पुराने कपड़ों में आई शिक्षिका को स्कूल से बाहर निकाला गया… फिर जो हुआ

कहानी की शुरुआत

सुबह 8 बजे सूर्यनगरी इंटरनेशनल स्कूल के बाहर भीड़ थी। महंगे कपड़ों में बच्चे, माता-पिता, सुरक्षा गार्ड – सब व्यस्त थे। उसी भीड़ में एक साधारण साड़ी पहने, चप्पल और पुराने बैग के साथ 55 वर्षीय महिला सुनीता शर्मा स्कूल के गेट पर पहुंचती हैं। वह कभी इसी स्कूल में पढ़ाती थीं।

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पहचान की तलाश और अपमान

सुनीता गेट पर पहुंचती हैं, लेकिन गार्ड और एचआर कोऑर्डिनेटर रीना उन्हें पहचानने से इनकार कर देते हैं। उनके पुराने कपड़ों और साधारण रूप को देखकर उन्हें बाहर जाने को कह दिया जाता है। कुछ अभिभावक भी तिरस्कार भरी बातें करते हैं। सुनीता चुपचाप लौटने लगती हैं।

पुराने छात्र से मुलाकात

तभी स्कूल यूनिफार्म में एक युवक आरव आता है, सुनीता के पैर छूता है और बताता है कि वह अब इसी स्कूल का वाइस प्रिंसिपल है। वह सुनीता को पहचानता है और सबके सामने उनका सम्मान करता है। रीना और गार्ड शर्मिंदा हो जाते हैं।

सम्मान की वापसी

आरव सुनीता का हाथ पकड़कर स्कूल के अंदर ले जाता है। स्कूल की प्रिंसिपल भी सुनीता को पहचानती हैं और उनके योगदान को याद करती हैं। पूरा स्टाफ और छात्र सम्मान में सिर झुका लेते हैं। अगले दिन टीचर्स डे पर समारोह होता है, जिसमें सुनीता शर्मा को विशेष सम्मान दिया जाता है।

सुनीता का संदेश

सुनीता मंच पर कहती हैं कि कपड़े पुराने हो सकते हैं, लेकिन शिक्षक के मूल्य और पहचान उसके पढ़ाए बच्चों से होती है। उन्होंने 20 साल स्कूल में पढ़ाया, अब गांव में गरीब बच्चों को पढ़ाती हैं। शिक्षा ही समाज की सोच बदल सकती है।

सम्मान का फल

स्कूल की लाइब्रेरी का नाम “सुनीता शर्मा ज्ञान केंद्र” रखा जाता है। पूरा सभागार खड़ा होकर उनका सम्मान करता है। सुनीता कहती हैं – अगर मेरी किताबें किसी बच्चे के काम आ जाएं, वही मेरी सबसे बड़ी तनख्वाह है।

कहानी का संदेश

एक शिक्षक का असली सम्मान उसके कर्म, उसकी शिक्षा और उसके छात्रों से होता है, न कि उसके कपड़ों या ओहदे से।

प्रेरणादायक सवाल:

क्या आपको लगता है कि समाज में असली पहचान और सम्मान कर्मों से होना चाहिए, न कि दिखावे से?

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