बेटी की खुशी के लिए माँ-बाप मेले देखने आए, लेकिन अगले ही पल जो हुआ.. सब थम गया!

10 साल का इंतजार – एक पिता की जीत

अरविंद मेहरा, मुंबई का एक सफल कारोबारी, अपनी प्यारी 5 साल की बेटी आरुषि के बिना अधूरी जिंदगी जी रहा था। 10 साल पहले, एक मेले की भीड़ में आरुषि अचानक गायब हो गई थी। पुलिस, पोस्टर, रातों की बेचैनी – सब कोशिशें बेकार रहीं। अरविंद और उसकी पत्नी कविता की दुनिया उजड़ गई। हर रात अरविंद अपनी बेटी की तस्वीर सीने से लगाकर सोता, उम्मीद की लौ कभी बुझने नहीं दी।

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एक दिन, अंधेरी स्टेशन पर अरविंद की नजर एक चाय बेचती लड़की पर पड़ी। वही मासूम चेहरा, वही गले का लॉकेट, वही निशान। दिल ने कह दिया – यही मेरी आरुषि है! उसने पास जाकर बात की, लेकिन लड़की ने खुद को “सिया” बताया और डर के मारे दूर चली गई। अरविंद समझ गया – बेटी किसी के चंगुल में है।

अरविंद ने अपने पुलिस अधिकारी दोस्त विक्रम की मदद ली। जांच में पता चला कि सिया को कुछ लोग स्टेशन के पीछे बने गोदाम में कैद रखते हैं। एक रात पुलिस ने छापा मारा, अपराधियों को पकड़ा और रस्सियों से बंधी आरुषि को आज़ाद कराया। बरसों बाद पिता-बेटी का मिलन हुआ – आँसू, गले लगना, और अधूरी रातें एक आलिंगन में पूरी हो गईं।

पूछताछ में सच सामने आया – आरुषि को अरविंद के पुराने दुश्मन करण मल्होत्रा ने पैसे के लालच में किडनैप करवाया था। पुलिस ने करण को गिरफ्तार किया। अरविंद की दुनिया फिर से रोशन हो गई। बेटी की मुस्कान लौट आई, कविता की दुआ पूरी हुई।

यही कहानी बताती है – वक्त कितना ही बेरहम क्यों न हो, पिता का दिल उम्मीद नहीं छोड़ता। अरविंद ने ठान लिया – अब वह हर उस बच्चे के लिए लड़ेगा जो ऐसे दरिंदों के जाल में फंसे हैं।

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