बैंक मैनेजर ने बुजुर्ग को बाहर निकाला | लेकिन जब सच्चाई सामने आई तो पैरों तले ज़मीन खिसक गई!

सुबह के 11 बजे थे जब एक बुजुर्ग व्यक्ति, रघुनाथ प्रसाद, साधारण कपड़ों में हाथ में एक पुराना लिफाफा लेकर एक बड़े बैंक में दाखिल हुए। जैसे ही वे बैंक के अंदर कदम रखते, वहां मौजूद अमीर ग्राहक और ऊंचे पदों पर बैठे कर्मचारी उनकी ओर घूरने लगे। वे सब सोचने लगे, “यह भिखारी यहां क्या कर रहा है? इस बैंक में इसका अकाउंट कैसे हो सकता है?”

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रघुनाथ प्रसाद ने किसी की बातों पर ध्यान नहीं दिया और धीरे-धीरे कस्टमर सर्विस काउंटर की ओर बढ़े, जहां नेहा नाम की एक महिला कर्मचारी बैठी थी। उन्होंने विनम्रता से कहा, “बेटी, मेरे अकाउंट में कुछ समस्या आ रही है, कृपया इसे देख लो।” नेहा उनकी साधारण वेशभूषा देखकर घबरा गई और बोली, “बाबा, मुझे नहीं लगता आपका अकाउंट इस बैंक में होगा।”

रघुनाथ मुस्कुराते हुए बोले, “एक बार तो देख लो, शायद हो सकता है।” नेहा ने अनमने ढंग से उनका लिफाफा लिया और कहा, “ठीक है बाबा, लेकिन इसमें थोड़ा समय लगेगा, आपको इंतजार करना होगा।”

बैंक के बाकी ग्राहक और कर्मचारी उनके बारे में तरह-तरह की बातें करने लगे, कुछ तो उन्हें भिखारी तक कहने लगे। रघुनाथ प्रसाद सब सुनते रहे लेकिन चुप रहे। वहीं, रोहन नाम का एक जूनियर कर्मचारी जो छोटे-मोटे काम करता था, यह सब देखकर दुखी हुआ। वह पास जाकर बोला, “बाबा, आपको क्या काम है?” रघुनाथ ने कहा, “बेटा, मुझे बैंक मैनेजर से मिलना है, कुछ जरूरी बात करनी है।”

रोहन तुरंत बैंक मैनेजर अमित वर्मा के केबिन गया और कहा, “सर, एक बुजुर्ग व्यक्ति आपसे मिलना चाहते हैं।” मैनेजर ने बिना सुने चिड़कर कहा, “ऐसे लोगों के लिए मेरे पास टाइम नहीं है। बिठा दो, थोड़ी देर में खुद चले जाएंगे।”

रघुनाथ प्रसाद एक घंटे तक वेटिंग एरिया में बैठे रहे, लेकिन उनका धैर्य जवाब देने लगा। वे उठे और मैनेजर के केबिन की ओर बढ़े। मैनेजर ने उन्हें दरवाजे पर ही रोकते हुए असभ्य लहजे में कहा, “हां बाबा, बताओ क्या काम है?”

रघुनाथ ने शांत लहजे में कहा, “बेटा, मेरे अकाउंट में कुछ समस्या आ रही है, क्या तुम इसे देख सकते हो?” मैनेजर बिना देखे बोला, “बाबा, जिनके अकाउंट में पैसे नहीं होते, उनके साथ ऐसा होता है। आपने पैसे जमा नहीं किए होंगे, इसलिए आपका अकाउंट बंद हो गया है।”

रघुनाथ ने फिर विनम्रता से कहा, “बेटा, एक बार चेक तो कर लो।” मैनेजर हंसते हुए बोला, “मैं लोगों के चेहरे देखकर बता सकता हूं कि किसके अकाउंट में कितने पैसे हैं।” फिर गुस्से में कहा, “यहां से चले जाओ।”

रघुनाथ प्रसाद ने अपना लिफाफा टेबल पर रखा और बोले, “ठीक है बेटा, लेकिन इसे एक बार जरूर देख लेना।” इसके बाद वे बैंक से चले गए।

रोहन को यह बात ठीक नहीं लगी। उसने लिफाफा उठाकर बैंक के कंप्यूटर में रघुनाथ प्रसाद का अकाउंट चेक किया। जो उसने देखा, उसे देखकर उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। रघुनाथ प्रसाद इस बैंक के सबसे बड़े शेयरहोल्डर थे, जिनके नाम पर 70% शेयर थे। मतलब वे बैंक के असली मालिक थे।

रोहन भागता हुआ बैंक मैनेजर के पास गया और रिपोर्ट उनकी टेबल पर रख दी, लेकिन मैनेजर ने उसे देखने से इनकार कर दिया।

अगले दिन रघुनाथ प्रसाद फिर बैंक आए, इस बार उनके साथ एक सूट-बूट पहना व्यक्ति भी था, जिसके हाथ में फाइल थी। जैसे ही वे बैंक में दाखिल हुए, सभी की नजरें उन पर टिक गईं। बैंक मैनेजर थोड़ा घबराया, लेकिन सोचा कि वह क्या कर सकते हैं।

तभी रघुनाथ प्रसाद ने अपनी असली पहचान उजागर की और कहा, “मैं इस बैंक का 70% शेयरहोल्डर हूं, इसका असली मालिक। और तुम्हें मैनेजर के पद से हटा दिया जा रहा है। तुम्हारी जगह रोहन को नया मैनेजर बनाया जा रहा है।”

मैनेजर बोखला गया और माफी मांगने लगा, लेकिन रघुनाथ प्रसाद ने शांत लहजे में कहा, “माफी उन लोगों को दी जाती है जो अपनी गलती सुधारने के लिए तैयार हों।”

बैंक के सभी लोग हैरान रह गए।

इस कहानी से हमें यह बड़ी सीख मिलती है कि इंसान को उसके कपड़ों या दिखावे से नहीं, उसकी काबिलियत और असली पहचान से परखा जाना चाहिए।

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जय हिंद!