मैं रिपोर्ट लिखाने के लिए अपने सामान्य कपड़ों में पुलिस स्टेशन गया, लेकिन पुलिस प्रमुख ने सोचा कि मै

.
.

एक साधारण महिला की अद्भुत लड़ाई

जून 2022 की उमस भरी दोपहर थी। हरियाणा के रेवाड़ी जिले में आसमान बादलों से ढका था, और हवा में मिट्टी और भीगे गेहूं की गंध तैर रही थी। जिला पुलिस अधीक्षक अनन्या राव अपने दफ्तर में कागजात देख रही थीं। तभी दरवाजे पर दो साए ठहर गए। वे थीं सुशीला देवी, लगभग 60 वर्ष की एक मां, जिनके चेहरे पर जीवन की कठोरता की लकीरें साफ झलकती थीं। उनके साथ थी उनकी बेटी प्रिया, मुश्किल से 20-22 साल की। मां-बेटी कांपते कदमों से कमरे में दाखिल हुईं।

सुशीला देवी की आवाज भर रही थी। “मैडम, हमारी जमीन, हमारे पुरखों की जमीन, वो प्रदीप ठाकुर नाम का जमींदार हड़पना चाहता है। धमकाता है कि अगर हमने विरोध किया तो घर जला देगा। मेरी बेटी को बदनाम करेगा।” प्रिया ने अपनी मां का हाथ कसकर पकड़ लिया और धीमे से बोली, “मां, डरना मत। लोग कहते हैं कि एसपी मैडम हमारा साथ देंगी।”

अनन्या चुपचाप सुनती रहीं। जैसे-जैसे सुशीला देवी बोलती गईं, अनन्या की आंखों में गहराई आती गई। उन्हें अपने बचपन की याद आ गई, जब उनके पिता को झूठे केस में एक भ्रष्ट थानेदार ने फंसाया था। शायद उसी दिन उन्होंने तय किया था कि एक दिन वे वर्दी पहनेंगी और सिस्टम के भीतर से सड़न को साफ करेंगी।

एक नई शुरुआत

कमरे में कुछ पल के लिए सन्नाटा छा गया। बाहर बारिश की पहली बूंदें टिन की छत पर गिरने लगीं। अनन्या धीरे से बोली, “मां, इस बार आप अकेली नहीं जाएंगी। मैं आपकी बेटी बनकर आपके साथ बावल थाने चलूंगी। वहां सच सामने आएगा और कानून का असली चेहरा दिखेगा।”

बाहर बारिश अब तेज हो चुकी थी। रेवाड़ी शहर की तंग गलियों में पानी भरने लगा था। लेकिन एसपी अनन्या राव का मन और भी भारी हो गया था। सुशीला देवी और प्रिया की आंखों में जो बेबसी थी, उसने उनके भीतर सोई हुई आग को फिर से जगा दिया। उन्होंने धीरे से अपनी मेज पर रखी नेमप्लेट को देखा। “सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस रेवाड़ी डिस्ट्रिक्ट” अगर वे सिर्फ दफ्तरी तरीके से आदेश जारी करेंगी तो शो लोकेश डागर तुरंत सबूत मिटा देगा।

अनन्या ने गहरी सांस ली और अपने स्टाफ को बुलाया। “मुझे एक साधारण सलवार, कुर्ता और दुपट्टा लाकर दो। कोई पहचान ना पाए कि मैं पुलिस में हूं। गाड़ी भी सरकारी नहीं, पुरानी जीप ले आना। आज रात मैं पुलिस अधीक्षक नहीं, एक आम बेटी बनकर बावल थाने जाऊंगी।”

उनके सहायक सी अर्जुन यादव हैरान रह गए। “मैडम, यह खतरनाक हो सकता है। अगर उन्होंने पहचान लिया…”

अनन्या ने ठंडे स्वर में कहा, “अगर डर से पीछे हटना होता तो मैं आज इस कुर्सी पर नहीं बैठी होती। सच छिपाने वालों को सब कर देना ही असली ड्यूटी है।”

थाने में घुसपैठ

रात होते-होते पुरानी जीप शहर की एक गली में रुकी। अंदर से तीन औरतें उतरीं—एक बुजुर्ग मां, एक जवान बेटी और एक साधारण सी औरत सिर पर दुपट्टा लिए। कोई सोच भी नहीं सकता था कि वही औरत रेवाड़ी की एसपी है। तीनों धीरे-धीरे बावल थाने की ओर बढ़ीं। बारिश थम चुकी थी, लेकिन कीचड़ से भरी सड़कों पर उनके पैर भारी लग रहे थे।

थाने के गेट पर खड़ा एक सिपाही हौसते हुए बोला, “अरे, फिर वही औरतें! कितनी बार कहा है भाग जाओ यहां से। डागर साहब ने साफ मना किया है।” सुशीला देवी कांप गईं। वे पीछे हटने लगीं, मगर अनन्या ने उनका हाथ कसकर थाम लिया। “मां जी, अब पीछे नहीं हटना है। आज सच अंदर जाएगा।”

थाने के भीतर सिगरेट और गुटखे की गंध फैली हुई थी। एक कांस्टेबल मेज पर पांव रखे उघड़ रहा था। उन्होंने आलस्य से पूछा, “क्या चाहिए?”

अनन्या ने आगे बढ़कर कहा, “रिपोर्ट लिखनी है। मेरी बेटी को एक गुंडे ने छेड़ा और जान से मारने की धमकी दी है। फर दर्ज करो।”

कांस्टेबल ने मुंह बिचकाते हुए कहा, “सुबह आना। अभी टाइम खत्म हो गया है।” सुशीला देवी सहमकर पीछे हटने लगीं। प्रिया की आंखों में आंसू भर आए। मगर अनन्या ने दोनों को रोक लिया। उनकी नजरें अब कठोर हो चुकी थीं। “हम कहीं नहीं जाएंगे। शो डागर को बुलाओ। अभी।”

अचानक थाने में खामोशी छा गई। सभी जानते थे कि डागर साहब बाहर आकर क्या करेंगे। लेकिन कोई भी उस औरत की आंखों में झलकती हिम्मत को नजरअंदाज नहीं कर पा रहा था।

डागर का सामना

दरवाजा धड़ाम से खुला और मोटा सा आदमी पेट निकला हुआ, मुंह में तिनका दबाए हुए गुस्से से बाहर निकला। वह था लोकेश डागर। उसने आते ही ऊंची आवाज में कहा, “फिर वही औरतें? कितनी बार कहा है कि ठाकुर साहब से उलझना बंद करो।”

प्रिया बताती है, “जमींदार प्रदीप ठाकुर ने जमीन हथियाने और डराने की कोशिश की, और थानेदार डागर ने उसकी मदद की।”

डागर ने कहा, “बंद करो! जमीन बेच दो और शांति से जियो वरना तुम्हें और तुम्हारी मां को गायब कर दूंगा।” सुशीला देवी कांप गईं। प्रिया सहमकर मां से चिपक गई।

अनन्या धीरे-धीरे आगे बढ़ी। उनकी आवाज शांत थी, लेकिन धारदार। “शो साहब, फिर दर्ज करना आपका काम है। यह आपकी ड्यूटी है। एहसान नहीं।”

डागर ने हंसते हुए कहा, “तू कौन है रे? बड़ी चालाकी से बोल रही है। तेरा नाम क्या है? कहां रहती है?”

अनन्या ने उसकी आंखों में देखते हुए कहा, “नाम से क्या होगा? हर औरत का नाम अलग होता है। कभी सुशीला, कभी प्रिया, कभी कोई और। लेकिन दर्द सबका एक जैसा होता है।”

डागर की हंसी गुस्से में बदल गई। उसने मेज पर हाथ पटका। “यह मेरा थाना है। यहां कानून मैं हूं। तुम तीनों जैसे आवारा लोग मुझे सिखाएंगे कि फर कैसे लिखते हैं।”

उसने पास आकर अनन्या का हाथ पकड़ने की कोशिश की। लेकिन अगले ही पल अनन्या ने तेजी से उसका हाथ झटका और जेब से एक छोटा बटुआ निकाला। उसमें से चमचमाता पहचान पत्र निकला। “सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस रेवाड़ी डिस्ट्रिक्ट अनन्या राव।”

कमरे में मौजूद सबकी सांसे थम गईं। कांस्टेबलों की आंखें फैल गईं। डागर का चेहरा पीला पड़ गया। उसके हाथ से टूथपिक गिरकर फर्श पर लुढ़क गई।

अनन्या की आवाज अब गूंज रही थी। “अभी तुमने कहा कि कानून तुम हो? नहीं डागर। कानून किताबों में है, संविधान में है और वह किताबें जनता ने हमें दी हैं। डराने के लिए नहीं, बचाने के लिए।”

कार्रवाई का आदेश

उन्होंने सीधा आदेश दिया, “सी अर्जुन यादव, तुरंत नोट करो। शो लोकेश डागर को ड्यूटी से सस्पेंड किया जाता है। पेंडिंग इंक्वायरी।”

अर्जुन की आंखों में चमक आ गई। वह तुरंत आगे बढ़ा। “जी मैडम।”

डागर घुटनों पर गिर गया। “मैडम, गलती हो गई। मुझे माफ कर दीजिए।”

अनन्या ने उसकी बात काट दी। “जब तुमने इन औरतों को अपमानित किया तब मजाक नहीं कर रहे थे। अब नतीजा भुगतो। यह वर्दी गुलामी का प्रतीक नहीं है। जनता की रक्षा का वचन है।”

बाहर गली में कुछ लोग इकट्ठा हो गए थे। खबर फैल गई थी कि एसपी मैडम खुद थाने पहुंची हैं। लोग खिड़कियों से झांक रहे थे।

अनन्या ने टेबल से गंदे कागज हटाए और खुद फिर लिखना शुरू किया। “शिकायतकर्ता: सुशीला देवी, आरोपी: प्रदीप ठाकुर, धाराएं: जमीन पर जबरन कब्जा, धमकी, महिला का उत्पीड़न।”

वे लिखते हुए बोलीं, “मां जी, अब डरने की जरूरत नहीं। आज आपका बयान सरकारी रिकॉर्ड का हिस्सा है। कोई मिटा नहीं सकेगा।”

सुशीला देवी रो पड़ीं। प्रिया की आंखों में पहली बार साहस की चमक लौटी। थाने की दीवारों पर बल्ब की पीली रोशनी टिमटिमा रही थी। बाहर आसमान साफ हो गया था।

एक नई सुबह

बावल थाने में फिर दर्ज होने के बाद रात का सन्नाटा और गहरा हो चुका था। थाने के बाहर जमा हुए गांव वाले अब भी आपस में फुसफुसा रहे थे। सचमुच एसपी मैडम ने डागर को निलंबित कर दिया।

अनन्या ने फाइल बंद की और उठ खड़ी हुई। उनकी आंखों में दृढ़ निश्चय चमक रहा था। अगर ठाकुर आजाद रहा तो यह रिपोर्ट सिर्फ कागज का टुकड़ा बनकर रह जाएगी।

उन्होंने श्री अर्जुन यादव को आदेश दिया, “पांच भरोसेमंद जवान चुनो जो ठाकुर के पैसे से ना बिके हों।”

“जी,” अर्जुन ने तुरंत हां में सिर हिलाया। थोड़ी ही देर में पांच जवान तैयार खड़े थे।

अनन्या ने आखिरी बार सबको देखा। “याद रखना, यह सिर्फ गिरफ्तारी नहीं है। जनता के भरोसे की जंग है। एक भी गलती हुई तो सिस्टम फिर हमें धोखा देगा।”

रात के लगभग 11:00 बजे दो जीपें थाने के गेट से निकलीं। सायरन बंद थे ताकि किसी को भनक ना लगे। अंधेरे में सिर्फ हेडलाइट्स रास्ता दिखा रही थीं।

गंतव्य था प्रदीप ठाकुर का फार्म हाउस। गांव वालों के बीच उसे “छोटा कलीला” कहा जाता था। चारों ओर ऊंची दीवारें, सीसीटीवी कैमरे और गेट पर हथियारबंद पहरेदार।

जब जीपें गेट के सामने रुकीं तो दो गुंडे बंदूके ताने आगे आए। “कौन हो तुम लोग? आधी रात को यहां क्या काम है?”

अनन्या ने दरवाजा खोला और जीप से उतरी। “रेवाड़ी पुलिस। प्रदीप ठाकुर को गिरफ्तार करना है। रास्ता खोलो।”

पहरेदार हड़बड़ा गए। एक ने मोबाइल निकालने की कोशिश की। लेकिन अर्जुन और इमरान ने तुरंत उसे दबोच लिया।

अंतिम संघर्ष

अंदर बढ़ते ही हवेली जैसी इमारत रंगीन रोशनियों से जगमगा रही थी। भीतर से ढोलक और शराब की मिली-जुली आवाजें आ रही थीं। ठाकुर का ठाट देख जवानों के चेहरे सख्त हो गए।

ड्राइंग रूम में प्रदीप ठाकुर सोफे पर फैला था। हाथ में भेस्की का ग्लास, मुंह में सिगार। एसपी अनन्या को देखते ही उसने ठहाका लगाया। “अरे खुद एसपी मैडम आई हैं। क्या बात है?”

लेकिन मैडम, आपको मालूम है मैं कौन हूं? मेरे पीछे मल्होत्रा साहब हैं। यहां कोई पत्ता भी मेरी इजाजत के बिना नहीं हिलता।

अनन्या ने ठंडी नजरों से उसकी ओर देखा। “तू चाहे मल्होत्रा का चहेता हो या किसी सांसद का दलाल, कानून से बड़ा नहीं।”

फर्द दर्ज हो चुकी है। जमीन हड़पने, धमकी देने और प्रिया के साथ बदसलूकी के केस में तुझे अभी गिरफ्तार किया जाता है।

ठाकुर खड़ा हो गया। ग्लास मेज पर पटकते हुए बोला, “अगर मैं ना चलूं तो बाहर मेरे 50 आदमी खड़े हैं। गोली चल जाएगी।”

उसने दरवाजे की ओर इशारा किया। सचमुच हथियारबंद गुंडों का झुंड गेट पर जुट चुका था।

अनन्या ने बिना पलक झपकाए कहा, “अगर तेरे आदमी गोली चलाएंगे तो कानून उन्हें भी जवाब देगा। लेकिन सुन ले ठाकुर, आज रात तेरे लिए कोई बचाव नहीं है। तेरे मल्होत्रा भी तुझे जेल से नहीं छुड़ा पाएंगे।”

गुंडे आपस में बुदबुदाने लगे। इमरान ने बंदूक सीधी उनकी ओर तान दी। अर्जुन ने तेजी से कहा, “जो कानून के साथ है, वही बचेगा। बाकी जेल जाएंगे।”

गुंडों के चेहरों पर हिचकिचाहट साफ थी। कुछ ने बंदूके नीचे कर दीं। ठाकुर चिल्लाया, “अरे कायरों! पीछे क्यों हट रहे हो? मैं बोल रहा हूं ना मल्होत्रा साहब हमें बचाएंगे।”

लेकिन उसके ही आदमी धीरे-धीरे पीछे हटने लगे। गांव से आए कुछ लोग भी बाहर खड़े तमाशा देख रहे थे।

अंत की ओर

अनन्या ने आगे बढ़कर कहा, “तेरे लोग भी समझ गए हैं कि तेरा खेल खत्म है। अब सिर्फ कानून बोलेगा।”

उन्होंने इमरान को इशारा किया। इमरान ने आगे बढ़कर ठाकुर की कलाई पकड़ी। ठाकुर तड़प कर छुड़ाने की कोशिश करने लगा।

लेकिन अर्जुन ने दूसरे हाथ को थाम लिया। अनन्या ने उसकी आंखों में देखते हुए कहा, “आज से तू सिर्फ एक अभियुक्त है ठाकुर।”

और तेरे मल्होत्रा साहब को बुलाना पड़ेगा। मगर गवाह बनने के लिए नहीं। हथकड़ी की क्लिक की आवाज पूरे हॉल में गूंज गई।

ठाकुर की आंखों से घमंड गायब हो चुका था। टीम ने उसे जीप में डाला। गेट पर खड़े गांव वाले स्तब्ध थे।

उनमें से एक नौजवान ने धीरे से कहा, “पहली बार देखा कि ठाकुर सिर झुका कर पुलिस की गाड़ी में बैठा है।”

जीप के सायरन ने रात की खामोशी को चीर दिया। अंधेरे आसमान में उम्मीद की हल्की रोशनी झलक रही थी। रेवाड़ी की हवा में पहली बार लगा शायद सचमुच कानून जिंदा है।

रेवाड़ी में उस रात की हवा में हल्की ठंडक थी। गांव वालों के चेहरों पर आश्चर्य और राहत झलक रही थी। जिसने भी सुना कि दबंग प्रदीप ठाकुर पुलिस की जीप में हथकड़ी लगाकर बैठा है, उसने भगवान को धन्यवाद दिया।

किसी ने कहा, “यह चमत्कार है।” किसी ने कहा, “अब शायद गांव की बेटियां चैन से सांस ले सकेंगी।”

अनन्या ने महसूस किया कि यह सिर्फ उनकी लड़ाई नहीं थी, बल्कि यह हर उस व्यक्ति की लड़ाई थी जो अन्याय के खिलाफ खड़ा होना चाहता था।

उनकी आंखों में एक नई चमक थी, और वे जानते थे कि यह लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। यह तो बस शुरुआत थी।

.