भिखारन लड़की ने भूल चुके बुज़ुर्ग को घर पहुँचाया – 5 घंटे बाद 8 लग्ज़री कारें उसके सामने आ रुकीं!

कहानी: दिया – एक छोटी सी लौ, जो अंधेरे को चीर गई

समुद्र के किनारे बसे एक गरीब मछुआरों के गाँव में बर्फीली बारिश की रात थी। बाजार सुनसान था, लोग अपने घरों में दुबक गए थे। उसी ठंडी रात में, एक दुबली-पतली लड़की—फटे कपड़ों में, नंगे पैर—एक पुरानी दीवार से सटी बैठी थी। उसका नाम था दिया। उसके पास बस एक फटी बोरी थी, जिसमें कुछ प्लास्टिक की बोतलें और पॉलिथीन के टुकड़े थे। दुनिया की तिरस्कार भरी नजरों के बीच, दिया अपनी बची-खुची गर्मी का इस्तेमाल एक अजनबी बूढ़े आदमी को बचाने के लिए कर रही थी।

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वह बूढ़ा आदमी अपनी याददाश्त खो चुका था। बारिश में कांपता हुआ, नंगे पैर, सफेद बालों वाला। दिया ने उसे देखा और अपने दिल में दर्द महसूस किया। उसे अपनी मां की सीख याद आई—”गरीबी पाप नहीं है, बुराई करना पाप है। अगर तुम्हारे पास कुछ नहीं है, तो अपनी अच्छाई को मत खोना।”

दिया ने बूढ़े आदमी को अपनी टूटी-फूटी झोपड़ी में ले लिया। चूल्हे पर बचा-खुचा दलिया गरम किया और उसे खिलाया। बूढ़े की कलाई पर एक चांदी का कड़ा था, जिस पर “रोहन प्रिया पापा से प्यार” खुदा था। दिया समझ गई कि शायद उसके परिवार को ढूंढना संभव है।

बारिश थमने के बाद, दिया ने गांव के पढ़े-लिखे शर्मा जी की मदद ली। शर्मा जी ने कड़े पर लिखा नाम पढ़ा—रोहन, प्रिया। उन्हें याद आया कि कुछ साल पहले एक युवक अपने खोए हुए पिता को ढूंढ रहा था। शर्मा जी ने पुरानी चाय की दुकान के लैंडलाइन से नंबर निकाला और रोहन को फोन किया। रोहन ने सुना कि उसके पिता मिल गए हैं, तो आठ लग्जरी कारों के काफिले के साथ गाँव आ पहुंचा।

गाँव वाले हैरान थे—वो लड़की, जिसे सब बदकिस्मत मानते थे, आज उसकी झोपड़ी के सामने अमीर लोग खड़े थे। रोहन ने अपने पिता को गले लगाया, प्रिया ने दिया को गले लगाया और सबके सामने कहा, “बेटी, तुमने हमारी जिंदगी बदल दी।”

दिया को शहर ले जाया गया। बड़े घर में, नए कपड़े, अच्छा खाना, मगर समाज की नजरें फिर भी बदलती नहीं। स्कूल में उसे तिरस्कार, ईर्ष्या और झूठे आरोपों का सामना करना पड़ा। एक दिन, रिया नाम की लड़की ने उस पर चोरी का आरोप लगाया। लेकिन आदित्य—रोहन का बेटा—ने सच का वीडियो दिखाया, और दिया की बेगुनाही साबित हुई।

धीरे-धीरे दिया ने अपने आत्मविश्वास और करुणा से सबका दिल जीत लिया। स्कूल में भाषण प्रतियोगिता में उसने अपनी कहानी सुनाई—कैसे गरीब होने के बावजूद उसने कभी अपनी अच्छाई नहीं खोई। उसकी आवाज ने सबको छू लिया। उसे राष्ट्रीय विश्वविद्यालय की छात्रवृत्ति मिली और “प्रेरणादायक छात्रा” का पुरस्कार मिला।

दिया ने शहर की चमक-धमक छोड़कर अपने गाँव लौटने का फैसला किया। उसने “आशा की किरण” नामक फाउंडेशन खोला—गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए। वही गाँव, जहां कभी उसे तिरस्कार मिला था, अब उसकी दया और मेहनत से रोशन हो गया।

कमला, जो कभी दिया को सबसे ज्यादा तिरस्कार करती थी, अब अकेली और बीमार थी। दिया ने उसे सहारा दिया—”माफ करना भूलने के लिए नहीं होता, दिल को हल्का करने के लिए होता है।”

गाँव के बच्चे दिया को दीदी कहकर पुकारते, उसके गले लगते। दिया की आँखों में खुशी थी, उसके दिल में शांति। अब वो सिर्फ एक भिखारी लड़की नहीं थी, बल्कि उम्मीद की किरण बन चुकी थी।

कहानी का संदेश:
कोई यह नहीं चुन सकता कि वह कहाँ पैदा हो, लेकिन हम चुन सकते हैं कि कैसे जिएं। दुनिया आपको गिराएगी, लेकिन अपनी दया, करुणा और विश्वास मत खोना। असली रोशनी अपने लिए ही नहीं, बल्कि दूसरों के लिए भी रास्ता दिखाती है।

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