कलेक्टर बनते ही लड़की फाइव स्टार होटल पहुंचती है और वहां जाकर वेटर के पैर छूकर रोने लगती है

कहानी सारांश:

परिवार और संघर्ष:
राम, एक मेहनती मजदूर, अपनी पत्नी के निधन के बाद अपनी 4 साल की बेटी सरोज की परवरिश अकेले करता है। परिवार वाले कहते हैं कि वह दूसरी शादी कर ले, लेकिन राम अपनी बेटी की चिंता करते हुए ऐसा नहीं करता।
सरोज की पढ़ाई और वादा:
राम अपनी बेटी से वादा करता है कि अगर वह दसवीं में अच्छे नंबर लाएगी, तो उसे फाइव स्टार होटल में डोसा खिलाएगा। सरोज मेहनत करती है और पूरे जिले में टॉप करती है।

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फाइव स्टार होटल का अनुभव:
राम अपनी बेटी को लेकर फाइव स्टार होटल जाता है जहाँ वे डोसा खाने आते हैं। वहाँ के वेटर कर्ण और होटल मालिक को उनकी कहानी पता चलती है। वे दोनों सरोज और राम के लिए सम्मान का इंतजाम करते हैं और पूरे होटल में उनके लिए फ्री भोजन की व्यवस्था करते हैं।
सरोज की सफलता:
सरोज की मेहनत रंग लाती है और वह जिला कलेक्टर बन जाती है। अपनी पोस्टिंग के बाद वह उसी होटल आती है, कर्ण से मिलती है और उनके पैर छूती है, जो उस वक्त उसके लिए सम्मान का प्रतीक था।
होटल मालिक की दुखभरी कहानी:
सरोज को पता चलता है कि होटल मालिक ने अपनी पत्नी के इलाज के लिए अपनी सारी संपत्ति बेच दी थी, लेकिन पत्नी की मौत हो गई। वह अब अकेला और दुखी है। सरोज उसे अपने घर लेकर आती है और उसकी सेवा करती है।
परिवार का विस्तार:
सरोज की शादी होती है और वह अपने पति को बताती है कि उसके दो पिता हैं — उसका असली पिता राम और होटल मालिक, दोनों की सेवा करनी होगी। पति भी इसे स्वीकार करता है और दोनों की इज्जत करता है।

कहानी का संदेश:

यह कहानी संघर्ष, मेहनत, ईमानदारी और इंसानियत की मिसाल है। यह दिखाती है कि गरीबी और मुश्किल हालात में भी अगर हिम्मत और लगन हो तो कोई भी बड़ा मुकाम हासिल किया जा सकता है। साथ ही, यह भी सिखाती है कि सफलता के बाद भी विनम्रता और कृतज्ञता बनाए रखना जरूरी है।

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