एग्जाम देने ट्रैन से जा रहा था, रास्ते में पर्स चोरी हो गया, फिर एक अनजान महिला ने उसके टिकट के पैसे

रवि और सरिता माँ की कहानी: एक कर्ज, एक वादा और इंसानियत की मिसाल

.

.

.

बिहार के आरा जिले के हरिपुर गांव में गरीबी, संघर्ष और सपनों के बीच पलता था रवि कुमार। उसके पिता रामकिशन एक छोटे किसान थे, माँ शांति दिनभर खेत और घर संभालती थीं। परिवार में तंगी थी, मगर रवि के मन में आईपीएस बनने का सपना था—सिर्फ नौकरी नहीं, बल्कि अपनी सात पुश्तों की गरीबी मिटाने का जरिया।

रवि ने पढ़ाई में कमाल किया, 12वीं में टॉप किया, कॉलेज भी पास किया। बिना कोचिंग, ढाबे में बर्तन मांजते हुए यूपीएससी की मुख्य परीक्षा पास कर ली। अब आखिरी पड़ाव था—दिल्ली में इंटरव्यू। लेकिन घर में पैसे नहीं थे। पिता ने अपनी प्यारी गाय लक्ष्मी बेच दी, माँ ने रोटियों की पोटली और ₹100 का नोट दिया। रवि के कंधों पर परिवार की उम्मीदें थीं।

सपनों पर संकट

दिल्ली जाने वाली ट्रेन में, रवि का बटुआ चोरी हो गया—पैसे, टिकट, सब गायब। टीटीई ने टिकट मांगा, रवि ने सच बताया, मगर कोई सुनने को तैयार नहीं। जुर्माना या स्टेशन पर उतारने की धमकी। भीड़ में कोई मदद नहीं कर रहा था। तभी एक आवाज आई—”रुकिए टीटीई साहब!” पास की सीट पर बैठी एक साधारण सी महिला, सरिता देवी, बोलीं, “मैं इसकी टिकट के पैसे दूंगी।” उन्होंने रवि की मदद की, बिना उसे जाने।

सरिता देवी ने रवि को अपने पास बुलाया, उसकी पूरी कहानी सुनी, अपने बेटे की याद की। उतरने से पहले ₹500 का नोट रवि को दिया, “इसे एक माँ का आशीर्वाद समझो। और वादा करो, जब बड़े अफसर बनो, किसी और की ऐसे ही मदद करना।”

माँ का आशीर्वाद

रवि ने वादा किया। दिल्ली में सस्ते धर्मशाला में रुका, लंगर में खाना खाया, इंटरव्यू की तैयारी की। इंटरव्यू के दिन उसके मन में माँ-बाप और सरिता माँ का चेहरा था। उसने आत्मविश्वास से जवाब दिए। महीनों बाद रिजल्ट आया—रवि देश के टॉप आईपीएस अफसरों में शामिल था। घर में जश्न हुआ, परिवार की खुशियाँ लौटीं।

साल बीत गए। रवि मेहनती, ईमानदार पुलिस अफसर बना, परिवार की जिम्मेदारियाँ निभाईं, बहनों की शादी, भाई की पढ़ाई, पक्का घर। लेकिन एक कर्ज बाकी था—सरिता माँ का। रवि ने उन्हें ढूंढने की कोशिश की, नाम और शहर अलीगढ़ ही सुराग था। सात साल बाद किस्मत ने साथ दिया—रवि की पोस्टिंग अलीगढ़ में हो गई।

कर्ज की अदायगी

रवि ने एक फाइल में “सरिता शर्मा” का पता देखा। वह साधारण कपड़ों में उस खंडहर जैसे घर पहुँचा। दरवाजा खुला, सामने वही आंखें, वही चेहरा—लेकिन अब थकी, बूढ़ी। सरिता माँ ने उसे पहचाना, दोनों गले लगकर रो पड़े। घर की हालत दयनीय थी। सरिता माँ ने अपनी दुखभरी कहानी सुनाई—पति गुजर गए, बेटा नशे में डूब गया, सब कुछ खोकर अकेली रह गईं।

रवि ने उसी पल फैसला लिया। उसने सरिता माँ के लिए शहर के अच्छे इलाके में सुंदर सा फ्लैट खरीदा, देखभाल के लिए नर्स रखी, परिवार को उनके साथ रहने बुलाया। अपनी माँ शांति देवी ने भी सरिता माँ को बहन की तरह अपना लिया। अब सरिता माँ अकेली नहीं थीं—उनका बेटा, बहू, पोते-पोतियाँ, सब उनके साथ थे।

यह कहानी हमें सिखाती है:
नेकी का छोटा सा बीज सही समय पर बोया जाए तो वह विशाल छायादार पेड़ बनता है। कृतज्ञता दुनिया का सबसे सुंदर गहना है। रवि ने अपने वादे को निभाया, इंसानियत की मिसाल कायम की।

अगर यह कहानी आपके दिल को छू गई है, तो लाइक करें, शेयर करें और बताएं आपको सबसे भावुक पल कौन सा लगा। ऐसी और कहानियों के लिए चैनल सब्सक्राइब करें।

धन्यवाद!