बेटे के गम में रो रहा था करोड़पति, भिखारी लड़की चिल्लाई—’आपका बेटा जिंदा है!’ फिर सब कुछ बदल गया

हताश करोड़पति और भिखारी की हँसी: एक सच जो सब कुछ बदल देगा
1.ताबूत के सामने टूटा हुआ करोड़पति
अर्जुन अपने इकलौते बेटे वेदांत के ताबूत के सामने खड़ा था। वह व्यक्ति जो व्यापार की दुनिया में अपने तीखे दिमाग और निर्भीक निर्णयों के लिए मशहूर था, आज पूरी तरह टूट चुका था। उसकी आँखें ताबूत पर टिकी थीं, लेकिन उसकी दृष्टि धुंधली थी। दौलत, शोहरत, ऊँचा रुतबा, बड़ी-बड़ी गाड़ियाँ—सब कुछ जैसे अर्थहीन हो गया था। उसकी कलाई पर चमकती हुई घड़ी, जो उसके पिता की आख़िरी निशानी थी, आज किसी काम की नहीं लग रही थी।
आसपास खड़े रिश्तेदार फुसफुसा रहे थे। “अर्जुन ने कितनी गाड़ियाँ मंगवाई हैं, देखो! पूरी सड़क पर सिर्फ़ उसी के मेहमानों की गाड़ियाँ खड़ी हैं।” “वह चाहे जितना अमीर बन जाए, लेकिन बेटे का दुख तो वही रहेगा जो किसी ग़रीब का होता है।”
अर्जुन को इन बातों से कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा था। उसका मन पूरी तरह सुन्न हो चुका था। वह एक बार ताबूत खोलकर आख़िरी बार अपने बेटे का चेहरा देखना चाहता था, लेकिन फिर खुद को रोक लिया—वेदांत की वह शांत, मृत देह, उसकी यादों में उसके खिलखिलाते चेहरे को धुँधला कर देगी।
2. हॉल में गूँजी वह हँसी
तभी हॉल के दरवाज़े पर अचानक हलचल मची। एक लड़की अंदर दाख़िल हुई—गहरे साँवले रंग की, साधारण कपड़ों में, लेकिन उसके चेहरे पर एक अजीब सा आत्मविश्वास था। भीड़ में से किसी ने उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन उसने एक झटके में अपना हाथ छुड़ाया और आगे बढ़ती चली गई।
अर्जुन ने ध्यान नहीं दिया, लेकिन तभी लड़की की आवाज़ पूरे हॉल में गूँज उठी। उसकी आवाज़ में अजीब सी ऊर्जा थी, जैसे वह किसी सच को जानती हो:
“यह बच्चा मरा नहीं है!”
शोरगुल थम गया। कुछ क्षणों के लिए पूरा हॉल स्तब्ध रह गया। अर्जुन का दिल एक पल के लिए जैसे धड़कना भूल गया। उसकी नज़र धीरे-धीरे उस लड़की पर पड़ी।
“क्या कहा तुमने?” उसकी आवाज़ में एक ठंडा कंपन था।
लड़की ने बिना किसी डर के उसकी आँखों में आँखें डालकर देखा और दोबारा अपनी बात दोहराई। “यह शव आपके बेटे का नहीं है। किसी ने शवों की अदला-बदली कर दी है। वेदांत ज़िंदा हो सकता है।”
भीड़ में खलबली मच गई। रिश्तेदार चिल्लाने लगे, “कौन है यह लड़की? इसे बाहर निकालो!”
लेकिन अर्जुन अब नहीं सुन रहा था। उसका ध्यान सिर्फ़ उस लड़की पर था।
3. सितारे का निशान और खिलौना कार
“तुम्हें कैसे पता?” अर्जुन ने धीमे लेकिन कठोर स्वर में पूछा।
लड़की ने एक गहरी साँस ली। “मैंने कुछ लोगों को बात करते हुए सुना। उन्होंने कहा कि वेदांत के शव की जगह किसी और का रखा गया है। उन्होंने यह भी कहा कि असली वेदांत की बाजू पर एक सितारे के आकार का निशान है।”
यह सुनते ही अर्जुन के हाथों की उँगलियाँ ठंडी हो गईं। सितारे का निशान! वेदांत की बाजू पर जन्म से ही हल्का, लेकिन स्पष्ट सितारे के आकार का निशान था। यह कोई ऐसी बात नहीं थी जो आम लोगों को पता हो। अर्जुन का दिमाग़ अचानक तेज़ी से काम करने लगा।
“अगर तुम झूठ बोल रही हो, तो इसकी क़ीमत चुकानी पड़ेगी,” अर्जुन ने धीमे स्वर में कहा।
लड़की ने हिम्मत जुटाकर बोली, “अगर मैं सच कह रही हूँ, तो क्या आप अपने बेटे को ढूँढने के लिए तैयार हैं?”
अर्जुन एक पल भी और इंतज़ार नहीं कर सकता था। उसने लड़की का हाथ पकड़ा और दरवाज़े की ओर चल पड़ा। रिश्तेदारों और मेहमानों की चिल्लाहट उनके पीछे छूट गई।
अर्जुन और लड़की, जिसका नाम प्रियंका था, एक अंधेरी गली के सामने पहुँचे।
“यही वह जगह है जहाँ मैंने उन आदमियों को बात करते सुना था,” प्रियंका ने कहा।
गली सुनसान थी। अर्जुन धीरे-धीरे आगे बढ़ा, हर कोने को ध्यान से देखता हुआ। अचानक, कुछ दूर पर एक लाल रंग की चमकीली चीज़ पड़ी थी। उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा। वह झुका और उस चीज़ को उठाया। यह एक छोटी सी खिलौना कार थी—वही कार जिसे वेदांत हर जगह अपने साथ ले जाता था।
“यह… यह वेदांत की कार है!” अर्जुन की आवाज़ में हल्का कंपन था। “अगर यह यहाँ पड़ी है, तो इसका मतलब है कि वह भी यहाँ आया था या लाया गया था।”
अर्जुन ने तुरंत अपना फ़ोन निकाला और एक नंबर डायल किया। “इमरान, मुझे तुम्हारी ज़रूरत है। मेरा बेटा ग़ायब है, और यह सिर्फ़ अपहरण नहीं लगता। कुछ बड़ा चल रहा है।”
4. भाई का काला सच
तीन दिन तक कोई सुराग नहीं मिला, लेकिन फिर इमरान का फ़ोन आया।
“मुझे कुछ मिला है। किसी ने वेदांत के केस से जुड़ी कई जानकारियाँ मिटाने की कोशिश की है। लेकिन एक नाम बार-बार दिख रहा है—विक्रम।”
“विक्रम? मेरा भाई?” अर्जुन की साँसें तेज़ हो गईं।
“हाँ। मुझे पूरा यक़ीन है। तुम्हारा छोटा भाई विक्रम इस सब में शामिल हो सकता है।”
अर्जुन की उँगलियाँ गुस्से से मुट्ठी में बदल गईं। विक्रम—जिसने हमेशा महसूस किया था कि उसके साथ अन्याय हुआ है, जब उनके पिता की संपत्ति का बँटवारा हुआ था। क्या विक्रम इतना नीचे गिर सकता था कि उसने अपने ही भतीजे को नुकसान पहुँचाने की योजना बनाई?
अर्जुन सीधे विक्रम के घर पहुँचा। विक्रम लिविंग रूम में बैठा था, आराम से।
“वेदांत कहाँ है?” अर्जुन ने सीधे पूछा।
विक्रम ने एक मुस्कुराहट के साथ कहा, “मुझे कैसे पता होगा?”
“मुझे बेवकूफ़ मत बना, विक्रम! वेदांत के लापता होने के तुरंत बाद तुमने बड़ी मात्रा में क्रिप्टो करेंसी में लेन-देन किया। तुम क्या छुपा रहे हो?”
विक्रम ने एक गहरी साँस लेते हुए कहा, “अर्जुन, कुछ बातें जितना कम जानो उतना ही अच्छा होता है। मैं बस इतना कहूँगा, अगर तुम इस मामले में ज़्यादा गहराई तक गए, तो तुम्हारी ज़िन्दगी वही नहीं रहेगी जो अब तक रही है।”
अर्जुन ने उसे कॉलर से पकड़ लिया और दीवार से चिपका दिया। “झूठ मत बोल! तूने मेरे बेटे के दिमाग़ से उसकी यादें मिटाने की कोशिश क्यों की?”
विक्रम की मुस्कुराहट गहरी हो गई। “मैंने वही किया जो मुझे करना था। तूने हमेशा मुझे पीछे रखा। मैं तो बस तुझे तेरी असली क़ीमत दिखाना चाहता था—खोने का दर्द क्या होता है।”
“तूने वेदांत को क्या सिखाया?”
विक्रम ने बिना हिचक उत्तर दिया, “सिर्फ़ वही जो उसे जानना चाहिए था—कि उसका कोई पिता नहीं है, कि उसे छोड़ दिया गया था, कि अब उसे सिर्फ़ अपने अंकल पर भरोसा करना चाहिए।”
5. बेटे की आँखों में अजनबीपन
अर्जुन ने विक्रम को छोड़ दिया। अब उसे किसी भी तरह वेदांत को ढूँढना था।
इमरान से मिली आख़िरी जानकारी के अनुसार, वेदांत को एक पुराने, जर्जर मकान में छिपाया गया था। अर्जुन और प्रियंका उस जगह पहुँचे और खिड़की से अंदर झाँका।
वेदांत ज़मीन पर बैठा था, सिर झुकाए। उसके छोटे हाथों में एक पुराना कपड़े का टुकड़ा था जिसे वह कस कर पकड़े हुए था। वह बिल्कुल चुप था।
अर्जुन तुरंत खिड़की से अंदर छलाँग लगाई। “वेदांत! बेटा, मैं हूँ तुम्हारा पापा!”
वेदांत ने धीरे से सिर उठाया। उसकी आँखों में अनजानापन था, जैसे वह किसी अजनबी को देख रहा हो। कुछ पल तक उसने अर्जुन को देखा, फिर धीमी लेकिन सख़्त आवाज़ में कहा, “मुझे मत छुओ।”
अर्जुन का दिल धड़कना भूल गया। “बेटा, यह मैं हूँ! तुम्हारा पापा! मैं तुम्हें लेने आया हूँ!”
वेदांत के चेहरे पर उलझन थी। “मुझे पापा मत कहो। मेरे कोई पापा नहीं हैं।”
“यह किसने कहा तुमसे?”
“मेरे अंकल ने। उन्होंने कहा कि मेरा कोई पापा नहीं है, कि मुझे छोड़ दिया गया था।”
अर्जुन को ऐसा महसूस हुआ जैसे किसी ने उसके सीने में चाकू घोंप दिया हो।
“मेरा नाम वेदांत नहीं है। मेरा नाम राहुल है।” उसने साफ़ आवाज़ में कहा।
यह सिर्फ़ एक साधारण अपहरण नहीं था—यह उसके दिमाग़ को पूरी तरह बदलने की कोशिश थी।
तभी बाहर से एक तेज़ आवाज़ आई: “कोई है अंदर!”
चार आदमी हथियार लिए दरवाज़ा तोड़कर अंदर घुसे। अर्जुन ने बिना एक सेकंड गँवाए वेदांत को उठाया और पीछे की ओर भागा। प्रियंका ने तेज़ी से एक लकड़ी की कुर्सी उठाई और उन आदमियों पर फेंक दी।
बाहर गाड़ी तैयार खड़ी थी। अर्जुन ने वेदांत को सीट पर बिठाया और पूरी रफ़्तार से आगे बढ़ा।
6. लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई
गाड़ी तेज़ी से सुनसान गलियों को पार कर रही थी। अर्जुन ने दर्पण में देखा—वेदांत चुपचाप बैठा था। उसकी आँखें अब भी अजनबियों की तरह उसे देख रही थीं। अर्जुन को महसूस हो रहा था कि उसका बेटा ठीक उसके सामने बैठा है, लेकिन उसे पहचानता नहीं है।
प्रियंका ने धीमी आवाज़ में पूछा, “अब क्या करें?”
अर्जुन ने वेदांत की ओर देखा, जो अब भी अपनी जगह पर जड़ होकर बैठा था। उसकी आवाज़ में ठंडा क्रोध था।
“हमें विक्रम से सारी सच्चाई उगलवानी होगी। लेकिन अब से… अब से कोई भी ताक़त उसे और उसके बेटे को अलग नहीं कर सकेगी।”
अर्जुन जानता था कि एक पिता और पुत्र के बीच का यह रिश्ता, जो झूठ और धोखे से तोड़ा गया था, उसे फिर से बनाने में बहुत वक़्त लगेगा। लेकिन उसकी आँखों में अब दौलत का अहंकार नहीं, बल्कि पिता का अटूट संकल्प था। वह अपने बेटे की यादों को वापस लाएगा, चाहे इसमें उसे अपनी पूरी दौलत, अपनी पूरी ताक़त क्यों न लगानी पड़े।
यह कहानी अर्जुन के जीवन का एक नया मोड़ है। क्या आप चाहते हैं कि हम इस पर चर्चा करें कि अर्जुन अपने बेटे वेदांत की यादें वापस लाने के लिए क्या रणनीतियाँ अपना सकता है?
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