करोड़पति मां VIP कार में बैठी थी, तभी उनका बेटा फुटपाथ पर भीख मांगता हुआ सामने आ गया—जो हुआ, सब हैरान रह गए!

शहर की एक व्यस्त सड़क पर सुबह का वक्त था। सूरज की पहली किरणें धीरे-धीरे आसमान पर फैल रही थीं और चारों तरफ लोगों की भीड़ नजर आ रही थी। ट्रैफिक सिग्नल पर गाड़ियों की कतारें लगी थीं, हॉर्न की आवाजें गूंज रही थीं और हर कोई अपने-अपने काम में व्यस्त था। इसी भीड़-भाड़ के बीच एक काली चमचमाती Mercedes कार धीरे-धीरे लाल बत्ती पर रुकी। यह कार साधारण नहीं थी। इसके काले शीशे इतने गहरे थे कि अंदर बैठे व्यक्ति का चेहरा दिखाई नहीं देता था। कार के पहिए इतने चमकदार थे कि राहगीर अपनी नजरें हटाने में असमर्थ थे।

कार के अंदर एक महिला बैठी थी, जिसकी शान और ठाट देखकर कोई भी अंदाजा लगा सकता था कि वह कोई साधारण महिला नहीं, बल्कि करोड़पति घराने की मालकिन है। उसके हाथों में सोने के कंगन चमक रहे थे, गले में मोटा हार था और कानों में बड़े-बड़े झुमके लटक रहे थे। चेहरे पर गाढ़ा मेकअप था, जो उसकी असली थकान छिपा रहा था। हाथों में हीरे की अंगूठियां थीं। उसके पास एक नौकरानी बैठी थी जो हमेशा पानी का गिलास पकड़े रहती थी। ड्राइवर आगे बैठा ध्यान से सड़क देख रहा था।

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कार के बाहर का नजारा बिलकुल अलग था। सड़क पर बच्चे नंगे पांव दौड़ रहे थे, उनके कपड़े फटे हुए थे और चेहरे पर धूल-मिट्टी जमी हुई थी। वे हाथ फैलाकर गाड़ियों से भीख मांग रहे थे। कोई कार का शीशा थपथपा रहा था, तो कोई मोटरसाइकिल सवार से भीख मांग रहा था। राहगीर उन बच्चों पर चिल्ला रहे थे, किसी ने सिक्के फेंके तो किसी ने उन्हें झिड़क दिया, लेकिन उन बच्चों के चेहरे पर मजबूरी साफ झलक रही थी।

इसी भीड़ के बीच से एक लड़का Mercedes की खिड़की के पास आकर खड़ा हो गया। वह लड़का दुबला-पतला था, उसके बाल बिखरे हुए थे, कपड़े फटे हुए थे और पांवों में चप्पल तक नहीं थी। उसकी आंखें थकी हुई थीं, मगर उनमें मासूमियत अभी बाकी थी। वह धीरे से हाथ फैलाकर बोला, “मां, मुझे भूख लगी है, कुछ दे दो।” कार के अंदर बैठी करोड़पति महिला के दिल पर मानो पहाड़ टूट पड़ा। उसका सीना जोर-जोर से उठने लगा, सांसें रुकने लगीं और उसकी नजरें लड़के की आंखों में टिक गईं। पलक झपकते ही उसके होठों से अनायास निकल गया, “यह तो मेरा बेटा है।”

यह वह पल था, जो किसी भी इंसान के लिए भारी होता है। एक तरफ करोड़पति मां अपनी आलीशान जिंदगी में बैठी थी और दूसरी तरफ उसका बेटा फुटपाथ पर भूखा खड़ा था, जिसने बचपन में मां की गोद तक नहीं देखी थी क्योंकि सालों पहले उसी मां ने उसे इस निर्दयी दुनिया के हवाले कर दिया था। वही बच्चा अब बड़ा होकर भीख मांगते हुए उसी मां के सामने आ खड़ा था।

कार का शीशा थोड़ा नीचे था। मां की नजर सीधे बेटे की आंखों से टकराई। वह मासूम कुछ समझ नहीं पाया था, उसे यह तक पता नहीं था कि जिसके सामने वह हाथ फैला रहा है, वही उसकी मां है। मां ने भीतर उस मासूम को तुरंत पहचान लिया। उसके चेहरे की मासूमियत, आंखों की चमक और आवाज ने मां को सालों पुराने दर्द की याद दिला दी जिसे उसने अपने दिल में दबा रखा था। उसकी आंखें भर आईं। उसने चाहा कि दरवाजा खोलकर बाहर निकले और बेटे को गले लगा ले, लेकिन समाज, लोगों की नजरें, उसकी शान और इज्जत ने उसे ऐसा करने से रोक दिया। अगर वह अभी उस लड़के को गले लगाती तो उसका करोड़पति होने का नकली गर्व पल भर में टूट जाता। इसलिए उसने अपना मन पत्थर की तरह कठोर कर लिया और बस एक नजर बेटे की ओर डाली और आंखें झुका लीं।

बेटा बार-बार कहता रहा, “मां, मुझे भूख लगी है, कुछ दे दो। मुझे दो दिन से खाना नहीं मिला। मैं बहुत थक गया हूं। मैं पूरे दिन सड़कों पर घूमता हूं। कोई सिक्का फेंक देता है तो कभी भूखा ही सो जाता हूं। मां, तुम अमीर लगती हो, मैं बस रोटी मांग रहा हूं। मां, मुझे थोड़ा सा खिला दो।”

मां का दिल अंदर से रो रहा था। उसकी आंखें नम हो रही थीं, पर होंठ बंद थे। नौकरानी ने खिड़की का शीशा ऊपर कर दिया। लड़का वहीं खड़ा रह गया। कार का शीशा ऊपर उठते ही उसकी उम्मीद टूट गई। उसके चेहरे पर निराशा उतर आई। वह समझ नहीं पाया कि जिस औरत को वह अपनी मां कहकर पुकार रहा था, उसने उसकी तरफ नजर तक क्यों नहीं उठाई। सड़क पर खड़े लोग यह सब देख रहे थे, लेकिन किसी को अंदाजा नहीं था कि यह कोई साधारण भिखारी और अमीर औरत का मंजर नहीं बल्कि मां और बेटे का मिलन है, जिसमें रिश्ते दौलत की दीवारों के पीछे दब कर रह गए हैं।

कार कुछ ही देर में आगे बढ़ गई और पीछे रह गया बेटा, जिसकी आंखों से आंसू गिर रहे थे और हाथ अभी भी फैले हुए थे। वहां कोई नहीं था जो उसे मां की गोद दे सके। यही था इस कहानी का सबसे बड़ा दर्द और सबक कि जब इंसान दौलत की चमक में अंधा हो जाता है, तो वह अपने ही खून को पहचानने से भी पीछे हट जाता है। लेकिन दिल का रिश्ता कभी टूटता नहीं। मां ने उसे पहचाना जरूर, मगर समाज और दिखावे के डर ने उसे बोलने नहीं दिया और बच्चा वहीं फुटपाथ पर भूख से तड़पता रहा।

कार के शीशे ऊपर हो गए, मगर मां के भीतर दिल की हलचल बढ़ गई थी। लाख कोशिशों के बाद भी वह बच्चे का चेहरा अपनी आंखों से नहीं हटा पा रही थी। उसके कानों में लगातार वही आवाज गूंज रही थी, “मां, मुझे भूख लगी है।”

उस औरत का नाम अंजना था। वह करोड़पति घराने की मालकिन थी। उसका पति एक बड़ा व्यापारी था। शहर में उसका नाम था, पैसा था, शोहरत थी, बंगला था, गाड़ियां थीं। लेकिन इन सबके पीछे उसके दिल में एक ऐसा जख्म था जिसे वह किसी से कह नहीं पाती थी। वही जख्म आज उसके सामने जिंदा खड़ा था।

अंजना की कहानी बीते वक्त की है। जब उसकी उम्र 17-18 साल थी, वह एक छोटे से गांव में पली-बढ़ी थी। गरीब परिवार की बेटी थी। पिता मजदूरी करते थे, घर में अक्सर भूख के दिन आते थे। मां बीमार रहती थी। पढ़ाई बीच में छूट गई और अंजना को घर चलाने के लिए खेतों और घरो में काम करना पड़ा। उसी दौरान गांव के एक लड़के से उसकी नजदीकी हुई। दोनों एक दूसरे को चाहने लगे। लेकिन किस्मत को कुछ और मंजूर था। अंजना गर्भवती हो गई।

जब घर वालों को पता चला तो घर में भूचाल आ गया। गरीबी के साथ बदनामी का डर भी था। पिता ने गुस्से में अंजना को मारा-पीटा, ताने दिए। समाज के ताने अलग से मिलने लगे। गांव वाले उसे घूरने लगे। कोई काम देने को तैयार नहीं था। अंजना की मां ने भी आंसू बहाए और कहा, “बेटी, तूने हमारे लिए जीना मुश्किल कर दिया है।”

गर्भ के दिन जैसे-तैसे कटे और जब बच्चा पैदा हुआ तो हालात और खराब हो गए। ना कोई सहारा था, ना पैसा, ना इज्जत। गांव के लोग हर दिन ताने देते रहे। आखिरकार पिता ने मजबूरी में कहा कि इस बच्चे को पालने की ताकत नहीं है। इसे कहीं छोड़ आओ, वरना हम सब भूखों मर जाएंगे। अंजना का दिल उस दिन टूट गया। उसने अपनी गोद में उस मासूम को उठाया, उसके गालों पर चूमा और आंसू बहाते हुए उसे शहर की सड़क पर छोड़ दिया। जगह वही थी जहां आज वह बेटा भीख मांगते हुए उसके सामने खड़ा था।

उस दिन अंजना ने बच्चे को सड़क के किनारे एक पेड़ के नीचे सुला दिया और खुद भाग आई क्योंकि उसके पास और कोई चारा नहीं था। उसका दिल बार-बार कहता था, “पीछे मुड़कर देखो,” लेकिन मजबूरी और घर वालों का डर इतना बड़ा था कि उसने अपने लाल को बेबस छोड़ दिया।

समय बीता, हालात बदले। अंजना की शादी शहर के एक बड़े व्यापारी से हो गई जिसने उसे दौलत, शान और शोहरत दी। लेकिन अंजना के दिल का वह घाव कभी नहीं भरा। उसने अपने पति को कभी यह सच नहीं बताया कि उसने शादी से पहले एक बेटे को जन्म दिया था और उसे फुटपाथ पर छोड़ आई थी। यह राज उसने दिल में दबाकर रखा। मगर हर त्यौहार, हर पूजा, हर अकेली रात उसे वही बच्चा याद आता। उसकी आंखें भर आतीं और वह भगवान से माफी मांगती।

आज इतने सालों बाद वही बेटा उसी जगह उसी फुटपाथ पर खड़ा था। वही मासूम चेहरा अब बड़ा हो गया था, लेकिन भूख और गरीबी ने उसके शरीर को तोड़ दिया था। अंजना के दिल को यह सच्चाई बार-बार चुभ रही थी कि जिस बच्चे को उसने पेट से जन्म दिया था, उसी को उसने सड़क पर मरने के लिए छोड़ दिया और वह बच्चा आज उसी से भीख मांग रहा है।

अब सोचिए उस मासूम बच्चे पर क्या बीती होगी जिसे उसकी अपनी मां ने सड़क के किनारे छोड़ दिया था। गोद का सहारा छूट गया था, दूध की बूंद भी नसीब नहीं हुई थी और दुनिया की बेरहम हवा ने उसका स्वागत किया था। उस दिन से लेकर आज तक उसके हर कदम ने दर्द, भूख और तनहाई को सहा। उसे देखकर लोग बस एक नजर डालते और आगे बढ़ जाते। कोई दया करके एक टुकड़ा रोटी फेंक देता, तो कोई उसे झिड़क कर निकाल देता। वह बच्चा रातें फुटपाथ पर बिताता, कभी कूड़े के ढेर के पास सोता, कभी दुकान के बंद शटर के नीचे ठंडी हवा से बचने की कोशिश करता। बरसात आती तो भीग कर कांपता, गर्मी में जलते पत्थरों पर नंगे पैर चलता। लेकिन कोई उसे अपनी गोद में नहीं उठाता।

धीरे-धीरे वह बच्चा बड़ा होने लगा। भूख ने उसे मजबूर कर दिया कि वह राहगीरों के सामने हाथ फैलाए। कभी मंदिर के बाहर खड़ा होता और प्रसाद मांगता, कभी बस अड्डे पर यात्रियों से सिक्के मांगता, कभी रेलवे स्टेशन पर रोता, आंखों से लोगों को देखता। कई बार पुलिस ने उसे डंडे मारे, कई बार दुकानदारों ने उसे भगा दिया, लेकिन उसने जीना नहीं छोड़ा। वह सोचता था शायद किसी दिन कोई आएगा जो उसे अपना कहेगा, जो उसे गले लगाएगा। लेकिन वह दिन कभी नहीं आया।

जब वह थोड़ा बड़ा हुआ तो उसके मन में सवाल उठने लगे, “मैं कौन हूं? मेरी मां कौन है? मेरा घर कहां है?” वह हर औरत को देखता और सोचता कि शायद यही मेरी मां होगी। लेकिन कोई उसके पास रुकता नहीं था। कई बार उसने औरतों से पूछा, “क्या आप मेरी मां हो?” लोग हंसकर आगे बढ़ जाते या उसे डांट देते। मगर उसके दिल की तड़प बढ़ती रही। कभी-कभी वह दूर से अमीर बच्चों को देखता जो अपनी मां के साथ कार में बैठते थे, उनके हाथों में खिलौने होते थे, वे अच्छे कपड़े पहनते थे। वह देखता और उसकी आंखें नम हो जातीं। वह खुद से कहता, “अगर मेरी मां होती तो शायद मैं भी ऐसे अच्छे कपड़े पहनता, अच्छे खिलौनों से खेलता, गर्म रोटी खाता और उसकी गोद में सोता।” लेकिन किस्मत ने उसे फुटपाथ पर ला खड़ा किया था।

उसने भीख मांगकर बचपन से जवानी तक का सफर काटा। कभी भूखा रहा, कभी दो वक्त की रोटी किसी राहगीर से मिली। कई बार बीमार पड़ा तो सड़क किनारे पड़ा रहा। कोई पूछने वाला नहीं था। उसके दोस्त भी वहीं थे जो गली-गली में भीख मांगते थे और भूख से लड़ते थे। किसी का सहारा नहीं, किसी का घर नहीं। सिर्फ सड़कें ही उनकी मां थीं और आसमान उनकी छत।

जब वह जवान हुआ तो लोगों की बातों से उसने जाना कि उसकी मां जिंदा है और शहर में रहती है। कुछ लोगों ने उसे इशारों में बताया कि उसकी मां करोड़पति है, उसके पास बंगला है, गाड़ियां हैं, नौकर-चाकर हैं। यह सुनकर उसका दिल हजार टुकड़ों में बंट गया। उसने सोचा, “अगर सच में मेरी मां करोड़पति है तो उसने मुझे क्यों छोड़ दिया? अगर उसके पास सब कुछ है तो उसने मुझे एक टुकड़ा रोटी क्यों नहीं दी? अगर उसके पास बंगला है तो मुझे फुटपाथ पर क्यों छोड़ दिया?” इन सवालों ने उसके दिल को जलाया। लेकिन फिर भी उसके भीतर एक उम्मीद बची रही कि शायद किसी दिन उसकी मां उसे पहचान लेगी, शायद उसे गले लगाएगी और कहेगी, “बेटा, मैं मजबूर थी, मैंने तुझे छोड़ा था, लेकिन अब तुझे कभी नहीं छोड़ूंगी।” इसी उम्मीद के लिए वह हर दिन जीता रहा और भीख मांगकर पेट भरता रहा।

आज वही दिन आया जब उस Mercedes कार के अंदर बैठी मां को उसने मां कहकर पुकारा। उसकी आंखों में उम्मीद थी कि मां दरवाजा खोलेगी और उसे अपने सीने से लगा लेगी। लेकिन मां की आंखें भीगी जरूर, पर होंठ बंद रहे। उसकी गोद बंद रही और कार आगे बढ़ गई। पीछे रह गया बेटा जिसकी आंखों से आंसू टपकते रहे।

उस दिन ट्रैफिक सिग्नल पर खड़ा वह जवान लड़का, जो बचपन से फुटपाथ पर पलकर बड़ा हुआ था, अपनी जिंदगी का सबसे गहरा सच देख रहा था। जिस मां की तलाश में वह बचपन से जवानी तक इंतजार करता रहा, उसी मां ने आज उसे देखा जरूर, लेकिन अपनाया नहीं। उसने आंखों से देखा कि उसकी मां के चेहरे पर आंसू आए, उसकी आंखें कांपी, लेकिन फिर भी उसने कार का दरवाजा नहीं खोला, अपनी बाहें नहीं फैलाई। मां कहलाने का हक उस दिन भी ठुकरा दिया।

सड़क पर खड़े उस बेटे की दुनिया वहीं रुक गई। उसने कार की लाल बत्ती हरी होते देखी, इंजन की आवाज सुनी और धीरे-धीरे धूल में गायब होती उस कार को देखा। उसके हाथ जो अभी तक हवा में मां की ओर उठे थे, धीरे-धीरे नीचे गिर गए। उसके होठ कांप रहे थे, दिल की धड़कन तेज हो गई थी और आंखों से आंसुओं की धारा बह निकली थी। उसने सोचा, “आखिर मेरी मां ने मुझे क्यों नहीं अपनाया? क्या उसे डर था कि लोग देख लेंगे कि उसकी इज्जत पर दाग लग जाएगा या फिर उसके दिल में मेरे लिए कोई जगह बची ही नहीं?”

सच यही था कि उस मां के लिए अब बेटे से ज्यादा समाज का डर था। उसके पास धन था, शोहरत थी, लोग उसके सामने सिर झुकाते थे। वह चाहती भी तो फुटपाथ पर भीख मांगते उस बेटे को गले नहीं लगा सकती थी। क्योंकि उसकी दुनिया में अब रिश्तों से ज्यादा दिखावा बचा था।

उधर बेटा सड़क किनारे बैठ गया। उसने पहली बार महसूस किया कि मां और बेटे का रिश्ता खून से नहीं बल्कि अपनाने से जुड़ा होता है। मां ने उसे जन्म तो दिया था, लेकिन मां बनने का फर्ज कभी पूरा नहीं किया। और आज जब उसने आंखों में उम्मीद लिए पुकारा, तब भी उसे ठुकरा दिया। यही सच था, कड़वा सच।

वह लड़का कई दिन तक उसी जगह बैठकर इंतजार करता रहा। हर बार जब कोई काली कार रुकती, उसका दिल धड़क उठता कि शायद मां वापस आई है, शायद वह उसे लेने आई है। लेकिन हर बार उसकी उम्मीद टूटती और भीतर का दर्द और गहरा होता। धीरे-धीरे लोगों ने भी उसे पहचान लिया। आसपास के लोग कहते, “अरे यह वही है जिसे उसकी मां ने बचपन में सड़क पर छोड़ दिया था। देखो, मां तो अमीर हो गई और बेटा भीख मांग रहा है।”

कोई उस पर तरस खाता, तो कोई ताने मारता। लेकिन उसके लिए सबसे बड़ी चोट यह थी कि उसकी मां ने उसे जिंदा होते हुए भी मरा समझ लिया। कभी-कभी वह सोचता, “काश मैंने मां को पुकारा ही ना होता। कम से कम दिल में यह उम्मीद तो बची रहती कि शायद कहीं वह मुझे ढूंढ रही होगी, शायद किसी दिन वह मुझे गले लगाएगी।” लेकिन अब वह उम्मीद भी खत्म हो गई थी। उसने अपनी आंखों से देख लिया था कि मां के लिए उसकी कोई जगह नहीं है।

उसकी रातें और भी भारी हो गईं। फुटपाथ पर लेटे-लेटे वह आसमान देखता और सोचता, “क्या सच में भगवान ने मेरे लिए कोई मां बनाई थी या सिर्फ जन्म देने वाली औरत मिली थी? अगर मां का मतलब सिर्फ जन्म देना है तो गाय भी बछड़ा जनती है, पर वह अपना दूध भी देती है, अपनी गर्मी भी देती है, उसे सीने से लगाती है। लेकिन मेरी मां ने तो मुझे जन्म देकर सड़क पर फेंक दिया और आज पहचान कर भी अपना नहीं पाई।

यह जिंदगी का सबसे बड़ा कड़वा सच था। कई बार लोग जन्म तो देते हैं, लेकिन रिश्ते निभाने का साहस नहीं रखते। मां कहलाने के लिए सिर्फ जन्म लेना काफी नहीं होता, बल्कि बेटे को अपनाना जरूरी होता है।

वह बेटा अब बड़ा हो चुका था। उसके हाथों में ताकत थी, आंखों में आंसू थे और दिल में हजार सवाल थे। उसने सोचा अब भीख मांगकर जीने से अच्छा है मेहनत करके जिया जाए। लेकिन दिल के एक कोने में यह टीस हमेशा रहेगी कि उसकी मां जिंदा होते हुए भी उसके लिए मर चुकी है।

उसने छोटी-छोटी मजदूरी करनी शुरू की। लोगों के घरों में काम करने लगा। कभी सब्जियां ढोता, कभी ईंटें उठाता, कभी होटल में बर्तन मांझता। वह भूख से मरना नहीं चाहता था। लेकिन हर दिन जब भी अमीर औरतों को देखता, उसकी आंखों में मां का चेहरा घूम जाता। वह समझ नहीं पाता कि जिस मां को भगवान से भी ऊंचा माना जाता है, वही मां उसके लिए पत्थर क्यों बन गई।

समय धीरे-धीरे बीत रहा था। सड़क का वह बच्चा अब जवान हो चुका था। उसके चेहरे पर धूप और धूल की लकीरें साफ दिखाई देती थीं। लेकिन उन लकीरों के पीछे संघर्ष की कहानी छिपी थी। उसने अपने आंसुओं को चुपचाप पीना सीख लिया था। भूख और दर्द को सहते-सहते उसने अपने भीतर एक नया साहस पैदा कर लिया था। वह अब भी फुटपाथ का लड़का था, लेकिन उसके भीतर जीने की आग थी।

एक दिन शहर में एक बड़ा कार्यक्रम हुआ। एक भव्य मंच सजा था, चारों ओर चमचमाती रोशनी थी और अमीर लोग बड़ी शान से बैठे थे। उसी मंच पर वह औरत, यानी उसकी मां, मेहमान-ए-खास बनकर आई थी। लोग तालियां बजा रहे थे, उसकी तारीफें कर रहे थे कि देखो इसने कितनी दौलत कमाई है और समाज में कितना बड़ा नाम कमाया है। वह अपने रुतबे पर इतराती हुई मंच पर बैठी थी और लोग उसकी प्रशंसा में फूल बरसा रहे थे।

उसी भीड़ में वह बेटा भी खड़ा था जिसने मां को सालों पहले सड़क पर पुकारा था, लेकिन मां ने उसे ठुकरा दिया था। आज उसकी आंखों के सामने मां को लोग देवी बना रहे थे। उसे लगा यह कैसी विडंबना है कि जिसने अपने बेटे को जन्म देकर छोड़ दिया, वही आज दूसरों के लिए प्रेरणा बनी हुई है।

वह भीड़ को चीरते हुए धीरे-धीरे मंच की ओर बढ़ा। उसकी आंखों में आंसू थे, लेकिन साथ ही हिम्मत भी थी। भीड़ अचानक शांत हो गई। जब उस फटे हाल कपड़ों वाले जवान ने मंच की ओर कदम बढ़ाए, लोगों ने उसे रोकना चाहा, पर उसके चेहरे पर ऐसा दर्द था कि कोई भी उसे रोक नहीं सका।

वह मां के सामने जाकर खड़ा हो गया और कांपती आवाज में बोला, “मां, क्या आपको याद है? आपने सालों पहले एक छोटे से बच्चे को सड़क पर छोड़ दिया था? क्या आपको याद है वह कौन था?” मंच पर सन्नाटा छा गया। लोग एक-दूसरे की ओर देखने लगे। मां का चेहरा पीला पड़ गया, होंठ सूख गए। उसने चाहा कि भीड़ के सामने चुप रहे, लेकिन बेटे की आंखों से निकलते आंसू ने उसके दिल पर चोट कर दी।

बेटा बोला, “मां, वह बच्चा मैं ही हूं। वही जिसे आपने अपनी गोद से निकालकर फुटपाथ पर छोड़ दिया था। वही जिसे आपने भूख और गंदगी के हवाले कर दिया था। आज मैं आपके सामने खड़ा हूं। आप बताइए, क्या मैं आपका बेटा हूं या सिर्फ एक अनचाहा बोझ था?”

यह सुनते ही भीड़ में हलचल मच गई। लोग आपस में कान्हा फूंकने लगे और उस औरत के लिए तालियां अचानक रुक गईं। मां की आंखों से आंसू छलक पड़े। वह कुर्सी से उठ खड़ी हुई, उसका दिल कांप रहा था। उसने बेटे की ओर देखा और पहली बार अपने भीतर से आवाज निकाली, “बेटा, मैं मजबूर थी। मैंने गलती की थी। मैंने समाज के डर में आकर तुम्हें छोड़ दिया था। लेकिन मैंने तुझे हर पल याद किया है। आज तू सामने खड़ा है तो मैं कहती हूं कि तू मेरा बेटा है। तू ही मेरी सबसे बड़ी पूंजी है।”

बेटे ने आंसुओं से भीगे चेहरे के साथ मां की ओर देखा। उसके दिल में घाव गहरे थे, लेकिन मां की बातों ने उसके जमे हुए दिल की बर्फ तोड़ दी। उसने कांपते हुए हाथों से मां के पैर छुए और कहा, “मां, मैं भी यही चाहता था कि कभी आप मुझे अपने गले से लगा लें। आज अगर आपने मुझे अपना लिया है तो मेरे जीवन का दर्द खत्म हो गया।”

भीड़ में बैठे लोग इस दृश्य को देखकर सन्न रह गए। जिसने बेटे को छोड़ा था, वही मां अब उसे गले लगा रही थी। मंच पर आंसुओं की नदी बह रही थी। मां और बेटे ने एक-दूसरे को कसकर पकड़ लिया और सालों का बिछड़ा हुआ प्यार उस आलिंगन में पिघल गया।

यही था इस कहानी का निष्कर्ष कि दौलत और शान सब झूठा है, अगर अपने खून का रिश्ता ही अधूरा रह जाए। मां का असली रूप तभी पूरा होता है जब वह बेटे को हर हाल में अपनाए, चाहे दुनिया कुछ भी कहे। और बेटा तभी संतुष्ट होता है जब उसकी मां उसे अपनी छाती से लगाकर कहे, “तू मेरा है और हमेशा मेरा ही रहेगा।”

यह कहानी हमें सिखाती है कि दुनिया की सबसे बड़ी दौलत मां की ममता होती है। पैसे और शान से बड़ा रिश्ता मां और बेटे का होता है। इसलिए अगर आपकी मां जिंदा है तो उन्हें कभी अकेला मत छोड़िए। और अगर आप मां हैं तो कभी अपने बच्चों को अनाथ मत कीजिए, क्योंकि जिंदगी के हर मोड़ पर वही आपके साथ खड़े रहेंगे।

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