मां की दुआ: एक आलीशान बंगले के बाहर बैठी ममता की कहानी

ठंडी सर्दियों की सुबह थी। शहर की गलियों को धुंध ने अपनी चादर में लपेट लिया था। हल्की बारिश की बूंदे सड़क पर गिर रही थीं। ऐसे ही एक सुनसान माहौल में, एक बूढ़ी मां अपने कांपते हाथों में कटोरा लिए एक आलीशान बंगले के सामने बैठी थी। उसके चेहरे पर झुर्रियां थीं, आंखों में इंतजार, और दिल में दर्द के साथ एक अजीब सी उम्मीद भी थी।

वह वही मां थी जिसने कभी अपने बेटे को खून-पसीना एक करके पढ़ाया, बड़ा किया, सफल आदमी बनाया। आज उसी बेटे के घर के सामने बैठकर भीख मांग रही थी। लोग आते-जाते उसे नजरअंदाज कर देते, लेकिन उसकी आंखों में एक आस थी – शायद उसका बेटा कभी उसे पहचान ले।

गुजरे वक्त की परछाई

मां की यादों में वह दिन ताजा था जब उसका बेटा, अजय, उसके लिए दुनिया का सबसे प्यारा बच्चा था। उसने अपने बेटे की हर जरूरत पूरी की थी, उसके लिए रातों को जागी थी, घर-घर काम किया, अपनी खुशियों को उसकी सफलता के लिए कुर्बान कर दिया। अजय पढ़ाई में अच्छा था, मां उसकी फीस भरने के लिए अखबार बेचती, दूसरों के घरों में काम करती। हर त्याग सिर्फ एक सपने के लिए – उसका बेटा एक दिन बड़ा आदमी बने।

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समय बीता, अजय सफल हुआ। उसका बिजनेस चल पड़ा, बंगला बन गया, महंगी कारें आ गईं। मां ने कभी उससे पैसे नहीं मांगे, बस उसका चेहरा देखना चाहती थी। लेकिन जैसे-जैसे अजय की दुनिया बड़ी होती गई, मां उसकी नजरों से छोटी होती गई। एक दिन अजय ने दरवाजा बंद कर दिया – “मां, अब तुम मेरे जीवन का हिस्सा नहीं हो।”

इंतजार और तन्हाई

मां ने उम्मीद नहीं छोड़ी। वह रोज उसके बंगले के सामने बैठती, कटोरे में सिक्के इकट्ठा करती। हर सिक्का उसकी जिंदगी की एक कहानी था – भूख, तन्हाई, संघर्ष, और बेटे की अनदेखी। वह सोचती, शायद एक दिन अजय उसे पहचान लेगा। लेकिन अजय की आंखों पर दुनिया की चकाचौंध का पर्दा था।

एक दिन एक जवान आदमी वहां से गुजरा। उसने मां को देखा, रुक गया, और पूछा, “आप ठीक हैं दादी?” मां ने सिर झुका लिया, “बेटा, जिंदगी ने बहुत कठिन राह दिखाई है। मेरा बेटा इसी बंगले में रहता है, लेकिन पहचानता नहीं।” आदमी चौंक गया, “क्यों?” मां बोली, “मैंने उसे जन्म दिया, पाला, बड़ा किया। पर अब वह मुझे नहीं पहचानता।”

बदलती किस्मत

कुछ ही समय बाद, शहर में खबर फैली – अजय के बिजनेस में भारी नुकसान हुआ है। पार्टनर्स ने धोखा दिया, नाम बदनाम हो गया। बंगले की चमक फीकी पड़ गई, अजय का घमंड टूट गया। एक शाम, बारिश में भीगते हुए, अजय उसी सड़क पर आया जहां उसकी मां बैठा करती थी। वहां एक टूटी कटोरी पड़ी थी। अजय ने उसे उठाया, उसकी आंखों में पुरानी तस्वीरें घूम गईं। उसने मां को पुकारा, लेकिन कोई जवाब नहीं आया।

तभी वही आदमी आया जिसने मां से बात की थी। उसने कहा, “जिसने आपको छोड़ा, वक्त उसे वहीं लाकर खड़ा करता है।” अजय की आंखों में आंसू आ गए। वह भागा, उस मंदिर की ओर जहां उसकी मां रोज दीपक जलाया करती थी।

मां की ममता और बेटे का पछतावा

मंदिर में अंधेरा था, एक कोने में दीपक जल रहा था। वहीं मां बैठी थी, सफेद साड़ी में, कांपते हाथों के साथ। अजय आगे बढ़ा, घुटनों के बल गिर पड़ा, “मां, मुझे माफ कर दो।” मां ने मुस्कुराकर कहा, “अब पहचान लिया मुझे?” अजय रो पड़ा, “मैंने तुम्हें नहीं, खुद को ठुकराया था।”

मां ने उसके सिर पर हाथ रखा, “तू बुरा नहीं था, बस दुनिया की रोशनी में अंधा हो गया था। भगवान ने सब छीन लिया क्योंकि तू भूल गया था कि जो हाथ तेरे लिए भीख मांग सकते हैं, वो दुआ भी कर सकते हैं।”

अजय ने मां को गले लगा लिया, “अब मैं सब कुछ छोड़ दूंगा, बस तुम्हारे साथ रहना चाहता हूं।” मां ने कहा, “मुझे कुछ नहीं चाहिए, बस तू इंसान बन जा। बाकी सब मिल जाएगा।”

नई शुरुआत

मां की दुआ ने अजय की किस्मत बदल दी। कुछ महीनों बाद, शहर में एक नया आश्रय केंद्र खुला – ‘मां का घर’, जहां बेघर बुजुर्गों को सम्मान और प्यार मिलता। उस केंद्र के बाहर बोर्ड पर लिखा था – “मां का घर, स्थापना अजय शर्मा द्वारा।”

लोग कहते हैं, हर शाम उस मंदिर में एक घंटी बजती है। जब कोई बेटा अपनी मां से मुंह मोड़ता है, वह घंटी अपने आप बज उठती है – जैसे किसी अदृश्य ताकत से कह रही हो, “मां की दुआ ही तुम्हारा वक्त लिखती है।”

सीख

मां सिर्फ जन्म नहीं देती, वह किस्मत भी बनाती है। जब वक्त मां के आंसू देखता है, तो दुनिया का सबसे ताकतवर आदमी भी रुक जाता है। कभी अपनी जड़ों को मत भूलो, क्योंकि मां का प्यार और आशीर्वाद सबसे बड़ी दौलत है।