एक गरीब मजदूर का सुझाव जिसने करोड़पति सेठ की दुनिया बदल दी

कहानी है कानपुर की, जो कभी पूरब का मैनचेस्टर कहा जाता था। यहां खन्ना टेक्सटाइल्स नाम की पुरानी कपड़ा मिल थी, जिसका साम्राज्य विक्रम खन्ना के परिवार का तीन पीढ़ियों से जुड़ा हुआ था। विक्रम खन्ना, 50 साल के कारोबारी, अपनी कंपनी को नई ऊंचाइयों पर ले जाना चाहते थे, लेकिन विदेशी कंपनियों की बढ़ती प्रतिस्पर्धा और पुरानी मशीनों की वजह से उनकी फैक्ट्री डूबने लगी थी। मुनाफा घट रहा था, कर्ज बढ़ रहा था, और बैंक के नोटिस रोज मिल रहे थे।

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विक्रम हर रोज अपने आलीशान ऑफिस में बड़ी-बड़ी बातों वाली मीटिंग करते, पर कोई ठोस समाधान नहीं निकलता था। उनकी मैनेजमेंट टीम देश के बड़े-बड़े बिजनेस स्कूलों से पढ़ी हुई थी, लेकिन जमीनी हकीकत से अनजान। वहीं, फैक्ट्री के धूल-धक्कड़ से भरे हिस्से में शंकर नाम का एक गरीब मजदूर काम करता था। शंकर की आंखें तेज थीं और दिमाग बेहद व्यवहारिक। उसने 15 सालों में फैक्ट्री की हर मशीन, हर प्रक्रिया को समझ लिया था।

शंकर ने देखा कि कपास के उत्पादन में बहुत सारा कचरा निकलता है, जिसे कॉटन वेस्ट कहते हैं, जो मशीनों के नीचे फर्श पर बिखरा रहता था और दिन के अंत में जला दिया जाता था। उसका दिल कचोटता था कि इतनी मेहनत से उगाई गई कपास को यूं बेकार क्यों फेंका जाता है। एक दिन फैक्ट्री में बड़ा संकट आया जब एक बड़ा एक्सपोर्ट ऑर्डर खराब क्वालिटी और देर से उत्पादन के कारण रद्द हो गया।

गुस्से में विक्रम खन्ना फैक्ट्री के फ्लोर पर आए और मैनेजमेंट टीम को धमकाया कि कोई समाधान लेकर आए, नहीं तो नौकरी से निकाल दिया जाएगा। सब चुप थे, तभी शंकर ने डरते-डरते एक सुझाव दिया। मैनेजर ने उसे डांटा और भगा दिया, लेकिन विक्रम ने उसकी बातों में सच और सादगी देखी। उन्होंने रिसर्च एंड डेवलपमेंट हेड मिस्टर अय्यर को उस सुझाव पर काम करने को कहा।

मिस्टर अय्यर और उनकी टीम ने कॉटन वेस्ट का परीक्षण किया और पाया कि इसमें सेलुलोस की मात्रा बहुत अधिक है, जो इसे हाई क्वालिटी कागज, खासकर करेंसी नोट और स्टैंप पेपर बनाने के लिए आदर्श बनाती है। यह खोज टेक्सटाइल इंडस्ट्री में क्रांति साबित हो सकती थी।

फिर क्या था, विक्रम ने फैक्ट्री के एक बंद हिस्से में पेपर रिसाइक्लिंग यूनिट लगाई। 15 दिनों में उन्होंने उस कचरे से चमकदार, मजबूत कागज बनाया। भारतीय रिजर्व बैंक की प्रिंटिंग प्रेस ने इस नए सस्ते और बेहतरीन कागज को अपनाया और खन्ना टेक्सटाइल्स को बड़ा ऑर्डर दिया।

एक महीने में विक्रम की कंपनी ने सिर्फ इस नए बिजनेस से 100 करोड़ रुपए का मुनाफा कमाया। विक्रम ने तुरंत शंकर को ढूंढ निकाला, लेकिन पता चला कि शंकर ने नौकरी छोड़ दी थी। विक्रम खुद गांव जाकर शंकर को खोज निकाला, जो बीमार था और गरीबी में जी रहा था।

विक्रम ने शंकर से माफी मांगी और उसे अपने साथ वापस कानपुर ले आया। उसने शंकर और उसकी पत्नी का इलाज कराया और खन्ना टेक्सटाइल्स के अंदर नई कंपनी “खन्ना पल्प एंड पेपर लिमिटेड” की नींव रखी। शंकर को इस कंपनी का मैनेजिंग डायरेक्टर बनाया।

शंकर ने अपनी मेहनत और व्यावहारिक ज्ञान से कंपनी को देश की सबसे सफल कंपनियों में से एक बना दिया। उसने फैक्ट्री के मजदूरों के लिए बेहतर घर, उनके बच्चों के लिए स्कूल और मुफ्त इलाज का इंतजाम किया। विक्रम और शंकर अब सिर्फ मालिक-नौकर नहीं, बल्कि सच्चे दोस्त और भाई बन गए थे।

यह कहानी हमें सिखाती है कि ज्ञान और काबिलियत डिग्री या पद की मोहताज नहीं होती। एक छोटा सा विचार भी दुनिया बदल सकता है, बशर्ते उसे सही नजर से पहचाना जाए।

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