दुबई के एक लेबर कैम्प में रोजाना बिल्लियां गायब हो जाती थी, जब सच्चाई सामने आयी तो सभी के होश उड़ गए

“लेबर कैंप की बिल्लियां: इंसानियत की सबसे बड़ी परीक्षा”

दुबई की चमकती सड़कों, आसमान छूती इमारतों और सोने के बाजारों के पीछे एक ऐसी दुनिया थी, जहां हजारों मजदूर अपने सपनों और मजबूरी के बीच जी रहे थे। शहर के बाहरी इलाकों में बने लेबर कैंपों में भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और फिलीपींस के लोग एक साथ रहते थे। उनके दिन कड़ी मेहनत और रातें अकेलेपन में गुजरती थी। लेकिन उनकी बेरंग जिंदगी में एक रंग था—वहां की बिल्लियां।

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ये बिल्लियां किसी की पालतू नहीं थीं। वे पूरे कैंप की थीं। जब मजदूर थक कर लौटते, तो वे बिल्लियां उनके पास आ जातीं। मजदूर अपनी सूखी रोटी का टुकड़ा उन्हें दे देते। इन बेजुबान जानवरों का साथ उन मजदूरों के लिए परिवार का सा सुकून था। रहीम शेख, बांग्लादेश का एक शांत स्वभाव वाला मजदूर, अपनी दो बेटियों के लिए दुबई आया था। उसे बिल्लियों से खास लगाव था। उसकी सबसे प्यारी बिल्ली थी—रानी। रोज रात को वह रानी के लिए अपने खाने में से चावल और मछली बचा कर रखता।

कैंप के ब्लॉक नंबर सात में खान बाबा, एक पाकिस्तानी पठान, और पंजाब का संदीप भी रहते थे। खान बाबा अक्सर एक भूरे बिल्ले को गोद में लेकर सहलाते थे। संदीप बिल्लियों के बच्चों के साथ खेलता था। इन मजदूरों के लिए बिल्लियां अकेलेपन की साथी थीं। सब ठीक चल रहा था, लेकिन एक दिन रहीम की रानी गायब हो गई। रहीम ने सोचा, कहीं चली गई होगी, पर वह दो दिन बाद भी नहीं लौटी। फिर खान बाबा का बिल्ला भी गायब हो गया। धीरे-धीरे कैंप की बिल्लियां कम होती गईं। रहीम ने चिंता जताई, “यार, कुछ तो गड़बड़ है।”

शुरू में लोगों ने बात को हल्के में लिया। किसी ने कहा गर्मी बढ़ गई है, कोई बोला नगर पालिका वाले पकड़ ले गए होंगे। लेकिन रहीम को यकीन नहीं हुआ। उसने रातों को जागना शुरू किया। उसने नोट किया कि फिलीपीनी मजदूरों के कमरे से अजीब सी गंध आती है और वे रात में बाहर नहीं निकलते। खान बाबा ने समझाया, “बिना सबूत किसी पर इल्जाम लगाना ठीक नहीं।” लेकिन तीनों ने तय किया कि अब वे खुद पता लगाएंगे।

तीनों ने रात को कैंप की निगरानी शुरू की। दो रातें कुछ नहीं हुआ। तीसरी रात, खान बाबा ने देखा—फिलीपीनी मजदूर लियो अपने कमरे से निकला, कटोरे में कुछ लेकर एक काली बिल्ली के पास गया। बिल्ली ने खाना शुरू किया, तभी लियो ने उस पर कपड़ा डाला और दबोच लिया। वह बिल्ली को पानी की टंकी के पीछे ले गया। वहां अंधेरे में बिल्ली की आखिरी चीख सुनाई दी। कुछ देर बाद लियो बाहर निकला—उसके कपड़ों पर खून के धब्बे थे।

खान बाबा ने टॉर्च जलाई, तो देखा—बिल्ली का बेजान शरीर, पास में चाकू और प्लास्टिक का थैला। वह कांपते हुए रहीम और संदीप के पास गया। तीनों ने बाकी मजदूरों को बुलाया और अगले दिन कंपनी के हेड ऑफिस पहुंच गए। मिस्टर अब्दुल्ला, प्रोजेक्ट इंजीनियर, ने उनकी बात गंभीरता से सुनी। उन्होंने मजदूरों की समझदारी की तारीफ की और वादा किया कि दोषियों को सजा मिलेगी।

मिस्टर अब्दुल्ला ने कैंप के पिछवाड़े हाई डेफिनेशन सीसीटीवी कैमरे लगवा दिए। एक हफ्ते बाद कैमरे ने सब रिकॉर्ड किया—लियो और उसके साथी फिर एक बिल्ली को मारते पकड़े गए। फुटेज देखकर अब्दुल्ला ने पुलिस बुला ली। पुलिस ने मजदूरों को रंगे हाथों पकड़ा, उनके कमरे से बिल्ली का मांस बरामद हुआ। पूछताछ में उन्होंने अपना गुनाह कबूल कर लिया। पता चला, फिलीपींस के कुछ इलाकों में गरीबी के कारण बिल्लियों का मांस खाया जाता है। लेकिन दुबई में यह कानूनन अपराध था।

तीनों मजदूरों पर जानवरों के प्रति क्रूरता का मुकदमा चला, उनका वीजा कैंसिल कर दिया गया और उन्हें यूएई से डिपोर्ट कर दिया गया। रहीम, खान बाबा और संदीप की हिम्मत और इंसानियत की वजह से कैंप में फिर से भरोसा लौट आया। जो बिल्लियां बची थीं, मजदूर उनका और भी ज्यादा ख्याल रखने लगे। इस घटना ने भारतीय, पाकिस्तानी और बांग्लादेशी मजदूरों के बीच एक मजबूत रिश्ता बना दिया। उन्होंने मिलकर इंसानियत के दुश्मन का सामना किया था।

रहीम अब भी अपने कमरे के बाहर बैठता। रानी तो कभी वापस नहीं आई, लेकिन अब एक छोटा सा बिल्ली का बच्चा उसकी गोद में बैठ जाता। रहीम उसकी आंखों में देखता, जिसमें उसे विश्वास दिखता—एक ऐसा विश्वास जिसे बचाने के लिए उसने और उसके साथियों ने बड़ी लड़ाई लड़ी थी।

दुबई की चकाचौंध के पीछे, उस लेबर कैंप की दीवारों में इंसानियत एक बार फिर जीत गई थी।

सीख:
क्रूरता और इंसानियत की जंग हर जगह लड़ी जाती है। बेजुबान जानवरों के प्रति हमारा व्यवहार ही हमारी असली इंसानियत का पैमाना है। रहीम और उसके साथियों ने साबित कर दिया कि दिल में दया और हिम्मत हो तो अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाई जा सकती है।

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