अरबपति के अंतिम संस्कार में हलचल मच गई – जब एक बच्चा दूसरे को गले लगाकर बोला एक बात!

अंतिम संस्कार की हवेली – विरासत, सच्चाई और एक बच्चे की लड़ाई

संगीत की हल्की धुन हवेली के सफेद फूलों के बीच से गुजर रही थी। हवेली के आंगन में अगरबत्ती की खुशबू और काले कपड़ों में आए लोग एक गंभीर माहौल बना रहे थे। सबकी निगाहें श्री विक्रम सिंह की तस्वीर पर थीं, जो फूलों की मालाओं से सजी थी। मीडिया, व्यापारिक पार्टनर और चर्चित हस्तियाँ भी वहाँ मौजूद थीं, लेकिन उनके चेहरों पर चिंता थी – क्या वाकई सब शोक मना रहे हैं या संपत्ति के बंटवारे की फिक्र में हैं?

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श्री सिंह का परिवार एक पंक्ति में बैठा था। उनकी पत्नी का चेहरा भावहीन, आँखों में उदासी लेकिन कठोरता थी। बेटे-बेटियाँ और रिश्तेदार सब शोक व्यक्त कर रहे थे, लेकिन फुसफुसाहटें बता रही थीं कि असली चिंता विरासत को लेकर है।

तभी, सुरक्षा गार्ड की नजरों से बचकर एक दुबला-पतला लड़का, घिसे कपड़ों और टूटी जूतियों के साथ, एक छोटे बच्चे को गोद में लिए अंदर आ गया। पहले किसी ने ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब वह श्री सिंह की तस्वीर के पास पहुँचा तो सबकी निगाहें उस पर टिक गईं। माहौल अचानक ठहर गया। कुछ लोग नाराज हुए, कुछ ने सोचा यह भीख मांगने आया है।

लड़का हिम्मत के साथ बोला, “मुझे देर से आने का खेद है। मैं इस बच्चे के लिए न्याय माँगने आया हूँ। यह श्री विक्रम सिंह का खून है।”

पूरा हॉल सन्न रह गया। श्री सिंह की पत्नी और बच्चों के चेहरे बदल गए। बड़ा बेटा गुस्से से लाल हो गया, “क्या बकवास कर रहा है?” बच्चा डर से रोने लगा। लड़का बोला, “हम हंगामा नहीं करना चाहते। मेरे पास सबूत हैं। मैं धोखा देने नहीं आया हूँ।”

वकील आगे आया, “तुम कौन हो? निराधार आरोप लगाना अपराध है।” लड़के ने सिर ऊँचा रखा, “मैं वही अनाथ हूँ, जिसकी श्री सिंह ने जान बचाई थी। अब मैं इस बच्चे के लिए सम्मानजनक जीवन का अधिकार माँगने आया हूँ।”

श्री सिंह की सबसे छोटी बेटी ने तिरस्कार से कहा, “अगर पैसे चाहिए तो कहीं और जाकर मांगो।” लड़का बोला, “मुझे पैसे नहीं चाहिए, बस चाहता हूँ कि वह अपने बेटे को स्वीकार करें।”

वकील ने धमकी दी, “अगर कोई आधार नहीं है तो तुम्हारे शब्द मानहानि माने जाएँगे।” लड़का बोला, “मेरे पास पर्याप्त सबूत हैं, लेकिन अभी सब पेश नहीं कर सकता। मैंने उनसे वादा किया था।”

कुछ मेहमानों ने उपहास किया, कुछ घृणा से देख रहे थे, लेकिन लड़का डटा रहा। उसने बताया कि उसकी माँ गोपाल की माँ थी, जो मरने से पहले कह गई कि बेटे को श्री सिंह के पास ले जाना, जो उसके पिता हैं। लड़के ने कंगन, चिट्ठी और अंगूठी जैसे सबूत दिखाए।

पत्नी ने कहा, “अगर सच है तो डीएनए टेस्ट होगा। अगर झूठ है तो परिणाम भुगतना पड़ेगा।”

राजू और गोपाल को गेस्ट रूम में रखा गया। रात को परिवार के कुछ सदस्य साजिशें करने लगे। राजेश ने गुर्गों को बुलाया, “बच्चे को गायब कर दो।” राजू पर हमला हुआ, लेकिन प्रबंधक ने बचाया। हंगामे में एक चांदी की अंगूठी और पुरानी चिट्ठी मिली – जिसमें श्री सिंह ने अपने नाजायज बेटे को स्वीकार करने की बात लिखी थी।

सुबह होते ही डीएनए टेस्ट के नतीजे आए – गोपाल वाकई श्री सिंह का बेटा है। विरोधी गुट सदमे में, कुछ पश्चाताप में डूबे। राजू ने कहा, “मैं बस चाहता हूँ कि बच्चे को न्याय मिले।”

श्री सिंह की पत्नी ने घोषणा की, “संपत्ति नियमों के अनुसार फिर से विभाजित होगी। लालच को न्याय पर हावी ना होने दें।”

राजू और गोपाल के लिए एक नया भविष्य खुला। राजू ने खुद से वादा किया, “तुम हमेशा न्यायपूर्ण जीवन जियोगे। चाहे कितने भी तूफान आए, मैं तुम्हारी रक्षा करूंगा।”

हवेली के दरवाजे पर सुबह की हवा एक नई शुरुआत का संकेत दे रही थी। प्रबंधक और प्रिया जैसे कुछ लोग चुपचाप देख रहे थे, समझ गए थे – सच्चाई और दया हमेशा जीतती है। सिंह परिवार को अब खुद को बदलना होगा, पश्चाताप और ईमानदारी के साथ।

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याद रखें – सच्चाई, दया और न्याय ही सबसे बड़ी विरासत है।

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