क्या हुआ जब एक मामूली पंचर वाला निकला D.M मैडम का पति🥵

संध्या और अर्जुन: एक अधूरी मोहब्बत की नई शुरुआत

संध्या एक ज़िला मजिस्ट्रेट (डीएम) थी। एक दिन वह किसी महत्वपूर्ण बैठक में पहुंचने के लिए अपनी गाड़ी से तेज़ी से जा रही थी। तभी एक सुनसान सड़क पर उसकी गाड़ी का टायर पंचर हो गया। वह बहुत परेशान हो गई क्योंकि उसे वक्त पर मीटिंग में पहुंचना था।

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उसने अपने ड्राइवर से कहा, “तुरंत किसी को बुलाओ और टायर ठीक कराओ, मैं देरी नहीं कर सकती।” ड्राइवर ने आसपास देखा, लेकिन कोई दुकान नहीं थी। फिर उसने बताया कि एक आदमी है जो अपनी बाइक पर पंचर बनाने का सामान लेकर घूमता है। वह उसे फोन कर बुला सकता है।

कुछ ही मिनटों में वह आदमी वहां आ गया। उसने गाड़ी के पीछे अपनी बाइक खड़ी की और पंचर ठीक करना शुरू किया। जैसे ही उसने डिग्गी खोली, उसकी नजर कार के शीशे पर पड़ी। वह ठिठक गया। संध्या ने भी बाहर देखा और दोनों की नज़रें मिलीं। वह पंचर बनाने वाला कोई और नहीं बल्कि अर्जुन था — संध्या का पूर्व पति।

दोनों एक-दूसरे को देखते रह गए। अर्जुन ने बिना कुछ कहे टायर ठीक करना जारी रखा। जब काम खत्म हुआ, तो ड्राइवर ने पूछा, “भाई साहब, कितने पैसे हुए?” अर्जुन ने सिर हिलाया और कहा, “पैसे की जरूरत नहीं, बस मैडम से कहिए कि अगर कभी मदद चाहिए हो तो याद करें।”

संध्या ने अपने हाथ में एक लिफाफा लिया और ड्राइवर को दिया, “इसे उसे दे देना, इसमें मेरा नंबर है। अगर कभी कुछ चाहिए हो तो फोन कर सकता है।” अर्जुन ने लिफाफा लिया, चुपचाप बाइक स्टार्ट की और चला गया।

संध्या के दिल में पुरानी यादें उमड़ने लगीं। वह अर्जुन से बेहद प्यार करती थी। दोनों ने प्रेम विवाह किया था, लेकिन परिवार की ऊंच-नीच, अमीरी-गरीबी की खाई ने उनके रिश्ते में दरार डाल दी थी। संध्या की मां हमेशा कहती थीं कि अर्जुन उसके लायक नहीं है। धीरे-धीरे झगड़े बढ़े और तलाक हो गया।

तलाक के बाद संध्या ने अपनी पढ़ाई जारी रखी और डीएम बन गई। वहीं अर्जुन का जीवन बिखर गया। आर्थिक तंगी इतनी बढ़ गई कि उसे अपनी पुश्तैनी जमीन तक बेचनी पड़ी। गुजारा करने के लिए उसने पंचर बनाने का काम शुरू किया।

रात को अर्जुन ने लिफाफा खोला। उसमें पैसे रखे थे और बाहर संध्या का नंबर लिखा था। उसने देर तक उस नंबर को देखा और गहरी सांस ली। दूसरे दिन सुबह संध्या के फोन पर एक मैसेज आया, “अगर तुम सच में जानना चाहती हो कि मैं पंचर क्यों बना रहा हूं, तो मुझसे मिलो।”

संध्या ने कुछ देर सोचा और जवाब दिया। अर्जुन ने एक पार्क का नाम बताया। संध्या ने चेहरे को ढककर वहां पहुंची। पार्क की एक बेंच पर दोनों आमने-सामने बैठे।

संध्या ने पूछा, “अर्जुन, यह सब कैसे हुआ?” अर्जुन ने लंबी सांस लेकर कहा, “तुम्हारे जाने के बाद सब कुछ खत्म हो गया। घर की हालत बिगड़ती गई, मां-बाबूजी बीमार रहने लगे। जो भी थोड़ी-बहुत जमीन थी, बेचनी पड़ी। फिर मुझे समझ आया कि पेट भरने के लिए किसी काम से ही गुजारा करना होगा। दोस्त की मदद से पंचर बनाने का काम शुरू किया।”

संध्या भावुक हो गई, लेकिन खुद को संभालते हुए बोली, “तुमने दूसरी शादी क्यों नहीं की?” अर्जुन ने मुस्कुराकर कहा, “शादी तो एक ही बार होती है।”

यह सुनकर संध्या की आंखों में चमक आ गई। वह धीरे से बोली, “अर्जुन, मैं अब भी तुम्हें चाहती हूं। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई थी।”

अर्जुन ने उसकी आंखों में देखा। कुछ दिनों बाद संध्या ने अर्जुन को मंदिर में बुलाया। जब अर्जुन पहुंचा तो देखा कि संध्या ने फिर से उसकी मांग में सिंदूर भरा था और मंगलसूत्र पहन रखा था।

संध्या ने अर्जुन का हाथ पकड़कर कहा, “मैं इस बार तुम्हें कभी नहीं छोड़ूंगी।”

अर्जुन के परिवार वालों की खुशी का ठिकाना नहीं था। इस बार शादी बिना किसी शान-शौकत के, लेकिन पूरे दिल से हुई।

अर्जुन और संध्या फिर से एक हो गए और उनका प्यार पहले से भी ज्यादा मजबूत था।

कभी-कभी रिश्तों में गलतफहमियां आ जाती हैं, लेकिन अगर प्यार सच्चा हो तो तकदीर भी दोबारा उन्हें मिलाने का रास्ता बना देती है।

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