन पर भीख मांगते हैं।” अमर का दिल टूट गया। उसने मां-बाप और पत्नी को रेलवे स्टेशन पर ढूंढा। वहां पहुंचकर वह फूट-फूटकर रोने लगा। प्रिया ने अपने पति को देखकर दौड़कर उसके पैरों में गिर पड़ी।
अमर ने अपनी पत्नी से माफी मांगी, “मेरी गलती थी, मुझे माफ कर दो।” प्रिया बोली, “आपका कोई दोष नहीं, भाभी ने आपको अपने वश में कर लिया था। अब आपकी आंखें खुल गई हैं, यही हमारे लिए सबसे अच्छा है।”
अब अमर के पास पैसे नहीं थे, जो कुछ था, सब भाभी के खाते में चला गया था। अमर अपनी पत्नी और मां-बाप को लेकर दूसरे शहर चला गया। वहां सब्जी मंडी के पास एक छोटा सा घर किराए पर लिया। अमर मंडी में मजदूरी करता, दिनभर की कमाई से घर चलता। चार लोगों का खर्च चलाना मुश्किल था।
एक दिन प्रिया ने कहा, “आप मेरे लिए सब्जी की दुकान खोल दो, मैं सब्जी बेचूंगी।” मां-बाप भी सहमत हुए। अमर ने मंडी में एक दुकान खोल दी। धीरे-धीरे उनका धंधा चल निकला, पैसे जमा होने लगे। किराए के घर में रहते हुए उन्होंने एक छोटा सा प्लॉट खरीद लिया, फिर मेहनत करके अपना घर भी बना लिया।
अमर ने मंडी में आढ़त खोल ली, उनका कारोबार खूब चलने लगा। उन्होंने कई प्लॉट खरीद लिए। दूसरी तरफ, विकास और उसकी पत्नी ने जो संपत्ति हड़प कर ससुराल में बेच दी थी, उसका दोगुना अमर ने मेहनत से हासिल कर लिया।
विकास और उसकी पत्नी जब ससुराल में पैसे खत्म हो गए तो उन्हें वहां से भी निकाल दिया गया। जैसा कर्म, वैसा फल। वे दर-दर भटकने लगे। एक दिन वे उसी सब्जी मंडी में पहुंचे, जहां अमर की आढ़त थी। अमर के पास कई लोग काम कर रहे थे। मां-बाप भी वहीं थे। विकास की पत्नी ने सास-ससुर के पैर छूने की कोशिश की, लेकिन अमर ने रोक दिया, “भाभी, दूर रहो। तुमने इनसे क्या किया था? पैसे के लालच में घर से निकाल दिया था, मुझे मेरी पत्नी से दूर किया था, मेरी जमीन-जायदाद हड़प ली थी। अब यहां क्या करने आई हो?”
मां-बाप बोले, “बेटा अमर, इनसे गलती हो गई। तुमने भी तो पहले गलती की थी। ये तेरा भाई है, जो हुआ सो हुआ, अब इन्हें माफ कर दे।” प्रिया ने भी कहा, “ये चाहे जो हो, हमारे परिवार का हिस्सा हैं। इन्हें कोई छोटा-मोटा काम शुरू करवा दो। इन्होंने अपनी गलती का फल भुगत लिया है।” अमर का गुस्सा शांत हो गया। उसने अपने बड़े भाई के लिए छोटा सा काम शुरू करवा दिया।
अब दोनों भाई अपने-अपने काम को संभालते हैं और परिवार के साथ प्यार और ममता से जीवन जीते हैं।
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