बूढ़ी मां को अकेली ट्रेन में छोड़कर भाग गया बेटा, अगले दिन जो हुआ, जानकर उसके होश उड़ गए!
राजस्थान के एक छोटे से गांव में एक विधवा मां सावित्री देवी अपने इकलौते बेटे अर्जुन के साथ रहती थी। पति का देहांत बहुत पहले हो गया था, जब अर्जुन केवल छह साल का था। उस दिन के बाद से ही सावित्री देवी ने अपनी सारी जिंदगी बेटे की परवरिश में लगा दी। वह दूसरों के घरों में काम करती, खेतों में मजदूरी करती, ताकि अर्जुन को अच्छा खाना, कपड़ा और शिक्षा मिल सके। सावित्री पढ़ी-लिखी नहीं थी, लेकिन उसका सपना था कि उसका बेटा पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बने। अर्जुन भी मां की मेहनत और संघर्ष को देखता था, और उसने मन ही मन ठान लिया था कि वह एक दिन मां का सपना जरूर पूरा करेगा।
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अर्जुन पढ़ाई में बहुत होशियार था। गांव के स्कूल में हमेशा अव्वल आता। उसकी मेहनत और मां की दुआओं का फल यह हुआ कि उसने इंजीनियरिंग की परीक्षा पास कर ली और उसे दिल्ली की एक बड़ी यूनिवर्सिटी में दाखिला मिल गया। मां ने अपनी सारी जमा-पूंजी, कुछ पुराने गहने और एक छोटा सा खेत बेचकर अर्जुन को दिल्ली भेज दिया। जाते वक्त मां ने सिर्फ इतना कहा, “बेटा, तू बड़ा आदमी बन जा, लेकिन कभी अपनी मां को मत भूलना।” अर्जुन की आंखों में आंसू थे, लेकिन उसने सिर हिलाकर मां को वचन दिया।
दिल्ली की चकाचौंध, ऊंची इमारतें, तेज रफ्तार जिंदगी और नए दोस्त—अर्जुन की दुनिया अब पूरी तरह बदल चुकी थी। वह पढ़ाई के साथ-साथ एक पार्ट-टाइम जॉब भी करने लगा, जिससे अपनी जरूरतें खुद पूरी कर सके। चार साल में अर्जुन ने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली और उसे एक मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छी सैलरी पर नौकरी मिल गई। अब अर्जुन के पास सब कुछ था—पैसे, गाड़ी, फ्लैट और एक मॉडर्न लाइफस्टाइल। लेकिन धीरे-धीरे वह मां के फोन उठाना बंद करने लगा, त्योहारों पर गांव जाना छोड़ दिया, और मां की चिट्ठियों का जवाब भी नहीं देता था। सावित्री देवी हर रोज दरवाजे की ओर देखती रहती, सोचती कि बेटा आज आएगा, लेकिन हर बार इंतजार अधूरा रह जाता।
एक दिन अर्जुन ने अपने ऑफिस में काम करने वाली एक लड़की सिमी से शादी कर ली। सिमी एक शहरी, महत्वाकांक्षी और फैशन-प्रिय लड़की थी। उसे गांव की सादगी या पारिवारिक मूल्य समझ नहीं आते थे। जब अर्जुन ने मां को शहर बुलाया तो सिमी को यह बात बिल्कुल पसंद नहीं आई। वह चाहती थी कि वे अपने तरीके से स्वतंत्र जीवन जिएं। कुछ दिनों तक सावित्री देवी फ्लैट के एक छोटे से कमरे में चुपचाप रहीं। उन्हें ना तो शहर की चहल-पहल समझ आती थी, ना बहू का व्यवहार। बहू की तानों और बेटे की बेरुखी ने उन्हें तोड़ दिया। एक दिन बहू ने साफ कह दिया, “मम्मीजी, यह शहर आपके लिए नहीं है। आप गांव लौट जाइए, वहां आपकी उम्र के लोग हैं, पूजा-पाठ है, मंदिर है… यहां आप क्या करेंगी?” अर्जुन खामोश था, लेकिन उसका मौन ही सहमति थी।
अगले ही दिन अर्जुन ने मां के लिए ट्रेन का टिकट बुक करवाया और स्टेशन तक छोड़ने आया। सावित्री देवी की आंखों में आंसू थे लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा। उन्होंने बेटे का हाथ पकड़ा और बस इतना कहा, “खुश रहो बेटा, लेकिन एक बात याद रखना—मां की दुआओं से बढ़कर कोई दौलत नहीं होती।” अर्जुन ने सिर झुकाकर मां को ट्रेन में बैठाया और बिना पीछे देखे लौट गया।
समय बीतता गया। अर्जुन की जिंदगी में सब कुछ सही चल रहा था। ऊंची सैलरी, प्रमोशन, पार्टियों में जाना और लग्जरी लाइफ जीना उसकी दिनचर्या बन गई थी। लेकिन अचानक एक दिन अर्जुन को ऑफिस में हार्ट अटैक आया और उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। डॉक्टरों ने कहा कि अगर समय रहते ऑपरेशन नहीं हुआ, तो जान जा सकती है। अर्जुन के पास पैसे तो थे, लेकिन उस समय उसे सिम्पैथी, अपनापन और हिम्मत देने वाला कोई नहीं था। सिमी अपने दोस्तों के साथ छुट्टियों पर थी, और जब उसे खबर दी गई तो उसने कहा कि वह बिज़ी है और लौटने में समय लगेगा।
अर्जुन अकेला, लाचार और अस्पताल के बिस्तर पर पड़ा हुआ था। तभी नर्स ने आकर कहा, “आपकी मां मिलने आई हैं।” अर्जुन चौंक गया। जैसे ही मां ने कमरे में प्रवेश किया, अर्जुन की आंखों से आंसू बहने लगे। मां ने बेटे का माथा चूमा, हाथ पकड़कर बोलीं, “मैं जानती थी, तुझे मेरी जरूरत एक दिन जरूर पड़ेगी। बेटा, मां कभी नाराज़ नहीं होती, वह तो बस इंतजार करती है।” अर्जुन फूट-फूट कर रो पड़ा और मां के पैरों में गिर पड़ा। “मां, मुझे माफ कर दो, मैं बहुत गलत था। मैंने तुम्हारा दिल दुखाया।” सावित्री देवी ने कहा, “बस इतना समझ ले बेटा, दौलत और शोहरत से इंसान बड़ा नहीं बनता, बल्कि मां की सेवा और प्यार से बनता है।”
ऑपरेशन सफल रहा। अर्जुन ने अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद सबसे पहले मां के लिए एक बड़ा सा कमरा बनवाया, जहां वह पूजा कर सकें, गांव की बातें कर सकें और सुकून से रह सकें। सिमी को भी अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने सावित्री देवी से माफी मांगी। घर का माहौल बदल गया। अब वह घर केवल एक फ्लैट नहीं था, बल्कि एक मंदिर बन गया था—मां के आशीर्वाद और बेटे के पश्चाताप से पवित्र।
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