गरीबी, भेदभाव और न्याय की जीत — मासूम आरव की कहानी

कहानी का सार

12 साल का आरव अपनी 10 महीने की छोटी बहन के साथ शहर की सड़क पर भीख मांगता है। माता-पिता की मौत के बाद दोनों बच्चे अकेले हैं। एक दिन उसकी बहन अचानक बीमार हो जाती है। आरव एक अमीर व्यापारी से मदद मांगता है, व्यापारी उसे ₹500 का चेक दे देता है।

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आरव अपनी बहन को गोद में लिए बैंक जाता है, लेकिन वहां के कर्मचारी उसकी गरीबी और फटे कपड़ों को देखकर उसे चोर समझ लेते हैं। बैंक मैनेजर, गार्ड और पुलिस वाले बिना जांच-पड़ताल के उसे अपराधी मान लेते हैं। उसकी बहन की हालत बिगड़ती जा रही थी, लेकिन कोई उसकी बात नहीं सुनता।

इसी बीच, डीएम राधिका शर्मा वहां पहुंचती हैं। वह पूरे मामले को ध्यान से देखती हैं और खुद जांच करती हैं। पता चलता है कि चेक असली है और रकम भी व्यापारी के खाते में है। राधिका शर्मा बैंक कर्मचारियों और पुलिसवालों की लापरवाही और भेदभावपूर्ण रवैये पर सख्त कार्रवाई करती हैं — बैंक मैनेजर को सस्पेंड, गार्ड को नौकरी से निकालना, पुलिसवालों पर विभागीय जांच।

आरव को उसके पैसे मिल जाते हैं और उसकी बहन का इलाज हो जाता है।

सीख और संदेश

न्याय सिर्फ अमीरों के लिए नहीं, गरीबों के लिए भी है।
किसी की हालत, कपड़े या गरीबी देखकर उसे अपराधी मत समझो।
प्रशासन अगर ईमानदार हो तो समाज में बदलाव संभव है।
हर बच्चे को मदद और सम्मान का अधिकार है।
भेदभाव और अन्याय को कभी बर्दाश्त नहीं करना चाहिए।

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मिलते हैं अगली कहानी में।
जय हिंद!