दिल्ली की सर्द रात में तन्मय की कहानी
दिल्ली की सर्दियों की वह रात थी, जब ठंडी हवाओं के साथ एक लड़के की किस्मत भी जम गई थी। तन्मय, जो राजस्थान के एक छोटे से गांव से बड़े-बड़े सपने लेकर दिल्ली आया था, आज कनॉट प्लेस के एक कोने में चुपचाप बैठा था। उसकी आंखों में आंसू नहीं थे, बस एक खालीपन था। आज उसे कॉल सेंटर से भी निकाल दिया गया था। मैनेजर ने कहा, “तुम्हारी अंग्रेज़ी कमजोर है, ग्राहकों से बात नहीं कर सकते।” जेब में सिर्फ 800 रुपये बचे थे, एक फटा बैग और टूटे हुए इरादे।
ठीक उसी वक्त पास की एक गली से चीखें सुनाई दीं—”बचाओ, कोई है मेरी मदद करो!” तन्मय घबराकर इधर-उधर देखने लगा। वह उठा और आवाज की तरफ दौड़ा। थोड़ी दूर पर भीड़ जमा थी, सब अपने-अपने मोबाइल से वीडियो बना रहे थे। किसी ने कहा, “पुलिस बुलाओ यार,” तो कोई बोला, “भाई इसमें फंसना ठीक नहीं है।” बीच सड़क पर एक औरत पड़ी थी, करीब 28-29 साल की। उसके सिर से खून बह रहा था और चेहरे पर दर्द साफ झलक रहा था। वह कह रही थी, “प्लीज मुझे कोई हॉस्पिटल ले चलो, मैं मर जाऊंगी।”

तन्मय ने एक पल भी नहीं सोचा, वह उसके पास पहुंचा। बैग से कपड़ा निकालकर उसने खून रोकने की कोशिश की और बोला, “बस दो मिनट, मैं आपको हॉस्पिटल ले चलता हूं।” उसने एक ऑटो रोका। ऑटो वाला बोला, “भाई ये तो खून से लथपथ है, मेरी गाड़ी खराब हो जाएगी।” तन्मय की आंखों में गुस्सा था, “अगर तेरी मां होती तो भी यही कहता?” और बिना इंतजार किए उसने उस औरत को गोद में उठाया और ऑटो में बैठ गया।
रास्ते भर उसकी सांसें तेज थीं। तन्मय बार-बार उससे बात करता रहा, “आंखें खुली रखिए, बस पांच मिनट और, आप ठीक हो जाएंगी।” जब तक वे हॉस्पिटल पहुंचे, तन्मय की शर्ट पूरी तरह खून से लाल हो चुकी थी। उसने जोर से चिल्लाया, “डॉक्टर साहब, इमरजेंसी है!” डॉक्टर्स दौड़े आए और उस औरत को तुरंत अंदर ले गए। तन्मय बाहर बेंच पर गिर गया, उसके हाथ कांप रहे थे। जब बिल आया, तो उसने अपने बचे 800 रुपये और मोबाइल तक गिरवी रख दिया दवाइयों के लिए।
रात के तीन बजे डॉक्टर बाहर आया, “लड़के, तुमने बड़ा काम किया। दस मिनट और देर होती तो जान नहीं बचती। सिर में गहरी चोट है, दो पसलियां भी टूटी हैं। सुबह तक होश आ जाएगा।” तन्मय की जान में जान आई। वह पूरी रात वही बेंच पर बैठा रहा। सुबह जब उस औरत को होश आया, उसने धीरे से पूछा, “तुम कौन हो?” तन्मय बोला, “मैं बस एक राहगीर हूं।” “तुमने मेरी जान बचाई है, नाम क्या है तुम्हारा?” “तन्मय।” “मैं सोनम हूं।”
सोनम ने उसे ऊपर से नीचे देखा—फटे कपड़े, खून से सने हाथ, सस्ती चप्पलें। उसके चेहरे पर एक अजीब सा भाव आया। बोली, “तुम कहां रहते हो?” “अभी कहीं नहीं, कोई परमानेंट घर नहीं है। कभी हॉस्टल में तो कभी धर्मशाला में दिन निकल रहे हैं। मैं नया हूं दिल्ली में।” सोनम की आवाज में अचानक दूरी आ गई, “ओह अच्छा, वैसे थैंक यू। मैं अपने लोगों को बुला लूंगी।” तन्मय समझ नहीं पाया, सोनम का लहजा अचानक ठंडा क्यों हो गया। उसने बस इतना कहा, “जी, आप आराम कीजिए, मैं चलता हूं।” “हां-हां जाओ, तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया।”
तन्मय बाहर आ गया। उसे अजीब लग रहा था—उसने किसी की जान बचाई थी, लेकिन बदले में मिला सिर्फ एक थैंक यू। वह सोच रहा था, क्या मैंने गलत किया? क्या सिर्फ इसलिए कि मैं गरीब हूं, मेरी इज्जत नहीं? लेकिन फिर उसने खुद को समझाया, “नहीं, मैंने सही किया। इंसानियत किसी बदले के लिए नहीं होती।” वह अस्पताल से बाहर निकला। जेब खाली थी, मोबाइल भी चला गया था, लेकिन दिल में संतोष था—उसने आज किसी की जिंदगी बचा ली थी।
भूख किसी की मजबूरी नहीं देखती। तन्मय ने अपने लिए एक ढाबे में काम ढूंढ लिया। मालिक ने उसे पीछे के कमरे में रहने की जगह दे दी थी। वह अपनी जिंदगी में आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा था, लेकिन मन में कहीं न कहीं उस रात की बात अटकी हुई थी।
उधर सोनम को कुछ दिनों में अस्पताल से छुट्टी मिल गई। जब उसके पति रोहन आए तो रिसेप्शन पर बिल क्लियर करते वक्त स्टाफ ने बताया, “सर, पहले 800 रुपये एडवांस में जमा हो चुके हैं और एक मोबाइल गिरवी रखा है।” “किसने?” “वही लड़का जो मैडम को लेकर आया था, तन्मय नाम था।” रोहन ने बेपरवाही से कहा, “ओ, तो बाकी बिल मैं भर देता हूं। मोबाइल भी यही रहने दो।” सोनम वही खड़ी सब सुन रही थी, लेकिन उसने तब कुछ नहीं कहा।
घर आकर उसने रोहन से कहा, “उस लड़के ने मुझे बचाया था।” रोहन ने उदासीनता से जवाब दिया, “अच्छा किया उसने, अब तुम आराम करो।” एक महीना बीत गया। सोनम अब ठीक होने लगी थी। एक दिन वह अपनी सहेली रिया के साथ कॉफी शॉप में बैठी थी। रिया ने पूछा, “वैसे जिसने तुम्हें बचाया उसका क्या हुआ?” सोनम ने लापरवाही से कहा, “पता नहीं, कोई गरीब लड़का था, कहीं भटक रहा होगा।” रिया चौकी, “सोनम, उसने तुम्हारी जान बचाई और तुम ऐसे बोल रही हो?” सोनम ने कंधे उचकाए, “अरे उसने जो करना था कर दिया, मैं क्या करूं अब?” रिया गुस्से में बोली, “कम से कम ढंग से धन्यवाद तो दे सकती थी, पैसे दे सकती थी, उसकी कुछ मदद हो जाती।” सोनम चिढ़ते हुए बोली, “तू ज्यादा सेंटी मत हो, मैं ठीक हूं बस।” रिया को यह बात बहुत बुरी लगी। वह वहां से उठकर चली गई। फोन कॉल पर इसी बात को लेकर सोनम और रिया में नोकझोंक हो गई।
रात को रिया ने सोनम को मैसेज किया, “तुझे अपनी औकात याद रखने की जरूरत है। तू जो है वो अपने पापा की वजह से है, खुद की तो कोई पहचान है नहीं।” सोनम ने मैसेज पढ़ा और फोन फेंक दिया, लेकिन रातभर नींद नहीं आई।
अगले दिन उसके पिताजी घर आए। उन्हें पूरी घटना के बारे में पता चल गया था। पिताजी ने पूछा, “सोनम, जिस लड़के ने तेरी जान बचाई, तूने उसका हालचाल पूछा?” सोनम चुप रही। पिताजी की आवाज सख्त हो गई, “मैंने तुझे इतना अहंकारी नहीं बनाया था बेटी। जिसने तेरी जान बचाई, उसके प्रति तेरी कोई जिम्मेदारी नहीं?” सोनम की आंखें भर आईं, “पापा वो बहुत गरीब था।” उन्होंने गुस्से में कहा, “तो क्या गरीब होने से उसकी इंसानियत खत्म हो गई? बेटी, अमीरी से बड़ा इंसान का दिल होता है और तूने उस दिल की कदर नहीं की।” पिताजी उठकर चले गए। सोनम वहीं बैठी रोती रही।
अगले दिन सोनम अकेले अस्पताल गई। रिसेप्शन पर पूछा, “उस लड़के का मोबाइल अभी भी यहीं है?” “हां मैम, अभी तक नहीं लिया उसने।” सोनम ने मोबाइल ले लिया। फोन में एक नंबर सेव था—तन्मय के दोस्त किशोर का। सोनम ने हिम्मत करके नंबर मिलाया, “हेलो, जी मैं तन्मय के बारे में जानना चाहती हूं।” “आप कौन?” “मैं उसकी फ्रेंड बोल रही हूं। उसका नंबर नहीं लग रहा है, क्या आपको उसके बारे में कुछ पता है?” किशोर ने कहा, “हां, तन्मय का कॉल आया था, बोला उसका फोन खो गया। वह किसी ढाबे में काम करता है।” सोनम ने किशोर से ढाबे वाले का नंबर लिया। किशोर कुछ और पूछ पाता, इससे पहले सोनम ने कॉल कट कर दिया।
उसके बाद सोनम ने तुरंत ढाबे वाले को कॉल किया, “क्या आपके यहां तन्मय नाम का लड़का काम करता है?” “जी हां, करता है। आप कौन?” सोनम ने झूठ बोला, “मैं उसकी दूर की रिश्तेदार हूं।” मालिक ने पता बता दिया। अगले दिन सोनम उस ढाबे पर पहुंची। तन्मय बाहर फर्श पोंछ रहा था। जब उसकी नजर सोनम पर पड़ी, वह सकपका गया, “आप यहां?” सोनम ने मोबाइल आगे बढ़ाया, “तुम्हारा फोन, मैंने अस्पताल से निकलवा लिया।” तन्मय ने फोन लिया और बोला, “शुक्रिया मैम।” सोनम ने एक लिफाफा निकाला, “यह 15,000 रुपये हैं, तुम्हारी मदद के बदले।” तन्मय ने लिफाफा वापस कर दिया, “मैम, मुझे पैसों की जरूरत है, लेकिन दया की नहीं। मैंने आपको इसलिए नहीं बचाया था कि मैं आपसे पैसे लूंगा।”
सोनम को एक गहरा झटका लगा। फिर बात बदलते हुए बोली, “तुम्हें गुस्सा नहीं आया मुझ पर? मैंने तुम्हारे साथ बहुत बुरा किया।” तन्मय मुस्कुराया, “मैं गुस्सा होकर भी क्या ही कर लेता। अमीर और गरीब की खाई गुस्से से कभी नहीं भर पाएगी। आप ठीक हैं, मैं इतना कर पाया, मेरे लिए यही बड़ी बात है।” सोनम की आंखों से आंसू गिरने लगे, “मुझे माफ कर दो तन्मय, मैं बहुत गलत थी।” तन्मय ने कहा, “आपकी कोई गलती नहीं थी मैम, दुनिया ऐसे ही चलती है।” सोनम रोते हुए वहां से चली गई। उस दिन उसे एहसास हुआ कि सच्चा इंसान वह नहीं है जो अमीर है, बल्कि वह है जिसके पास इंसानियत है।
उस दिन के बाद सोनम बदल गई थी, लेकिन अहंकार इतनी आसानी से नहीं जाता। वह तन्मय को भूलना चाहती थी, लेकिन भूल नहीं पा रही थी। सोनम अब पूरी तरह ठीक हो चुकी थी। एक शाम वह रोहन के साथ एक महंगे रेस्टोरेंट में डिनर कर रही थी। तभी उसकी नजर खिड़की से बाहर पड़ी—सड़क पर तन्मय खड़ा था, हाथ में सब्जियों का थैला। सोनम का दिल बेचैन हो गया। उसने रोहन से कहा, “मैं बाथरूम जाकर आती हूं।” वह बाहर निकली और तन्मय के पास गई, “तुम यहां?” तन्मय चौंका, “मैम, मैं सब्जी ले रहा था ढाबे के लिए।” सोनम ने देखा, उसके कपड़े अभी भी वही पुराने थे, चप्पल फटी हुई थी। “तुम ठीक हो?” तन्मय मुस्कुराया, “हां मैम, बिल्कुल।” सोनम कुछ कहना चाहती थी, लेकिन शब्द नहीं निकले। तभी रोहन बाहर आ गया, “सोनम, तुम यहां क्या कर रही हो?” सोनम घबरा गई, “वो… यह वही लड़का है जिसने मुझे बचाया था।” रोहन ने तन्मय को ऊपर से नीचे तक देखा, फिर उसने जेब से 200 रुपये निकालकर तन्मय की तरफ बढ़ाए, “लो, कुछ खा लो।” तन्मय की आंखों में दर्द और बेइज्जती झलकने लगी, उसने पैसे नहीं लिए, “मुझे भीख नहीं चाहिए सर।” रोहन हंसा, “अरे भीख नहीं है, इनाम है।” तन्मय ने एक गहरी सांस ली, “सर, आपकी पत्नी की जान बचाना मेरा फर्ज था, और मुझे नहीं लगता उनकी जान की कीमत 2
News
एक दिन जिले की सबसे बड़ी अधिकारी डीएम नुसरत की मां साधारण कपड़ों में एक सामान्य महिला की तरह शहर के सबसे बड़े सरकारी बैंक में पैसे निकालने गईं। बैंक के सभी कर्मचारी उन्हें देखकर भिखारी समझने लगे और अपमानित करने लगे। किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि यह साधारण दिखने वाली महिला वास्तव में जिले की डीएम मैडम की मां है।
बैंक में डीएम नुसरत की मां के साथ हुआ अपमान – एक प्रेरणादायक कहानी एक दिन जिले की सबसे बड़ी…
सोनिया और शारदा देवी की संघर्षपूर्ण कहानी
सोनिया और शारदा देवी की संघर्षपूर्ण कहानी रामगढ़ गांव के खेतों में फसल काटने के बाद सोनिया अपनी मां शारदा…
खूबसूरत लड़की समझकर दरोगा ने बातामीजी की फिर लड़की ने जो किया देख कर रूह कांप जाएगी ips story hind
सोनिया और शारदा देवी की संघर्षपूर्ण कहानी रामगढ़ गांव के खेतों में फसल काटने के बाद सोनिया अपनी मां शारदा…
एक अमीर बाप की बिगड़ी औलाद और एक साधारण
एक अमीर बाप की बिगड़ी औलाद और एक साधारण लड़की की कहानी मुंबई की बड़ी सोसाइटी में रहने वाला 24…
विकास की सच्चाई: एक साधारण कर्मचारी से कंपनी के असली मालिक तक
विकास की सच्चाई: एक साधारण कर्मचारी से कंपनी के असली मालिक तक सुबह का नजारा किसी फिल्मी दृश्य से कम…
Chhath Mahaparv: A Celebration of Faith, Unity, and Cleanliness in Lucknow
Chhath Mahaparv: A Celebration of Faith, Unity, and Cleanliness in Lucknow Lucknow, Uttar Pradesh – The auspicious festival of Chhath…
End of content
No more pages to load




