न्याय की मिसाल: आईपीएस नीता वर्मा की कहानी

सुबह का समय था। गांव के बाहर बनी सब्जी मंडी में रोज की तरह हलचल थी। कोई सब्जियां बेच रहा था, कोई मोलभाव कर रहा था, तो कहीं मजदूर ठेले खींच रहे थे। भीड़ में सब कुछ सामान्य था, लेकिन आज वहां एक खास महिला मौजूद थी, जो बिल्कुल आम कपड़ों में थी। न कोई सरकारी गाड़ी, न सिक्योरिटी गार्ड। उम्र लगभग 25 साल, चेहरा शांत लेकिन आत्मविश्वास से भरा। किसी को अंदाजा भी नहीं था कि यह महिला जिले की नई **आईपीएस अधिकारी नीता वर्मा** है।

नीता मंडी में एक ठेले के पास रुकी, जहां एक बुजुर्ग महिला सब्जी बेच रही थी।
नीता ने मुस्कुराते हुए पूछा,
“अम्मा, गोभी क्या भाव है?”
महिला बोली, “बेटी, आज गोभी 40 रुपये किलो है। आपको कितना चाहिए?”

तभी मंडी में मोटरसाइकिल की आवाज गूंजी। इंस्पेक्टर राजेश शर्मा आया—चेहरे पर वर्दी का घमंड। वह सीधे उसी ठेले पर रुका।
महिला घबरा गई, सिर झुकाकर बोली,
“आज क्या चाहिए आपको इंस्पेक्टर साहब?”
राजेश ने हुक्म के अंदाज में कहा,
“एक किलो गोभी दे और एक किलो भिंडी भी।”
महिला ने सब्जियां तौलकर दीं। इंस्पेक्टर ने सब्जियां लीं और बिना पैसा दिए चला गया।

यह देखकर नीता हैरान रह गई। उन्होंने पूछा,
“अम्मा, उसने पैसे क्यों नहीं दिए? आपने मांगे क्यों नहीं?”
महिला की आंखों में लाचारी थी।
“बेटी, इसका रोज का यही काम है। पैसे मांगती हूं तो धमकाता है, कहता है ठेला उठवा दूंगा। मेरे पति विकलांग हैं, उनका इलाज चलता है। मजबूरी में चुप रहती हूं।”

नीता अंदर तक हिल गई।
“अम्मा, आपकी कोई संतान नहीं?”
महिला की आंखें भर आईं।
“एक बेटा था, फौजी था। एक साल पहले सीमा पर शहीद हो गया।”

नीता ने गंभीरता से कहा,
“इस इंस्पेक्टर को आपकी मदद करनी चाहिए थी, लेकिन वह आपको डराता है। अब आपको डरने की जरूरत नहीं। मेरा नंबर ले लीजिए, कल जब ठेला लगाएं, मुझे कॉल करें। कल मैं खुद यहां रहूंगी। देखती हूं वह पैसे दिए बिना कैसे जाता है।”

बुजुर्ग महिला की आंखों में उम्मीद जागी।

अगली सुबह नीता ने साधारण साड़ी पहनी और बुजुर्ग महिला के ठेले पर खड़ी हो गई। कुछ ही देर में इंस्पेक्टर राजेश शर्मा आया।
उसने नीता को देखकर ठिठोली की,
“तू उसकी बेटी है? बड़ी प्यारी लग रही है। शादी हुई क्या?”
नीता ने शांति से जवाब दिया,
“नहीं, अभी नहीं हुई।”
राजेश हंसकर बोला,
“मेरी भी नहीं हुई, मुझसे शादी करेगी?”
नीता ने दृढ़ता से कहा,
“नहीं, मुझे शादी नहीं करनी।”
राजेश बोला,
“अच्छा, एक किलो गोभी और थोड़ा धनिया दे।”
नीता ने सब्जियां तौलकर दीं।
राजेश सब्जियां लेकर जाने लगा तो नीता ने सख्त आवाज में कहा,
“रुकिए इंस्पेक्टर साहब, पैसे दीजिए।”

इंस्पेक्टर झुंझुलाकर बोला,
“मैं तो रोज फ्री में लेता हूं, अपनी मां से पूछ लेना। ज्यादा जुबान मत चलाना।”
नीता ने फिर कहा,
“आप मेरी मां से चाहे जैसे लेते हों, लेकिन मुझसे नहीं। सब्जियों के पैसे देने होंगे। हम भी पैसे खर्च करके सब्जियां लाते हैं। अगर एक दिन भी न बेचें तो घर में चूल्हा नहीं जलता। आप फ्री में सब्जी लेकर हमारे पेट पर लात मारते हैं।”

इंस्पेक्टर गुस्से में आ गया, उसने नीता के गाल पर जोरदार थप्पड़ मार दिया। नीता लड़खड़ा गई, आंखों में आंसू आ गए, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी।
नीता बोली,
“आपने एक महिला पर हाथ उठाया है, बहुत बड़ी गलती की है। आपको इसका अंजाम भुगतना पड़ेगा।”

इंस्पेक्टर और गुस्से में बाल खींचने लगा। नीता दर्द से कराह उठी, लेकिन हिम्मत से खड़ी रही।
“मैं तुम्हारे खिलाफ रिपोर्ट करूंगी। तुम्हें सजा जरूर मिलेगी।”

इंस्पेक्टर बोला,
“रिपोर्ट करेगी? तेरी इतनी औकात? मैं तुझे खरीद सकता हूं, उल्टा तुझे ही जेल भेज दूंगा।”
वह चला गया।

नीता गुस्से में थी, लेकिन उसने खुद को संभाला। उसने ठान लिया कि इंस्पेक्टर को सबक सिखाएगी।
वह सीधे पुलिस स्टेशन पहुंची, आम महिला की तरह। वहां रिपोर्ट लिखवाने गई, तो सब इंस्पेक्टर ने खुलेआम रिश्वत मांगी—5000 रुपये।
नीता ने पैसे दिए और रिपोर्ट लिखवाई।
रिपोर्ट सुनकर एसएओ श्रीकांत बोला,
“वो तो सीनियर इंस्पेक्टर हैं, पुलिस वालों के लिए तो चलता है।”

नीता समझ गई कि सिस्टम अंदर तक सड़ा हुआ है। वह चुपचाप बाहर निकल गई, लेकिन उसके चेहरे पर सन्नाटा था—जैसे तूफान आने वाला हो।

अगले दिन नीता अपने असली रूप में, सरकारी गाड़ी और सुरक्षाकर्मियों के साथ थाने पहुंची।
पूरे थाने में खलबली मच गई।
राजेश शर्मा और श्रीकांत के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं।
नीता ने आईडी दिखाकर कहा,
“मैं हूं आईपीएस नीता वर्मा। अब मुझे सब पता है कि तुम लोग गरीबों को डराते हो, रिश्वत लेते हो।”

दोनों ने माफी मांगी, लेकिन नीता ने सख्त स्वर में कहा,
“यह गलती नहीं, अपराध है। इसकी सजा जरूर मिलेगी।”

नीता ने जिले के एसपी को फोन कर दोनों को तुरंत निलंबित करने और जांच शुरू करने का आदेश दिया।
फिर पूरे स्टाफ से कहा,
“अब इस थाने में गरीबों का शोषण नहीं होगा। वर्दी की आड़ में अत्याचार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”

दोनों अधिकारी घुटनों के बल गिर गए, माफी मांगने लगे।
नीता बोली,
“माफी नहीं मिलेगी। कानून सबसे बड़ा है। वर्दी पहनने से कोई भगवान नहीं बनता। अगर गुनाह करोगे तो यही वर्दी तुम्हें सलाखों के पीछे भेजेगी।”

उस दिन के बाद थाना सच में बदल गया।
गरीबों की आवाज सुनी जाने लगी।
नीता वर्मा की हिम्मत और न्याय ने सबको सिखाया—