जब मंदी आयी तो सभी सेठ जी को छोड़कर जाने लगे ,लेकिन 2 नौकरों ने साथ दिया , फिर जो हुआ उसने हैरान कर

“सेठ की सच्ची वफादारी और माफ़ी की ताकत”

जयपुर के जहरी बाजार में सेठ पंकज कपूर की कपूर टेक्सटाइल्स दुकान थी। सेठ जी अपने कर्मचारियों को परिवार मानते थे, उनकी हर खुशी-दुख में साथ देते थे। छह लड़के काम करते थे—रामू, शंकर, सुरेश, मोहन, सोहन और दिनेश। सब वफादारी की कसमें खाते थे।

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समय बदला, बाजार में मंदी आई, दुकान की बिक्री गिर गई। सेठ जी ने मजबूरी में सबकी तनख्वाह कम करने का फैसला किया। वादा किया, हालात सुधरते ही सब लौटाएंगे। लेकिन चार लड़के—सुरेश, मोहन, सोहन, दिनेश—ने दुकान छोड़ दी और दूसरी जगह नौकरी कर ली।
केवल रामू और शंकर ने साथ निभाया, कहा—आपने हमारे लिए जो किया, हम कभी नहीं भूल सकते। चाहे तनख्वाह ना मिले, हम आपके साथ रहेंगे।

तीनों ने मिलकर दुकान को फिर से खड़ा किया। मेहनत, ईमानदारी और नए आइडिया से दुकान पहले से भी ज्यादा चलने लगी। दिवाली पर मुनाफा बढ़ा, सेठ जी ने रामू और शंकर की तनख्वाह दोगुनी कर दी और उन्हें दुकान के मुनाफे में हिस्सेदार भी बना लिया।

उधर, बाकी चारों को नई दुकान में सम्मान नहीं मिला, मंदी आते ही नौकरी से निकाल दिए गए। गलती का एहसास हुआ, शर्म के साथ पुराने सेठ के पास लौटे। सेठ जी ने पहले मना किया, पर फिर कहा—परिवार भटके हुए बच्चों को एक मौका देता है।
लेकिन भरोसा कांच की तरह है, दरार हमेशा रह जाती है।
चारों ने सबक सीखा, वफादारी सिर्फ बातों से नहीं, काम से साबित करनी होती है।

सीख:

सच्चा रिश्ता वही है जो मुश्किल वक्त में साथ दे।
वफादारी अच्छे समय में नहीं, बुरे समय में हाथ थामने में है।
माफ कर देना बदला लेने से बड़ी ताकत है।
भरोसा टूट जाए तो जुड़ सकता है, लेकिन दरार रह जाती है।

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