कहानी की शुरुआत

चंडीगढ़ के एक पॉश इलाके में जस्टिस आलोकनाथ कुलकर्णी का घर था। उनकी बेटी रिया, एक बहादुर और होनहार लॉ स्टूडेंट, एक रात कोचिंग से लौट रही थी जब चार अमीर लड़कों ने उसका रास्ता रोक लिया। वे नशे में थे और रिया पर हमला करने की कोशिश की।

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बहादुर सिंह की बहादुरी

पास के बंगले में ड्यूटी पर तैनात वॉचमैन बहादुर सिंह ने रिया की चीखें सुनी। वह खुद मामूली, बूढ़ा और गरीब था, लेकिन दिल में फौजी जैसी हिम्मत थी। उसने अपनी लाठी उठाई और बिना डरे उन चारों लड़कों से भिड़ गया। उसने रिया को बचाया, लेकिन खुद बुरी तरह घायल हो गया।

न्याय और इंसानियत

पुलिस ने बहादुर सिंह को अस्पताल ले जाने की कोशिश की, मगर उसने पहले रिया को उसके घर पहुंचाने की जिद की। जस्टिस कुलकर्णी ने बहादुर सिंह का इलाज करवाया और अगले ही दिन चारों लड़कों को गिरफ्तार करवा दिया। केस की सुनवाई खुद जस्टिस कुलकर्णी ने की और चारों को 10-10 साल की सजा व 4 करोड़ का जुर्माना सुनाया।

सम्मान और इनाम

जुर्माने की रकम आधी रिया को और आधी बहादुर सिंह को देने का आदेश हुआ। कोर्ट में जस्टिस कुलकर्णी ने बहादुर सिंह को सलाम किया, लेकिन बहादुर सिंह ने पैसे लेने से मना कर दिया। इसके बदले उसे चंडीगढ़ पुलिस में हवलदार की नौकरी दी गई, जिससे उसकी जिंदगी बदल गई।

कहानी का संदेश

यह कहानी बताती है कि बहादुरी हैसियत या पद की मोहताज नहीं होती। एक साधारण इंसान भी जब अपने फर्ज़ के लिए खड़ा होता है, तो असाधारण नायक बन जाता है। इंसानियत और नेकी का छोटा सा काम भी कभी बेकार नहीं जाता, बल्कि वह एक दिन सम्मान और खुशियों में बदलकर लौटता है।

आपके लिए सवाल:

बहादुर सिंह की कौन सी बात ने आपके दिल को सबसे ज्यादा छुआ?

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