भिखारी बच्ची ने करोड़पति बिजनेस मैन की टांगों का इलाज कैसे किया? – सच्ची इस्लामी नैतिक कहानी

एक भिखारी बच्ची ने करोड़पति बिजनेसमैन की तक़दीर बदल दी – सच्ची प्रेरणादायक इस्लामी कहानी

इमरान नाम का एक व्यक्ति था, जिसे लोग सफलता की पहचान मानते थे। वह देश के सबसे बड़े कारोबारी समूह का मालिक था। उसकी कंपनी की शाखाएं विदेशों तक फैली थीं, दौलत उसके कदमों की धूल थी, शोहरत उसके नाम से जुड़ी थी और ताकत उसके इशारे पर झुकती थी। अखबारों के पहले पन्ने पर उसकी तस्वीरें छपतीं, टीवी चैनल उसकी कामयाबियों के किस्से सुनाते और कारोबारी दुनिया के लोग उसे अपना आदर्श मानते थे।

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लेकिन जिंदगी का एक लम्हा सब कुछ बदल सकता है। एक हवाई सफर के दौरान, इमरान की जिंदगी पलट गई। विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया, कई लोग जान से गए, लेकिन इमरान चमत्कारिक रूप से बच गया। मगर उसकी कमर के नीचे की हड्डियां टूट चुकी थीं। डॉक्टरों ने साफ कह दिया कि अब वह कभी नहीं चल सकेगा। दुनिया के बेहतरीन अस्पतालों में इलाज हुआ, अरबों रुपए खर्च किए, मशहूर डॉक्टर आए, लेकिन सब बेकार। छह महीने गुजर गए, आत्मविश्वास टूट गया। जो कभी हजारों कर्मचारियों का मालिक था, अब व्हीलचेयर पर कैद हो गया। दोस्त, रिश्तेदार सब दूर हो गए, इमरान अपने ही घर की चारदीवारी में कैदी बन गया।

एक दिन इमरान ने सोचा कि शायद माहौल की तब्दीली सुकून दे। वह एक होटल के बाग में बैठ गया। सामने खाने की प्लेट थी, मगर भूख उससे कोसों दूर थी। तभी एक छोटी सी बच्ची, साधारण कपड़ों में, मासूम चेहरे और आत्मविश्वास भरी आंखों के साथ उसके पास आई। उसने इमरान की प्लेट की तरफ इशारा किया और कहा, “यह बचा हुआ खाना मुझे दे दो, मैं तुम्हें चलना सिखाऊंगी।”

इमरान हैरान रह गया। पहले तो उसने सोचा कि बच्ची भूखी है और बहाने से खाना मांग रही है। उसने नोटों की गड्डी निकालकर मेज पर रख दी, मगर बच्ची ने नोटों की तरफ देखा तक नहीं। उसने फिर कहा, “मुझे सिर्फ खाना चाहिए।” इमरान के दिल में हलचल मच गई, पहली बार किसी ने उसकी दौलत को ठुकरा दिया।

इमरान ने प्लेट बच्ची को दे दी। बच्ची ने खाने को बैग में रखा और गंभीरता से कहा, “अब पहला सबक शुरू होगा।” इमरान को लगा ये सब पागलपन है, मगर बच्ची की आंखों में सच्चाई थी। उसका नाम था जोया। इमरान ने उसे घर आने की इजाजत दे दी।

घर पहुंचकर, जोया फर्श पर बैठ गई। उसने नोटबुक मांगी और उसमें अजीबोगरीब लकीरें खींचीं। इमरान को कहा, “एक घंटा इन लकीरों को देखो।” पहले तो इमरान ने मजाक समझा, लेकिन धीरे-धीरे दिमाग में पैटर्न बनने लगे। अगले दिन, जोया ने इमरान को व्हीलचेयर छोड़ जमीन पर आने को कहा। इमरान ने पहली बार अपने हाथों के बल रेंगना शुरू किया। वह गिरा, उठा, फिर कोशिश की। धीरे-धीरे उसके बाजू हरकत करने लगे। कई बार नाकाम हुआ, मगर हर बार उठा। आखिरकार, उसने जमीन पर कुछ कदम तय किए।

अगले दिन, जोया ने उसे खुद खड़े होने को कहा। इमरान ने हिम्मत की, घुटनों के बल उठा, फिर पूरी तरह खड़ा हो गया। उसकी आंखों से आंसू बह निकले। जोया ने कहा, “अगर मकसद वाजे हो तो जिस्म कभी इंकार नहीं करता।”

फिर चलने का सबक आया। इमरान ने कांपते कदमों से चलना शुरू किया। बाग में फव्वारे के तीन चक्कर लगाए। हर कदम मुश्किल था, मगर वह रुका नहीं। अब उसके अंदर डर की जगह यकीन था।

फिर दौड़ने का सबक आया। बाग में रुकावटें थीं, मगर इमरान ने सबको पार किया। उसने खुद को साबित कर दिया कि नामुमकिन को मुमकिन बनाया जा सकता है। अगला कदम था अपने सबसे बड़े डर का सामना करना—वह हेलीकॉप्टर जिसके हादसे ने उसकी जिंदगी बदल दी थी। जोया ने उसे हेलीकॉप्टर में बैठाया, आंखें बंद करने को कहा। इमरान ने तसव्वुर में उड़ान भरी, और जब आंखें खोलीं तो उसका डर खत्म हो चुका था।

जोया ने कहा, “अब तुम्हें बाकी रास्ता खुद तय करना है।” वह मुस्कुराकर चली गई। इमरान ने उसे ढूंढा, मगर वह कहीं नहीं मिली। इमरान ने अपनी दौलत और ताकत अब दूसरों की मदद के लिए लगानी शुरू कर दी। उसने ‘उम्मीद हाउस’ नाम से एक फलाही इदारा बनाया, जहां मायूस, अपाहिज और टूटा हुआ हौसला लेकर लोग आते, और नई जिंदगी पाते।

इमरान अब सिर्फ कारोबारी नहीं, बल्कि एक रहनुमा था। उसकी कहानी मिसाल बन गई। उसने अपनी जिंदगी दूसरों की जिंदगी बनाने में वक्फ कर दी। और जोया? शायद वह अब भी कहीं किसी मायूस इंसान को उम्मीद देने जाती होगी।

सीख:
असल ताकत पैसे में नहीं, यकीन और हौसले में है।
हार मान लेना सबसे बड़ी कमजोरी है।
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