पत्नी आईएएस बनकर लौटी तो पति रेलवे स्टेशन पर समोसे बेच रहा था फिर जो हुआ।

दोस्तों, उस दिन रेलवे स्टेशन पर बहुत भीड़ थी। हर कोई अपने काम में भागदौड़ कर रहा था। प्लेटफार्म नंबर तीन पर एक ठेले पर समोसे तले जा रहे थे। उस आदमी के हाथ पर गर्म तेल के छींटों के निशान थे। उसका कुर्ता पसीने से भीग गया था और माथे पर चिंता की लकीरें साफ दिख रही थीं। उसका नाम था रमाकांत। एक समय वह एक साधारण लेकिन मेहनती इंसान था। उसने अपनी पत्नी की पढ़ाई के लिए अपनी सारी जमा की हुई पैसे खर्च कर दी थी। अब हालात ऐसे हो गए कि वह रेलवे स्टेशन पर समोसे बेचने को मजबूर था। लेकिन उसे किसी से कोई शिकायत नहीं थी। वह अपने जीवन में जितना था, उतने में खुश था।

एक नई सुबह

उसी समय एक ट्रेन प्लेटफार्म पर आई। कुछ यात्री ट्रेन से उतरे और कुछ चढ़ गए। रमाकांत ने रोज की तरह आवाज लगाई, “गर्म समोसे लो। ₹10 में तीन।” लेकिन इस बार कुछ अलग हुआ। अचानक प्लेटफार्म पर हलचल मच गई। स्टेशन मास्टर दौड़ते हुए आए। गार्ड चौकन्ने हो गए और कुछ लोग हाथ जोड़कर एक लाइन में खड़े हो गए। तभी एक चमचमाती सरकारी गाड़ी प्लेटफार्म के पास आकर रुकी। उसके पीछे दो और गाड़ियां थीं। चारों ओर सन्नाटा छा गया।

डीएम का आगमन

उस गाड़ी से एक महिला उतरी। उन्होंने हरे रंग की सिल्क की साड़ी पहनी थी। आंखों पर काला चश्मा था और चेहरे पर सख्त भाव थे। वह थीं डीएम शालिनी वर्मा। उनके साथ कुछ सुरक्षाकर्मी भी थे। उनका चलना तेज था। आंखों में अफसरों वाला तेज और चेहरे पर एक ठंडा घमंड साफ झलक रहा था। वह सीधे आगे बढ़ती रही जैसे किसी को देखना या पहचानना उनके ओहदे के खिलाफ हो। लेकिन रमाकांत उन्हें देखता रह गया।

यादें ताजा होना

कुछ पल के लिए उसका हाथ रुक गया। शालिनी ने भी एक बार पीछे मुड़कर देखा। उनकी नजरें रमाकांत से टकराई। एक पल को ऐसा लगा जैसे समय थम गया हो। फिर शालिनी बिना कुछ कहे आगे बढ़ गई, जैसे उन्होंने रमाकांत को कभी जाना ही ना हो। रमाकांत वहीं खड़ा रह गया। वह कुछ बोल नहीं सका, ना ही कुछ कर सका। उसे जैसे अंदर से कोई बड़ा झटका लगा हो। अब आसपास खड़े लोग उसकी तरफ देखने लगे।

अपमान का सामना

कोई हंस रहा था तो कोई आपस में धीरे-धीरे बातें कर रहा था। कोई बोला, “अरे, यह समोसे वाला डीएम मैडम का पति है क्या?” अब मैडम को कहां याद होगा ऐसे आदमी को? ऐसी बातें सुनकर रमाकांत को बहुत अपमान महसूस हुआ। तभी दो पुलिस वाले वहां आए। एक ने पास आकर पूछा, “तू ही रमाकांत है?” रमाकांत ने धीरे से हां कहा। तो पुलिस वाले बोले, “चुपचाप चल। तेरे खिलाफ शिकायत आई है। स्टेशन पर बिना इजाजत रेहड़ी लगाना, गंदगी फैलाना और अफसर के सामने हंगामा करना।”

बेगुनाही का बयान

रमाकांत कुछ समझ नहीं पाया। उसने कहा, “मैंने कुछ गलत नहीं किया,” लेकिन किसी ने उसकी बात नहीं सुनी। पुलिस वाले उसे पकड़कर थाने ले गए। थाने में उसे जमीन पर बिठा दिया गया। फिर एक इंस्पेक्टर चिल्लाया, “बड़ा आया डीएम का पति। मैडम ने खुद कहा है इसे सबक सिखाओ।” रमाकांत की आंखें हैरानी से फैल गईं। उसने कहा, “मैं शालिनी का पति हूं। मैंने क्या किया है?” लेकिन बात पूरी भी नहीं हो पाई थी कि उसकी पीठ पर डंडा पड़ा।

थाने में अपमान

थाने में सब हंसने लगे। कोई बोला, “अरे सुनो, यह समोसे वाला कह रहा है कि वह डीएम का पति है।” अब सब उसका मजाक उड़ाने लगे। किसी ने कहा, “अपनी शक्ल देखी है। तू डीएम का पति, यह तो हद हो गई।” गालियां, मारपीट और बेइज्जती। सब कुछ एक साथ चल रहा था। लेकिन रमाकांत चुप था। उसकी आंखों में अब आंसू नहीं थे। बस एक गहरी चुप्पी थी जिसमें दर्द, अपमान और अंदर ही अंदर जलता हुआ गुस्सा था।

न्याय की तलाश

अगली सुबह बिना कोई केस दर्ज किए उसे छोड़ दिया गया। रमाकांत सीधा कलेक्टेट ऑफिस पहुंचा। गेट पर सुरक्षा गार्ड खड़े थे। रमाकांत ने कहा, “मैं शालिनी से मिलना चाहता हूं। वह मेरी पत्नी है।” गार्ड हंस पड़े और बोले, “फिर आ गया। कल भी तो तुझे समझाया था। यहां मजाक नहीं चलता।” तभी एक ऑफिसर बाहर आया। उसने रमाकांत की हालत देखी और गुस्से में बोला, “इसे यहां से भगा दो। इसकी हिम्मत तो देखो। कौन शालिनी? कौन पति?”

आरटीआई का फॉर्म

गार्ड्स ने रमाकांत को गेट से धक्का देकर बाहर निकाल दिया। लेकिन इस बार रमाकांत चुप नहीं बैठा। उसने एक आरटीआई का फॉर्म भरा। उसमें सवाल लिखा था, “क्या जिला मजिस्ट्रेट शालिनी वर्मा शादीशुदा हैं? अगर हां, तो उनके पति का नाम क्या है?” कुछ ही दिनों में यह फाइल शालिनी के ऑफिस पहुंच गई। एक अफसर धीरे से उनके पास गया और बोला, “मैडम, यह आरटीआई आई है। इसका जवाब देना होगा।”

गुस्सा और अनदेखी

शालिनी ने फॉर्म देखा, पढ़ा और गुस्से में आकर फाड़ दिया। वह बोली, “जिसने यह भेजा है, उसे सबक सिखाओ। यह बात बाहर नहीं जानी चाहिए।” अफसर डरते हुए बोला, “लेकिन मैडम, यह कानूनन जरूरी है। जवाब देना पड़ेगा वरना मामला कोर्ट तक जा सकता है।” शालिनी ने ठंडे स्वर में कहा, “तो जाए कोर्ट में। हम कोई जवाब नहीं देंगे। चुप रहो और मीडिया तक बात पहुंचने से पहले इसे दबा दो।”

पत्रकार की मदद

लेकिन इस बार रमाकांत भी चुप नहीं रहा। एक लोकल पत्रकार ने रमाकांत को खोज निकाला। रमाकांत ने कैमरे के सामने कहा, “मैं शालिनी का पति हूं। मैंने ही उसे पढ़ाया है। अपनी जमीन गिरवी रखकर उसकी कोचिंग कराई। आज वह डीएम है, लेकिन मुझे पहचानने से इंकार कर रही है।” यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। स्थानीय चैनलों पर हेडलाइन चली, “क्या समोसे वाला डीएम का पति है? डीएम ने अपने पति को स्टेशन पर नहीं पहचाना।”

कानूनी लड़ाई

अब यह मामला पुलिस थाने या ऑफिस तक सीमित नहीं रहा। यह लोगों और मीडिया के बीच पहुंच चुका था। रमाकांत ने जिला कोर्ट में मुकदमा दायर किया। उसने कहा, “मैं डीएम शालिनी का पति हूं। मेरे पास सबूत हैं। शादी का प्रमाण पत्र, तस्वीरें, गवाह और दस्तावेज। अगर कोई अफसर इसे झूठ मानता है, तो यह मेरी इज्जत और पहचान का अपमान है।”

सुनवाई का दिन

कोर्ट ने सुनवाई की तारीख तय की। खबर मीडिया तक पहुंच गई और अब मामला और बड़ा हो गया। डीएम ऑफिस की इज्जत अब सवालों में थी। रमाकांत को अब कुछ लोगों से धमकियां मिलने लगीं। किसी ने उसकी समोसे की रेहड़ी भी तोड़ दी। लेकिन फिर भी उसने कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई। वह सिर्फ कोर्ट की तारीख का इंतजार करता रहा। अब उसका चेहरा एक आम आदमी का नहीं था। वह सच और हक की आवाज बन चुका था जो किसी बड़े पद को भी हिला सकता था।

अदालत का सामना

पहली सुनवाई का दिन था। कोर्ट में काफी भीड़ थी। शालिनी की ओर से चार वकील आए थे। सभी सूट बूट में मोटी-मोटी फाइलें लेकर रमाकांत अकेला था। उसके हाथ में एक पुरानी फाइल, कुछ कागज और शादी की कुछ तस्वीरें थीं। जज ने पूछा, “तुम किस अधिकार से कह रहे हो कि तुम शालिनी वर्मा के पति हो?” रमाकांत ने चुपचाप जज के सामने अपनी शादी की तस्वीरें रख दी।

सबूतों की पेशकश

फिर उसने दिखाया एक शादी का रजिस्ट्रेशन पेपर, गांव के सरपंच का सर्टिफिकेट और एक चिट्ठी जो शालिनी ने कोचिंग के समय लिखी थी जिसमें लिखा था, “रमाकांत, अगर मैं कुछ बन पाई तो वह सिर्फ तुम्हारी वजह से।” शालिनी के वकीलों ने इन सबूतों को गलत साबित करने की कोशिश की। उन्होंने कहा, “यह सब नकली हो सकते हैं। अगर शादी हुई भी थी तो यह आदमी शालिनी का पति नहीं, बस कोई जान पहचान वाला होगा।”

गवाहों की गवाही

लेकिन जब कोर्ट ने गवाह बुलाए, गांव का सरपंच, रमाकांत का पुराना स्कूल टीचर और कोचिंग सेंटर का डायरेक्टर। तब धीरे-धीरे सच्चाई सामने आने लगी। सभी ने एक ही बात कही, “शालिनी और रमाकांत की शादी सच में हुई थी और पूरा गांव इसका गवाह है। रमाकांत ही वह आदमी है जिसने शालिनी की पढ़ाई के लिए सब कुछ कुर्बान किया था।”

जज का फैसला

जज ने कुछ नहीं कहा। लेकिन उनके चेहरे पर हैरानी साफ नजर आई। उन्होंने सिर्फ अगली सुनवाई की तारीख तय की। अगली सुनवाई के दिन कोर्ट के बाहर मीडिया की भीड़ जमा थी। जब शालिनी अपनी सरकारी गाड़ी से उतरी तो सभी कैमरे उन्हीं की तरफ घूम गए। उनके चेहरे पर टेंशन साफ नजर आ रहा था। दूसरी ओर रमाकांत एक पुरानी शर्ट और घिसी हुई चप्पलों में कोर्ट के अंदर आया। लेकिन अब उसके चेहरे पर कोई डर नहीं था। उसके कदम मजबूत थे।

कोर्ट में बहस

कोर्ट में जज ने दोनों पक्षों से सवाल पूछे। शालिनी ने फिर वहीं कहा, “मैं रमाकांत को नहीं जानती।” तभी रमाकांत ने अपनी जेब से एक पुरानी डायरी निकाली। उसमें शालिनी की लिखी एक चिट्ठी थी। “रमाकांत, मैं आज इंटरव्यू देने जा रही हूं। तूने ही मुझे यहां तक पहुंचाया है। बस दुआ कर कि मैं पास हो जाऊं।” कोर्ट में एकदम सन्नाटा छा गया। शालिनी की नजरें नीचे झुक गईं। जज ने तुरंत कुछ नहीं कहा।

फैसला सुनाना

लेकिन उन्होंने फैसला सुरक्षित रख लिया। फैसले वाले दिन कोर्ट में बहुत भीड़ थी। जज ने अपना फैसला सुनाया। “यह बात सच है कि शालिनी और रमाकांत की शादी हुई थी। शालिनी वर्मा ने जानबूझकर अपने पति की पहचान छिपाई।”

संघर्ष का अंत

इस फैसले के बाद शाम को रमाकांत फिर से अपनी पुरानी समोसे की रेड़ी पर लौट आया। वह पहले की तरह तवे पर समोसे तल रहा था। लेकिन इस बार उसके चेहरे पर कोई दुख या हैरानी नहीं थी। ना कोई गार्ड था, ना कोई सरकारी गाड़ी, ना कोई अफसर। बस वही पुराना तवा, वही रेहड़ी और वही रेलवे प्लेटफार्म।

सम्मान की वापसी

लेकिन अब फर्क था। अब हर आने जाने वाला रमाकांत को इज्जत की नजर से देख रहा था। उसी स्टेशन पर एक आदमी धीरे से उसके पास आया और बोला, “रमाकांत भैया, आप जैसे लोग ही सिस्टम से लड़ सकते हैं।” रमाकांत ने कुछ नहीं कहा। बस मुस्कुराते हुए एक समोसा थाली में रखा और बोला, “गर्म है। ध्यान से खाना।”

निष्कर्ष

मित्रों, क्या आप भी मानते हैं कि सच्चाई चाहे जितनी भी दबा दी जाए, एक दिन सामने आ ही जाती है? अपनी राय कमेंट में जरूर बताएं। और अगर यह कहानी आपके दिल को छू गई हो तो वीडियो को लाइक करें और चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें।

समापन

इस कहानी ने हमें यह सिखाया कि संघर्ष और सच्चाई के रास्ते पर चलने वालों को अंततः सम्मान मिलता है। रमाकांत की कहानी उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा है जो अपने हक के लिए लड़ते हैं, चाहे हालात कितने भी कठिन क्यों न हों।

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