बलराम का त्याग: एक किसान, एक अनाथ बेटी और आईएएस दामाद की कहानी

क्या होता है जब इंसानियत का एक छोटा सा दिया मजबूरी और लाचारी के अंधेरे में रोशनी करने की ज़िद पकड़ ले? क्या खून के रिश्तों से भी ज्यादा मजबूत हो सकती है किसी गरीब किसान की ममता? यह कहानी है उत्तर प्रदेश के सूरजपुर गांव के बलराम की, जिसके लिए उसकी पुश्तैनी जमीन उसकी पहचान थी। लेकिन जब गांव में हैजे की महामारी फैली और एक मजदूर की आठ साल की बेटी पूजा अनाथ हो गई, तो बलराम और उसकी पत्नी प्रेमलता ने उसे अपनी बेटी बना लिया।

.

.

.

पूजा पढ़ने में होशियार थी, बलराम ने उसे स्कूल भेजा और औलाद से भी बढ़कर प्यार दिया। समय बीता, पूजा बड़ी हुई और गांव के होनहार लड़के अजीत से उसका रिश्ता तय हुआ। अजीत के पिता गरीब थे, और बेटे की आईएएस की कोचिंग व पूजा की शादी के लिए पैसे नहीं थे। बलराम ने अपनी जमीन गिरवी रख दी, ठाकुर भीम सिंह से कर्ज लिया, और सब कुछ दांव पर लगा दिया, बस अपनी बेटी की खुशियों के लिए।

अजीत दिल्ली गया, खूब मेहनत की। पूजा ने सिलाई का काम किया, दोनों ने तंगी में भी हिम्मत नहीं हारी। बलराम और प्रेमलता गांव में मजदूरी करने लगे, ठाकुर ने बार-बार ताने दिए। दो साल पूरे होने से पहले ही बलराम की जमीन छिनने वाली थी। उसी दिन गांव की धूल भरी सड़क पर एक सरकारी गाड़ी आई, उसमें से उतरे आईएएस अफसर अजीत और पूजा।

अजीत ने ठाकुर के कर्ज के कागजात देखे, सूदखोरी के आरोप में उसे गिरफ्तार करवाया और बलराम को उसकी जमीन के कागज लौटा दिए। बलराम की आंखों में खुशी के आंसू थे—उसकी बेटी और दामाद ने न सिर्फ उसका कर्ज उतारा, बल्कि पूरे गांव की तकदीर बदल दी। नए स्कूल, अस्पताल, सड़कें बनीं, और गांव का नाम पूजा बलराम कन्या विद्यालय से रोशन हुआ।

कहानी का संदेश

निस्वार्थ भाव से की गई नेकी कभी बेकार नहीं जाती। बलराम ने अपना सब कुछ दांव पर लगाया, और किस्मत ने उसे ऐसा दामाद दिया जो बेटा बनकर आया। यह कहानी विश्वास, त्याग और इंसानियत की जीत है।

अगर यह कहानी आपके दिल को छू गई हो, तो लाइक करें, कमेंट में बताएं कि किससे सबसे ज्यादा प्रेरणा मिली, और शेयर करें ताकि इंसानियत का संदेश हर जगह पहुंचे। ऐसी ही और दिल छू लेने वाली कहानियों के लिए हमारे चैनल को सब्सक्राइब जरूर करें।

धन्यवाद!

अगर आपको इस कहानी का छोटा, लंबा या विशेष संस्करण चाहिए, तो बताएं।