बरसात में भीगे DM के पिता को बैंक से निकाला गया धक्के से – फिर DM ने जो किया, सबको हैरान कर दिया!
शहर में बारिश लगातार गिर रही थी।
सड़क पर पानी बह रहा था, और बैंक शाखा का शटर आधा बंद।
एक दुबला-पतला बुजुर्ग, श्रीधर प्रसाद, भीगा हुआ कुर्ता पहने, थैली हाथ में लिए बैंक के दरवाजे पर खड़ा था।
गार्ड ने छतरी आगे बढ़ाई –
“अंकल, टाइम खत्म। कल आइए।”
.
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बुजुर्ग ने धीमे से कहा –
“बेटा, 2000 निकालने हैं, दवाई के लिए।”
गार्ड ने झुंझलाकर जवाब दिया –
“बारिश है तो क्या? नियम है।”
भीतर से मैनेजर निकला, सूट पहने, हल्की इत्र की खुशबू।
गार्ड ने इशारा किया –
“भिखारी जैसा लग रहा है।”
बुजुर्ग बोले –
“भिखारी नहीं हूं, खाता यहीं है।”
मैनेजर ने हंसी उड़ाई –
“दवाई के नाम पर रोज कहानी सुनाते हैं लोग। कल आइए।”
इज्जत का सवाल
बुजुर्ग ने खिड़की के शीशे पर फॉग हटाई –
“बस पर्ची भर दूं।”
गार्ड ने धक्का दे दिया।
फुटपाथ की गीली ईंटों पर उनका पांव फिसला, हाथ का पुराना कागज नीचे गिर गया।
कागज के कोने पर नाम लिखा था – श्रीधर प्रसाद
और नीचे एक नंबर – डीएम ऑफिस अंकिता कुमार।
पास की चाय टपरी से एक लड़का दौड़ता आया –
“बाबा, लग गई क्या?”
बुजुर्ग बोले –
“कुछ नहीं बेटा, बस पानी ज्यादा है।”
लड़के ने गिरे कागज उठाए, नंबर पढ़ा –
“बाबा, यह किसका नंबर है?”
“मेरे बेटे का, वो यहीं जिले में डीएम है।”
लड़के की आंखें फैल गईं।
बैंक के अंदर खड़े लोग भी चौकन्ने हो गए।
मैनेजर के माथे पर पसीना, पर आवाज सख्त –
“ड्रामा बंद करो, बाहर जाओ।”
एक कॉल ने बदल दी तस्वीर
लड़के ने मोबाइल निकाला, वही नंबर डायल कर दिया।
फोन स्पीकर पर था –
“डीएम ऑफिस बोलिए।”
लड़के ने जल्दी-जल्दी कहा –
“यहां एक बुजुर्ग को बैंक से निकाल दिया गया। उनके कार्ड पर आपका नंबर है। नाम श्रीधर प्रसाद।”
कुछ सेकंड सन्नाटा।
फिर आवाज नरम हुई –
“कहां हैं आप?”
“स्टेट बैंक सिविल लाइंस ब्रांच गेट पर। बारिश हो रही है।”
“वहीं रहिए, हम किसी को भेज रहे हैं।”
लड़के ने छाते के नीचे बुजुर्ग को बैठाया।
बैंक मैनेजर ने शटर और नीचे करा दिया।
भीतर से क्लर्क बोले –
“सीसीटीवी रिकॉर्ड हो रहा है।”
मैनेजर झुंझलाया –
“कोई नियम नहीं टूट रहा।”
पहुंची डीएम अंकिता कुमार
कुछ ही मिनटों में सफेद गाड़ी बैंक के सामने आकर रुकी।
एक युवा महिला, डीएम अंकिता कुमार, बारिश में भीगे फुटपाथ पर उतरीं।
उनके साथ दो स्टाफ, एक ड्राइवर।
महिला ने बुजुर्ग के कंधे पर हाथ रखा –
“बाबा, आप ठीक हैं?”
बुजुर्ग ने सिर हिलाया –
“ठीक हूं बिटिया।”
मैनेजर ने हाथ जोड़ लिए –
“मैडम, मामला छोटा सा है।”
अंकिता ने गंभीरता से कहा –
“मामला छोटा तब होता जब इंसानियत बड़ी होती।”
नियम और इंसानियत
अंकिता ने पासबुक टेबल पर रखवाई।
केवाईसी अपडेटेड, पेंशन खाता।
मैनेजर बोला –
“टाइम ओवर था, स्टाफ कम था।”
अंकिता ने पूछा –
“किस नियम में लिखा है कि बारिश में भीगे सीनियर सिटीजन को दरवाजे से धक्का दिया जाए?”
सीसीटीवी फुटेज चलवाई गई –
धक्का, गिरना, कागज गिरना, हंसी।
लॉबी में सन्नाटा।
अंकिता ने बुजुर्ग का हाथ पकड़ा –
“बाबा, आप अंदर आइए।”
खुद काउंटर के पीछे जाकर कैशियर से बोली –
“यह लेनदेन अभी होगा।”
कैशियर ने पर्ची भरी –
“कितना निकालना है?”
बुजुर्ग बोले –
“बस 2000, दवाई के लिए।”
लड़के ने मुस्कुराकर उनकी थैली संभाली।
बैंक में बदलाव
अंकिता ने मैनेजर से पूछा –
“हर शाखा में सीनियर सिटीजन हेल्प डेस्क, बारिश जैसी आपात स्थिति में टोकन सुविधा सुनिश्चित करनी होती है। आपने क्या किया?”
मैनेजर चुप।
स्टाफ बुजुर्ग की तरफ बढ़ा –
किसी ने तौलिया दिया, किसी ने गर्म पानी।
क्लर्क ने कुर्सी दी।
अंकिता ने रजिस्टर पर साइन किया –
*”आज से तीन चीजें बदलेंगी –
-
सीनियर सिटीजन के लिए अलग काउंटर और कुर्सियां।
क्लोजिंग टाइम से 15 मिनट पहले तक आए बुजुर्गों के लिए अर्जेंट टोकन।
स्टाफ के लिए ग्राहक आचरण प्रशिक्षण।
यह नोटिस शाम तक मेरे ऑफिस में फोटो प्रूफ के साथ चाहिए।”*
मैनेजर ने सिर झुका लिया –
“माफ कर दीजिए, गलती हो गई।”
अंकिता बोलीं –
“माफी शब्द से नहीं, सुधार से मिलती है।”
पिता की सीख
बुजुर्ग बोले –
“बिटिया, गुस्सा मत करो।”
अंकिता की आंखें नम थीं –
“गुस्सा नहीं बाबा, यह जवाबदेही है।”
भीड़ में ताली बजी।
गार्ड आगे आया –
“बाबा, मेरी गलती।”
बुजुर्ग ने उसके हाथ पर हाथ रखा –
“मैं भीग गया था, तुम भीग गए हो। अब दोनों सूख जाएंगे बेटा।”
लड़के ने चाय के दो गिलास लाकर रख दिए।
अंकिता ने एक गिलास अपने पिता की ओर बढ़ाया –
“बाबा, जरा गर्म पी लीजिए।”
सच्चाई सामने आई
लोगों के चेहरे पर हैरानी।
मैनेजर हक्का-बक्का।
किसी ने फुसफुसाया –
“सर, आप डीएम सर के पिता!”
अंकिता मुस्कुराई –
“डीएम सर नहीं, डीएम इस मैम और उनके पिता।”
कमरे में खामोशी।
अंकिता बोलीं –
“बाबा ने कभी मुझे अपना पद आगे करके काम नहीं करने दिया। आज भी वे चुपचाप पैसे निकालने आए, किसी से नहीं कहा कि मैं कौन हूं।”
बुजुर्ग बोले –
“मैं चाहता था देखूं इस शहर में इंसानियत कितनी बाकी है।”
उन्होंने थैली से एक पुरानी फोटो निकाली –
“यही शाखा उद्घाटन के दिन, 15 साल पहले। तब मैं पंचायत में था।”
स्टाफ की आंखें फैल गईं।
अंत और सीख
अंकिता ने मैनेजर से कहा –
“आपकी पोस्टिंग अबाउट टू ट्रांसफर है। यह घटना आपके रिकॉर्ड में जाएगी।
पर अगले 30 दिन में अगर यहां का व्यवहार बदलता दिखा, तो यह आपके सुधार का प्रमाण भी होगा।”
मैनेजर की आंखें भर आईं –
“मैं कोशिश नहीं, गारंटी देता हूं।”
लड़का मुस्कुराया –
“बाबा, अब दवा ले लेते हैं।”
बुजुर्ग ने उसके सिर पर हाथ फेरा –
“आज मेरी सबसे बड़ी दवा यह थी कि इतनी बारिश में भी कुछ दिल अभी गर्म हैं।”
इंसानियत, इज्जत और बदलाव की ये कहानी
हमें याद दिलाती है –
नियम इंसानियत के लिए हैं,
और हर बदलाव की शुरुआत एक छोटी सी सीख से होती है।
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