“ये 500 करोड़ का इंजन है, हाथ मत लगाओ!” – इंजीनियर चिल्लाया… फिर कबाड़ी वाले लड़के ने क्या किया!
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यह कहानी एक छोटे से कबाड़ी लड़के बिरजू की है, जिसने अपने हुनर और लगन से देश के सबसे बड़े पावर प्लांट में कामयाबी की मिसाल कायम की।
इंद्रप्रस्थ पावर प्लांट के विशाल मैदान में एक दिन बड़ा आयोजन था। देश का पहला स्वदेशी सुपर टर्बो जनरेटर, जिसमें 500 करोड़ रुपए और पांच साल की मेहनत लगी थी, का उद्घाटन होना था। लेकिन मशीन स्टार्ट नहीं हो रही थी। प्रोजेक्ट के चीफ इंजीनियर साहिल वर्मा और उनकी टीम पसीने-पसीने थे। वे हर कोशिश कर रहे थे, लेकिन मशीन की स्क्रीन पर सिर्फ एरर दिख रहा था।
उसी बीच सुरक्षा घेरों की एक टूटी जाली से 12 साल का एक लड़का, बिरजू, अंदर घुस गया। वह कबाड़ बीनने वाला था, लेकिन उसकी आंखों में मशीनों के लिए एक अलग चमक थी। उसने मशीन की आवाज़ सुनी और महसूस किया कि इंजन की एक छोटी सी नली या वॉल्व ढीली है। जब वह उसे ठीक करने लगा, तो साहिल ने उसे डांटा और कहा कि यह 500 करोड़ का इंजन है, कोई खिलौना नहीं। लेकिन बिरजू ने मासूमियत से कहा कि मशीन सांस नहीं ले पा रही है, उसे ठीक करना होगा।
साहिल ने बिरजू को वहां से भगा दिया, लेकिन बिरजू ने फुर्ती से उस ढीले नट को कस दिया। अचानक मशीन जोर से चलने लगी और सब लोग तालियां बजाने लगे। साहिल ने इसे अपनी टीम की सफलता बताया, लेकिन सेठ गिरधारी लाल, जो प्लांट के मालिक थे, ने बिरजू की तारीफ की और उसे स्पेशल ट्रेनिंग स्कॉलरशिप देने की घोषणा की।
बिरजू ने वह स्कॉलरशिप लेने से मना कर दिया क्योंकि उसकी मां बीमार थी और वह कबाड़ बेचकर उनकी देखभाल करता था। सेठ जी ने उसकी मां की दवा और रोटी की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली और बिरजू से वादा लिया कि वह अपनी कला को न खोएगा और एक दिन बड़ा इंजीनियर बनेगा।
बिरजू का नया जीवन शुरू हुआ, लेकिन उसे अंग्रेजी और तकनीकी किताबें पढ़ने में बहुत मुश्किल हुई। साहिल वर्मा उसे तंग करता और सबके सामने अपमानित करता। फिर एक दिन प्लांट में एक महंगी इलेक्ट्रॉनिक कंट्रोल यूनिट जल गई। साहिल ने बिरजू को चुनौती दी कि वह इसे ठीक करे, वरना उसे प्लांट से निकाल दिया जाएगा।
बिरजू ने अपनी कबाड़ी की थैली से पुराने रेडियो के पार्ट्स निकाले और पूरी रात मेहनत करके सर्किट को ठीक किया। सुबह जब साहिल और टीम आई, तो मशीन सुचारू रूप से चल रही थी। साहिल हैरान और गुस्से में था, लेकिन बिरजू ने बताया कि बिजली को बस सही रास्ता चाहिए होता है।
साहिल ने फिर एक साजिश रची। वार्षिक सुरक्षा निरीक्षण के दिन उसने बिरजू को एक खतरनाक वाल्व खोलने को कहा, बिना पावर बंद किए। यह जानलेवा भाप निकल सकती थी। लेकिन बिरजू ने मशीन की चेतावनी समझी और पावर कट करके वाल्व खोला, जिससे बड़ा हादसा टल गया।
सेठ गिरधारी लाल और जर्मन ऑडिटर मिस्टर स्टीव ने बिरजू की बहादुरी की तारीफ की और साहिल को सजा दी। साहिल को प्लांट से निकाल दिया गया। सेठ जी ने बिरजू को कंपनी का हेड ऑफ टेक्निकल ऑपरेशंस नियुक्त किया, भले ही उसके पास डिग्री न थी।
बिरजू ने सेठ जी से एक स्कूल खोलने की विनती की, जहां मशीनों की पढ़ाई हो लेकिन रट्टा नहीं। सेठ जी ने उस पर विश्वास किया और इंद्रप्रस्थ पावर प्लांट के पास बिरजू इंस्टिट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग की स्थापना की।
अब बिरजू खुद एक सफल इंजीनियर था, जो अपने जैसे हजारों बच्चों को मशीनों की भाषा सिखा रहा था, ताकि वे भी अपनी काबिलियत से दुनिया में नाम कमा सकें।
यह कहानी हमें सिखाती है कि असली ज्ञान किताबों में नहीं, बल्कि अनुभव, लगन और ईमानदारी में होता है। और कभी-कभी, जो समाज कचरा समझता है, वही असली हीरा होता है।
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