“वो बुजुर्ग और वीआईपी गेट”

सर्दी की सुबह थी। सरकारी गेट के बाहर हलचल थी – बड़े नेताओं की गाड़ियाँ, पुलिसवाले, मीडिया, और हर कोई किसी वीआईपी के स्वागत की तैयारी में। इसी भीड़ में एक दुबला-पतला बुजुर्ग, लाठी के सहारे, पुराने खादी के कपड़े पहने, फटी चप्पल में, कांपते हाथों में एक पीला लिफाफा लिए उस वीआईपी गेट की ओर बढ़ रहा था।

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लोग उसे देखकर मुस्कुराए, कुछ ने तिरस्कार से नजरें फेर लीं। एक सिक्योरिटी गार्ड ने रोकते हुए कहा,
“रुको बाबा, इधर नहीं। वीआईपी गेट है यह। तुम्हारे जैसे लोग पीछे से जाओ।”

बुजुर्ग ने सिर उठाकर गार्ड को देखा, कुछ कहने की कोशिश की, लेकिन दूसरा जवान हँसते हुए बोला,
“रहने दो यार, ये रोज़ आते हैं, भीख माँगने वाले समझते हैं वीआईपी मीटिंग में घुसेंगे।”

भीड़ में कोई हँसा, कोई तिरस्कार से देखा। बुजुर्ग चुपचाप किनारे जाकर खड़े हो गए। उनकी आँखों में शिकायत नहीं थी, लेकिन एक सन्नाटा था जो आत्मा तक झकझोर दे।

तभी सायरन बजा, कैमरे ऑन हुए, राज्यपाल की गाड़ी आई। गवर्नर साहब ने हाथ जोड़कर अभिवादन किया, लेकिन उनकी नजरें सीधे उस बुजुर्ग पर ठहर गईं। भीड़ चीरते हुए गवर्नर बुजुर्ग के पास पहुँचे, उन्हें गले लगा लिया। सब हैरान थे – ये बुजुर्ग कौन हैं?

गवर्नर ने मंच पर जाकर बताया –
“अगर ये न होते तो मैं आज गवर्नर नहीं होता। यही मेरे हिंदी और नैतिक शिक्षा के शिक्षक रहे हैं – श्री देवकी नंदन जी। जब मैं स्कूल छोड़ने वाला था, इन्होंने मुझे पढ़ाया, अपनी तनख्वाह से मेरी फीस भरी। आज जो हूँ, इन्हीं की वजह से हूँ।”

पूरा पंडाल तालियों से गूंज उठा। गवर्नर ने घोषणा की –
“श्री देवकी नंदन जी को राज्य शिक्षक सम्मान और जीवन गौरव पुरस्कार मिलेगा। उनके नाम पर एक स्कूल भी होगा।”

मंच पर बुलाए गए देवकी नंदन जी बोले –
“मैंने कभी सम्मान की उम्मीद नहीं की। बस यही चाहा कि मेरे विद्यार्थी अच्छे इंसान बनें। आज एक विद्यार्थी ने मुझे यह दिन दिखाया, इससे बड़ा पुरस्कार मेरे लिए कुछ नहीं।”

सिक्योरिटी गार्ड ने माफी माँगी। बुजुर्ग ने मुस्कुराकर कहा,
“मुझे माफी नहीं चाहिए, तमीज चाहिए। किसी को कपड़ों से मत परखो, इंसान की इज्जत उसकी जुबान और व्यवहार में होती है।”

उस दिन की घटना देशभर में वायरल हो गई। लोग भावुक हुए – असली हीरो वही हैं, जिन्होंने निस्वार्थ प्रेम से जीवन बदला। राज्य सरकार ने “गुरु सम्मान दिवस” मनाने का फैसला किया, हर साल देवकी नंदन जी का भाषण विद्यार्थियों को सुनाया जाएगा।

गवर्नर ने अपने स्कूल समारोह में कहा –
“हम कितने भी बड़े बन जाएं, अगर अपने गुरु को भूल गए तो ऊँचाई बेकार है। कभी किसी को उसके कपड़ों या खामोशी से मत परखो, हो सकता है वही इंसान तुम्हारे जीवन की सबसे बड़ी सीख लेकर आया हो।”

कहानी का संदेश

असली इज्जत पद या कपड़ों से नहीं, कर्म और व्यवहार से मिलती है।
शिक्षक का योगदान जीवनभर याद रखना चाहिए।
हर व्यक्ति की पहचान उसके स्वभाव और निस्वार्थ सेवा से होती है।

क्या आपने कभी किसी ऐसे व्यक्ति को देखा है, जिसकी असली पहचान भीड़ में छुपी रह जाती है?
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