गरीब समझकर किया अपमान ! अगले दिन खुला राज – वही निकला कंपनी का मालिक फिर जो हुआ…

हर प्रसाद की इज्जत – किरदार की असली पहचान

मुंबई के बड़े आईटी पार्क में सुबह 10 बजे का वक्त था। चमचमाते सूट पहने लोग, महंगी गाड़ियों से उतरते मैनेजर, हर कोई अपनी-अपनी अहमियत में डूबा हुआ था। उसी भीड़ के बीच एक बुजुर्ग आदमी – झुर्रियों भरा चेहरा, सफेद बाल, पुराने कुर्ता-पायजामा और फटा हुआ थैला लिए – धीरे-धीरे ऑफिस के गेट की ओर बढ़ रहा था। उसका नाम था हर प्रसाद

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जैसे ही वह गेट पर पहुँचा, सिक्योरिटी गार्ड ने उसे घूरते हुए कहा, “यहाँ भिखारियों के लिए कोई जगह नहीं है।” रिसेप्शनिस्ट ने ताना मारा, स्टाफ ने मजाक उड़ाया। एचआर हेड कविता शर्मा, ब्रांडेड साड़ी और ऊँची हील्स में, तिरस्कार से बोली – “यह ऑफिस है, धर्मशाला नहीं। बाहर निकलो।” गार्ड ने हर प्रसाद को धक्का दिया, उसके थैले से पुरानी फाइलें और कागज फर्श पर गिर गए। हंसी और ताने तेज हो गए।

हर प्रसाद ने चुपचाप अपने कागज समेटे, सिर झुकाया और बाहर की ओर कदम बढ़ा दिए। भीड़ में बस एक चेहरा अलग था – नया ट्रेनी अर्जुन। उसने पानी की बोतल आगे बढ़ाई, “बाबा, बैठ जाइए। आप थके हुए लग रहे हैं।” हर प्रसाद की आँखों में पहली बार हल्की चमक आई। उन्होंने अर्जुन के कंधे पर हाथ रखकर कहा, “बेटा, तूने इंसानियत दिखाई। यही सबसे बड़ी पहचान है।”
जाते-जाते हर प्रसाद ने एक वाक्य कहा – “कल तुम सबको असली मायने में इज्जत का अर्थ समझ आएगा।”

अर्जुन के मन में सवाल उमड़ने लगे – ये बाबा कौन हैं? इनके पास ये फाइलें क्यों हैं? और कल क्या होने वाला है?

दूसरा दिन – असली पहचान का खुलासा

अगली सुबह ऑफिस में वही भागदौड़, वही घमंड। लेकिन अचानक कई काले एसयूवी गाड़ियाँ कंपनी के गेट पर रुकीं। मीडिया के कैमरे चमकने लगे। सारे कर्मचारी हड़बड़ा गए। दरवाजा खुला – सबसे पहले बाहर आए देश के जानेमाने उद्योगपति, और उनके पीछे वही बुजुर्ग – हर प्रसाद, लेकिन आज साफ-सुथरे कपड़े, चमकते जूते, आँखों में सख्ती।

अरुण और कविता का चेहरा पीला पड़ गया। पूरे ऑफिस को कॉन्फ्रेंस हॉल में बुलाया गया। मंच पर अरबपति बोले –
“आज मैं आपको उस इंसान से मिलाने आया हूँ, जिसकी वजह से मैं यहाँ खड़ा हूँ। मेरे दादा श्री हर प्रसाद जी।”

पूरा हॉल सन्नाटे में डूब गया। कल जिसे भिखारी समझकर धक्के दिए थे, वही अब कंपनी के असली मालिक और संस्थापक के रूप में सामने खड़े थे। हर प्रसाद मंच पर आए, उनकी आवाज धीमी थी मगर हर कोने में गूंज रही थी –
“कल जब मैं आया था, मुझे बाहर निकाल दिया गया। क्यों? क्योंकि मेरे कपड़े मैले थे, मैं अमीर नहीं दिखता था।
याद रखो, इंसान की इज्जत उसके कपड़ों से नहीं, उसके कर्मों से होती है।”

उन्होंने कंपनी की रजिस्ट्रेशन डीड और शेयर होल्डिंग पेपर दिखाए – “यह कंपनी मैंने बनाई थी, और आज भी इसका बहुमत मेरा है। कल मैंने सिर्फ इंसानियत का टेस्ट लिया था। अफसोस, बहुत से लोग उसमें गिर गए।”

अर्जुन, जिसने पानी दिया था, गर्व से पीछे खड़ा था। हर प्रसाद बोले –
“कंपनी मशीनों और इमारतों से नहीं, यहाँ काम करने वाले लोगों की इंसानियत से चलती है। अगर वही खत्म हो जाए तो सबसे बड़ी दौलत भी मिट्टी बन जाती है।”

पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। लेकिन कविता, अरुण और गार्ड के दिल पर हर शब्द चाकू की तरह चुभ रहा था।

सीख और संदेश

इंसान की असली पहचान उसके किरदार से होती है, कपड़ों से नहीं।
कभी किसी को उसके हालात, पहनावे या गरीबी से मत आंकिए।
इज्जत देने वाले ही सच्ची इज्जत पाते हैं।
हर प्रसाद की कहानी हमें याद दिलाती है – समय सबका असली चेहरा दिखा देता है।

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हर प्रसाद की कहानी हर उस इंसान के लिए है, जो सादगी, मेहनत और इंसानियत के साथ अपनी पहचान बनाता है।