“थाने में रिपोर्ट लिखाने पहुँचे बुजुर्ग को गाली देकर भगा दिया… लेकिन जैसे ही उन्होंने अपना पहचान पत्र दिखाया, सबकी आंखें फटी रह गईं!”
“इंसानियत की पहचान: एक बुजुर्ग की कहानी”
शाम का समय था, और थाना परिसर के बाहर चाय की ठेलियों से उबलती भाप और अदरक की तीखी खुशबू हवा में घुली हुई थी। बरामदे में लंबी कतार, दीवारों पर धूल जमी सूचनाएं, और बीच-बीच में सायरन की तेज चीख, सब मिलकर उस जगह का रोज का शोर रच रहे थे। इसी भीड़ में एक 70 वर्षीय बुजुर्ग धीरे-धीरे चलते हुए मुख्य दरवाजे से अंदर आए। उनके कपड़े साधारण थे, और कंधे पर पुरानी फाइलों का पतला पुलिंदा था, जिसे वे बार-बार थपथपाकर सीधा कर रहे थे।
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जब बुजुर्ग ने काउंटर पर खड़े सिपाही से कहा कि उन्हें एक रिपोर्ट दर्ज करवानी है, तो सिपाही ने उन्हें घृणा से देखा। उन्होंने बुजुर्ग को मजाक में कहा, “पहले चाय पिला दो, फिर रिपोर्ट लिखवाना।” बुजुर्ग ने फाइल से एक मुड़ा हुआ कागज निकाला और कहा, “मामला छोटा नहीं है। सुन लो बस दो मिनट।” लेकिन ड्यूटी ऑफिसर ने उनकी बात को अनसुना कर दिया और कहा, “यहां रोने-धोने का टाइम नहीं है।”
बुजुर्ग ने एक पल के लिए आंखें बंद कीं, लेकिन गुस्सा नहीं किया। उन्होंने फिर से कोशिश की, लेकिन सिपाही ने उन्हें धक्का दे दिया। बाहर जाते समय, उनकी फाइल से कुछ कागज गिर गए, लेकिन उन्होंने उन्हें समेट लिया और चुपचाप खड़े रहे।
फिर, उन्होंने अपने पुराने फोन से एक नंबर डायल किया और एक ही वाक्य कहा। कुछ ही देर में, थाने के बाहर सायरन की आवाजें गूंजने लगीं। पुलिस की कई गाड़ियाँ एक के बाद एक आकर रुकीं, और कमिश्नर साहब के नेतृत्व में कई अधिकारी अंदर आए। सबकी नजर उसी बुजुर्ग पर थी, जिसे अभी कुछ मिनट पहले बेकार समझा गया था।
कमिश्नर ने बुजुर्ग के सामने जाकर सलाम किया और पूछा, “आपने पहले बताया क्यों नहीं?” बुजुर्ग ने शांत स्वर में कहा, “हर बार बताना जरूरी नहीं होता। कभी-कभी देखना चाहिए कि जमीन पर लोग कैसे बर्ताव करते हैं।” उनकी आवाज में इतनी गहराई थी कि पूरा थाना सिर झुका कर खड़ा रह गया।
कमिश्नर ने गुस्से से पूछा, “कौन था जिसने इन्हें धक्का दिया?” सभी अधिकारी घबराए हुए थे। बुजुर्ग ने हाथ उठाया और कहा, “मैं बदला लेने नहीं आया। मैं सिर्फ यह दिखाना चाहता था कि पुलिस की असली ताकत वर्दी में नहीं, बल्कि व्यवहार में है।”
कमिश्नर ने तुरंत आदेश दिया कि सभी दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। लेकिन बुजुर्ग ने कहा, “पहले इन्हें एक महीने तक गरीब और बुजुर्ग फरियादियों की सेवा करने दीजिए। तब इन्हें समझ आएगा कि इंसाफ कैसा लगता है।”
इस घटना ने सबको झकझोर दिया। भीड़ में खड़े लोगों की आंखों में आंसू थे, और एक महिला ने कहा, “आज पहली बार लगा कि पुलिस सच में हमारी है।”
इस तरह, एक साधारण बुजुर्ग ने अपनी गरिमा और इंसानियत से पूरे थाने की हवा बदल दी, यह साबित करते हुए कि असली ताकत वर्दी में नहीं, बल्कि इंसानियत में होती है।
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