“कहानी का समय: वह आधी रात को जेल में दाखिल हुई, फिर जो हुआ उसने सब कुछ बदल दिया!”
कोलकाता की जेल में इंसानियत की जीत: IPS नुसरत जान की कहानी
कोलकाता की वह बड़ी जेल, जो बाहर से शांत दिखती है लेकिन अंदर उसका हाल किसी नरक से कम नहीं। यहाँ रात सूरज डूबने पर नहीं, बल्कि इंसानियत के खत्म होने पर शुरू होती थी। वर्दी के पीछे छुपे दरिंदे हर रात आते, अपनी मनमानी करते और कैद महिलाओं को डर के साए में जीने पर मजबूर कर देते। कोई बोलने की हिम्मत नहीं करता, क्योंकि एक शब्द बोलते ही उनकी ज़िंदगी और भी बदतर हो जाती।
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लेकिन एक दिन, अंधेरे की इन दीवारों को तोड़ने के लिए एक तूफान उठा। उसका नाम था IPS नुसरत जान – एक बेखौफ, निडर और न्याय के लिए समर्पित अधिकारी। उसने प्रण लिया कि अब यह अत्याचार बर्दाश्त नहीं होगा। नुसरत ने अपनी वर्दी उतार दी और खुद को एक असहाय कैदी के रूप में जेल के अंदर भेज दिया। उसका मिशन था – जेल के अंदर होने वाले अन्याय को अपने हाथों से पकड़ना।
पहली ही रात, जेल के सबसे बड़े दरिंदे नुसरत के पास आए। सवाल था – क्या एक IPS अधिकारी भी वही दर्द झेलेगी जो बाकी कैदियों ने झेला था? या वह उन भेड़ियों को उन्हीं के अड्डे में पकड़ लेगी?
कोलकाता की इस जेल में नुसरत जान का नाम ही अपराधियों को कांपने पर मजबूर कर देता था। वो बाहर से शांत दिखती थी, मगर अंदर से फौलाद जैसी मजबूत थी। उसके सिद्धांत स्पष्ट थे – चाहे अत्याचारी कितना भी ताकतवर हो, सज़ा निश्चित है।
एक सुबह, जेल के स्टाफ शमल ने डरते-डरते नुसरत को बताया कि महिला कैदी सुरक्षित नहीं हैं। रात को उनके साथ बुरा व्यवहार होता है, उन्हें डराया-धमकाया जाता है। नुसरत का चेहरा गंभीर हो गया। उसने शमल से सबूत मांगा, लेकिन शमल ने कहा – “मैडम, मैंने सब अपनी आँखों से देखा है, मगर बोलने की हिम्मत नहीं।”
नुसरत ने फैसला लिया – वह बिना सूचना दिए खुद जेल में कैदी बनकर जाएगी। उस रात, उसने कैदी के कपड़े पहने, चेहरा ढक लिया और नकली पहचान के साथ जेल में दाखिल हो गई। वहाँ की हालत देखकर उसका दिल दहल गया – दीवारों पर सीलन, हवा में बदबू, कैदियों की दबाई हुई चीखें, पुलिस वालों की फब्तियाँ और शोषण।
लेकिन नुसरत अकेली नहीं थी। उसके कपड़ों में छुपा एक छोटा कैमरा और माइक, बाहर उसकी टीम को सब रिकॉर्ड भेज रहे थे। तभी एक पुलिस अफसर ने उसे घेर लिया, नाम पूछा। नुसरत ने कहा, “मेरा नाम फरीदा है।” अफसर ने ताना मारा और धमकाया, “घुटनों के बल चलो, वरना अंजाम बुरा होगा।”

नुसरत ने शांति से जवाब दिया, “मैं यहाँ सज़ा काटने आई हूँ, आपकी गुलामी करने नहीं।” अफसर गुस्से में आ गया, लेकिन नुसरत डरी नहीं। एक महिला कैदी रीना ने उसे सलाह दी – “कुछ मत बोलो, बस चुप रहो। यहाँ बोलने वालों को अकेले बंद कर देते हैं और रात को उनका बुरा हाल करते हैं।”
तभी दो पुलिस अफसर अमित और बिजॉय ने नुसरत को एक कमरे में ले जाकर धमकाया। लेकिन नुसरत ने अपनी असली पहचान उजागर कर दी – “मैं IPS नुसरत जान हूँ, सब रिकॉर्ड हो रहा है। अगर सच का साथ दोगे तो बच सकते हो, नहीं तो सबके साथ जेल जाओगे।”
अमित और बिजॉय डर गए, घुटनों पर गिर गए और सच बताने लगे – कैसे रात को महिलाओं को बाहर निकालकर उनका शोषण होता है, कैसे सीनियर अफसर फर्जी रिपोर्ट बनाकर सब छुपा देते हैं। नुसरत ने उन्हें कैमरा और माइक दिया – “अब हर पल रिकॉर्ड करो, सच दुनिया के सामने लाओ।”
अगली सुबह, नुसरत ने सबूतों के साथ पुलिस मुख्यालय में पेशी की। सीनियर अफसर हैरान रह गए, तुरंत कार्रवाई हुई। दोषी पुलिस वालों की वर्दी उतरवा दी गई, नौकरी चली गई और उन पर केस दर्ज हुए। कोलकाता पुलिस में हलचल मच गई – नुसरत जान मिसाल बन गई कि अगर इरादा मजबूत हो तो सबसे बड़ा सिस्टम भी हिल सकता है।
कैद महिलाओं ने नुसरत के पैरों में गिरकर कहा – “मैडम, आपने हमें नरक से बचा लिया।” सीनियर अफसर ने कहा – “मैडम, आपने वो कर दिखाया जो कोई नहीं कर सका।”
यह कहानी हमें सिखाती है – सच्चाई और हिम्मत से सबसे बड़ा अंधेरा भी मिटाया जा सकता है।
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