“अकेली महिला SDM का साहस: Neelam Verma ने कर दिखाया वो, जो कोई सोच भी नहीं सकता!”
एसडीएम नीलम वर्मा की हिम्मत और ईमानदारी की कहानी
सादी सी साड़ी, बिना सरकारी गाड़ी या सिक्योरिटी के, एसडीएम नीलम वर्मा अपनी इलेक्ट्रॉनिक स्कूटी पर बैठी तेज़ी से स्कूल की सहेली की शादी में जा रही थीं। आम लड़की की तरह सड़क पर स्कूटी चलाते हुए जैसे ही वह शहर के करीब पहुँचीं, सामने पुलिस चौकी नज़र आई। चौकी के बाहर तीन-चार पुलिसकर्मी खड़े थे, और बीच में दरोगा संजय कुमार वर्दी में तना हुआ खड़ा था।
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दरोगा ने डंडे के इशारे से नीलम को रुकने को कहा। नीलम ने स्कूटी साइड में लगाई। दरोगा ने कड़क आवाज़ में पूछा, “कहाँ जा रही हो?” नीलम ने शांति से जवाब दिया, “सहेली की शादी में जा रही हूँ।” संजय कुमार ने ऊपर से नीचे तक नीलम को देखा, फिर मुस्कुराकर बोला, “हेलमेट क्यों नहीं पहना? स्कूटी भी बहुत तेज़ चला रही थी, अब चालान भुगतना पड़ेगा।”
नीलम समझ गई कि दरोगा की नीयत ठीक नहीं है। उसने कहा, “सर, मैंने कोई नियम नहीं तोड़ा है।” लेकिन दरोगा ने कानून सिखाने की धमकी दी और सिपाही से फुसफुसाया, “बिना खुराक के नहीं मानेगी।” अचानक दरोगा ने नीलम के गाल पर थप्पड़ जड़ दिया। नीलम का सिर चकरा गया, लेकिन उसने खुद को संभाल लिया। उसकी आँखों में गुस्सा साफ़ दिख रहा था।
दरोगा ठहाका मारकर हँसा, “अकड़ अभी बाकी है।” सिपाही आगे बढ़ा, “सर, इसे थाने ले चलो। वहाँ आराम से सेवा करेंगे।” नीलम ने हाथ छुड़ाते हुए चेतावनी दी, “हाथ लगाने की कोशिश मत करना, अंजाम अच्छा नहीं होगा।” लेकिन पुलिस वालों ने उसकी बात अनसुनी कर दी। एक सिपाही ने नीलम के बाल खींचे और घसीटने की कोशिश की। दर्द से नीलम कराह उठी, लेकिन उसने अपनी पहचान नहीं बताई। वह देखना चाहती थी कि ये लोग कितनी गिरावट दिखा सकते हैं।
स्कूटी पर डंडा मारते हुए एक पुलिसकर्मी बोला, “अब तेरा खिलौना बनाकर खेलेंगे।” नीलम जान गई थी कि अब उसे थाने ले जाया जाएगा। दरोगा ने चिल्लाकर कहा, “इसे थाने में समझाएँगे।” नीलम अब भी चुप थी। पुलिस वालों ने उसे पकड़कर थाने ले गए। वहाँ दरोगा ने झूठा केस बना दिया—चोरी और ब्लैकमेलिंग का। नीलम को सड़े हुए लॉकअप में डाल दिया गया।
कुछ देर बाद एसओ सुरेंद्र सिंह थाने पहुँचे। उन्होंने नीलम को देखा और पूछा, “इसका जुर्म क्या है?” संजय कुमार ने कहा, “चेकिंग में बदतमीजी की थी।” सुरेंद्र को शक हुआ, उन्होंने नीलम से नाम पूछा। नीलम ने कहा, “नेहा कपूर।” लेकिन दरोगा ने धमकी दी, “झूठ बोलोगी तो भारी पड़ेगा।”
इसी बीच, बाहर एक बड़ी सरकारी गाड़ी आई। डीएम साहब खुद थाने पहुँचे। उन्होंने सारा मामला देखा, फाइलें पढ़ीं और नीलम से पूछा, “तुम्हारा नाम क्या है?” पहली बार नीलम मुस्कुराई और बोली, “एसडीएम नीलम वर्मा।” पूरे थाने में सन्नाटा छा गया! दरोगा संजय कुमार के होश उड़ गए। डीएम साहब ने संजय कुमार से पूछा, “एक सीनियर अफसर पर झूठा इल्जाम कैसे लगा दिया?” संजय सफाई देने ही वाला था, लेकिन एसओ सुरेंद्र सिंह ने कहा, “सर, मैंने पहले ही शक जताया था।”
नीलम वर्मा ने सख्त आवाज़ में फैसला सुनाया, “संजय कुमार, अब तुम्हारी सस्पेंशन पक्की है और मुकदमा भी चलेगा।” तभी संजय ने ट्रांसफर ऑर्डर दिखाया, लेकिन रिकॉर्ड चेक करने पर पता चला कि उसने अभी तक चार्ज नहीं सौंपा है। नीलम ने कहा, “अब तेरा नया ठिकाना वही होगा जहाँ तू दूसरों को डालता था।”
संजय ने बाकी पुलिसवालों की तरफ इशारा किया, “यह सब मेरे साथ हैं।” नीलम ने डीएम से कहा, “अब पूरा थाना ही साफ़ करना पड़ेगा।” डीएम ने हामी भरी, “अब सबका हिसाब होगा।” पत्रकारों ने खबर फैलाई—पूरा थाना लाइन हाजिर!
तभी एसएसपी साहब थाने पहुँचे। नीलम ने उनके काले धंधों की फाइल सामने रख दी। डीएम ने तुरंत आदेश दिया, “गिरफ्तार करो।” पूरे जिले में तूफान मच गया। अगले दो दिन में 40 से ज़्यादा पुलिस अफसर, 10 बड़े अधिकारी और कई नेता गिरफ्तार हो गए। फरीदपुर जिले की हवा बदल गई।
अब चारों तरफ एक ही चर्चा थी—एसडीएम नीलम वर्मा की ईमानदारी और हिम्मत जिसने पूरे सिस्टम को हिला कर रख दिया। प्रशासन में अब एक नई सोच थी, और सबसे बड़ा डर था कि कोई भी गड़बड़ी करने वाला बच नहीं पाएगा।
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