बुजुर्ग को गरीब समझकर बैंक से धक्के देकर निकाला, लेकिन जब सच सामने आया
कहानी: विक्रम मल्होत्रा और बैंक का बदलाव
सुबह के 8:00 बजे थे, शहर में हल्की ठंडक और सूरज की किरणें धीरे-धीरे फैल रही थीं। लोग अपने काम-धंधों के लिए निकल रहे थे, कहीं चाय की दुकानों पर चर्चा थी, कहीं दफ्तरों में भीड़। संजीवनी बैंक में भी रोज की तरह ग्राहकों की भीड़ लगने लगी थी।
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इसी भीड़ में एक वृद्ध व्यक्ति बैंक में प्रवेश करता है। लगभग 70 साल की उम्र, सफेद झुर्रियों वाला चेहरा, पुरानी चप्पलें, मटमैला कुर्ता-पायजामा। उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें थीं, लेकिन आंखों में एक चमक थी। वह धीरे-धीरे मैनेजर के केबिन की ओर बढ़ता है।
“साहब, मुझे अपने खाते से पैसे निकालने हैं,” वृद्ध ने कहा। चपरासी झुंझलाकर बोला, “बाबा, लाइन में लगो।” वृद्ध ने विनम्रता से कहा, “बेटा, तबियत ठीक नहीं है, ज्यादा देर खड़ा नहीं रह सकता।” चपरासी ने तिरस्कार से देखा, “यहां कोई स्पेशल ट्रीटमेंट नहीं मिलता।”
मैनेजर ने ऊंची आवाज में पूछा, “कौन है ये?” “साहब, पैसे निकालने आया है, लेकिन लाइन में नहीं लगा।” मैनेजर ने गुस्से में कहा, “बैंक के नियम हैं, लाइन में लगो, नहीं तो बाहर निकलो।”
वृद्ध व्यक्ति बोला, “मैं यहां का पुराना ग्राहक हूं, मेरे लाखों रुपये जमा हैं।” कर्मचारियों और ग्राहकों ने उसकी ओर तिरस्कार से देखा। एक अमीर आदमी आगे आया, “भिखारी टाइप लोग भी अब बैंक में बिना लाइन के काम करवाना चाहते हैं!”
वृद्ध की आंखों में आंसू आ गए, “क्या इंसान की कीमत उसके कपड़ों से होती है?”
मैनेजर ने ठहाका लगाया, “ड्रामा बंद करो बाबा, भागो यहां से!” गार्ड ने वृद्ध को धक्के देकर बाहर निकाल दिया।
वृद्ध ने खुद को संभाला, अब उसकी आंखों में गुस्सा था। उसने जेब से फोन निकाला और बोला, “नियाल, तुरंत बैंक पहुंचो, पूरा स्टाफ लाइन में खड़ा हो।”
किसी को अंदाजा नहीं था कि यह साधारण सा वृद्ध, विक्रम मल्होत्रा है—शहर का सबसे बड़ा उद्योगपति, वही जिसके निवेश से बैंक चलता है।
कुछ मिनटों में बैंक के बाहर काले चमचमाते वाहन आ गए। रीजनल मैनेजर और अन्य अधिकारी पहुंचे। बैंक का माहौल बदल गया। रीजनल मैनेजर ने मैनेजर को डांटा, “तुम्हें पता है, किसे बेइज्जत किया? वही इस बैंक का सबसे बड़ा निवेशक है!”
मैनेजर का चेहरा सफेद पड़ गया। तभी विक्रम मल्होत्रा बैंक में दाखिल हुए, उनके साथ कानूनी सलाहकार, व्यापारिक सहयोगी और पुलिस अधिकारी भी थे।
विक्रम मल्होत्रा ने सख्त आवाज में कहा, “गरीब आदमी को बैंक से धक्के देकर बाहर निकालना तुम्हारे बैंक का नियम है?” मैनेजर घबराया, “हमें लगा आप गरीब हैं…” “तो गरीब को अपमानित करना सही है?” विक्रम मल्होत्रा बोले, “अगर मैं सच में गरीब होता तो क्या यही सलूक होता?”
अब विक्रम मल्होत्रा ने ऐलान किया, “आज से मेरी सारी फंडिंग इस बैंक से वापस ली जाती है।”
बैंक में अफरातफरी मच गई। अगले दिन ग्राहकों की भीड़ लग गई, सब अपना पैसा निकालने लगे। बैंक संकट में आ गया। बैंक के अधिकारी विक्रम मल्होत्रा के घर पहुंचे, माफी मांगी।
विक्रम मल्होत्रा बोले, “अब जब बैंक डूबने वाला है, तब मेरी अहमियत समझी? अगर यही किसी गरीब के साथ हुआ होता, तब?”
अधिकारियों ने कसम खाई कि अब से ऐसा नहीं होगा। विक्रम मल्होत्रा ने शर्तें रखीं:
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गरीब या आम ग्राहकों से बुरा व्यवहार करने वाले कर्मचारी को तुरंत नौकरी से निकाला जाएगा।
हर शाखा में शिकायत पेटी लगेगी, शिकायत पर जांच होगी।
बैंक का मुख्य उद्देश्य गरीबों और छोटे व्यापारियों को आर्थिक रूप से मजबूत करना होगा।
अगले ही दिन बैंक में बड़े बदलाव हुए। पुराने बदतमीज स्टाफ को बाहर किया गया, हेल्प डेस्क लगी, गरीबों और बुजुर्गों के लिए अलग काउंटर बने। विक्रम मल्होत्रा ने पूरे शहर में छोटे व्यापारियों के लिए कम ब्याज पर लोन योजना शुरू की।
अब बैंक सिर्फ अमीरों का नहीं, गरीबों का भी था। स्टाफ मुस्कुराकर ग्राहकों से बात करता। शहर में एक नई सीख फैली—कभी किसी को उसके कपड़ों या हालात से मत आंकिए। इंसानियत सबसे ऊपर है।
सीख:
जो गरीब है, वह कमजोर नहीं। सम्मान सबका अधिकार है।
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