पुणे रेलवे स्टेशन की रात: गोपाल की संघर्ष और उम्मीद की कहानी

रात के करीब 10 बजे पुणे रेलवे स्टेशन का प्लेटफार्म नंबर तीन अभी भी हलचल से भरा था। ऑटो स्टैंड पर लगभग 810 ऑटो वाले खड़े थे, कुछ पान चबा रहे थे, कुछ मोबाइल में व्यस्त थे और कुछ खाली सवारी का इंतजार कर रहे थे। इसी भीड़ में था गोपाल, एक 32 वर्षीय ऑटो चालक। साधारण कपड़े, हल्की दाढ़ी और थके हुए चेहरे पर आत्मसम्मान की चमक साफ दिख रही थी।

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गोपाल का दिन लंबा और थका देने वाला था, लेकिन उसकी आंखों में नींद नहीं थी। उसके पिता अस्पताल में भर्ती थे और इलाज के लिए हर दिन के कुछ रुपए उसके लिए अनमोल थे।

तभी प्लेटफार्म पर एक महिला आई, कंधे पर बैग, हाथ में दो थैले और एक सूटकेस खींचती हुई। चेहरे पर थकान थी, लेकिन आंखों में आत्मविश्वास। उसने कई ऑटो वालों से सामान लेकर जाने को कहा, लेकिन कोई तैयार नहीं था। तभी गोपाल बिना सोचे-समझे आगे बढ़ा और बोला, “मैडम, ऑटो चाहिए? कहां जाना है?” महिला ने कहा, “कात्रज।” गोपाल ने मुस्कुराते हुए कहा, “यह सामान आपका नहीं, अब मेरी जिम्मेदारी है।”

ऑटो चल पड़ा। थोड़ी देर बाद महिला ने बताया कि वह आईपीएस अधिकारी हैं, ट्रेनिंग पूरी कर पहली पोस्टिंग पुणे में मिली है। गोपाल ने अपनी अधूरी शिक्षा और पिता की बीमारी की कहानी बताई। महिला ने उसका नंबर सेव किया और कहा, “कभी जरूरत हो तो बताइएगा।”

छह महीने बाद गोपाल की जिंदगी में कोई खास बदलाव नहीं था। पिता की बीमारी ने हालात और खराब कर दिए थे। एक दिन गोपाल स्टेशन से दो सवारी छोड़कर लौट रहा था, तभी दो हवलदारों ने उसे रोका। बिना किसी वजह के थप्पड़ मारा गया और उसका ऑटो जब्त कर लिया गया। भीड़ खड़ी थी, लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा।

गोपाल उस रात स्टेशन के पास एक चाय की दुकान के पीछे टूटी बेंच पर बैठा था, गिलास में चाय लिए, लेकिन नजरें कहीं खोई हुई थीं। उसने अपने पुराने स्मार्टफोन से आईपीएस मीरा देशमुख का नंबर ढूंढा और कॉल कर दिया।

मीरा ने तुरंत कार्रवाई की। वह थाने पहुंची, हवलदारों को फटकार लगाई और दोषी हवलदार को निलंबित कर दिया। पूरे थाने की कार्यशैली की जांच का आदेश दिया। फिर वह गोपाल के पास आई, उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा, “तुम्हारी चुप्पी टूट गई, अब कुछ लोगों की नींद भी टूटेगी।”

अगले दिन अखबारों में हेडलाइन थी — “ऑटो चालक को थप्पड़ मारने वाले हवलदार पर कड़ी कार्रवाई। महिला आईपीएस की सख्त चेतावनी।”

गोपाल फिर से ऑटो लेकर खड़ा था, लेकिन इस बार लोगों की नजरें उसकी गरीबी नहीं, उसकी गरिमा देख रही थीं। उसने अपने फोन में उस नंबर को देखा, जो अब उसकी इज्जत का रक्षक बन चुका था।

यह कहानी हर उस आम आदमी की है, जो कठिनाइयों के बीच भी अपने आत्मसम्मान को नहीं खोता। जब आप सही होते हैं और अपनी गरिमा के लिए खड़े होते हैं, तो कभी-कभी ऊपर वाला खुद किसी को भेज देता है आपके लिए न्याय करने।

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