कचौड़ी वाले की इंसानियत: एक भूखे बच्चे की कहानी जिसने बदल दी कई जिंदगियां

लखनऊ की तंग गलियों में बारिश की हल्की बूंदें गिर रही थीं। विवेक, जो रोज़ चौराहे पर अपनी छोटी सी कचौड़ी की रेड़ी लगाता था, दुकान समेटने की तैयारी में था कि उसकी नजर एक 7 साल के कमजोर, भूखे और थके हुए बच्चे पर पड़ी। फटे पुराने कपड़े, गंदे चेहरे और कांपती आवाज़ में वो बच्चा बोला,
“क्या आप मुझे कुछ खिला सकते हैं?”

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विवेक ने बिना एक पल गंवाए गरमागरम कचौड़ी, सब्जी और चटनी निकालकर दी। बच्चा हिचकिचाया, “मेरे पास पैसे नहीं हैं, आप बाद में पैसे तो नहीं मांगेंगे?”
विवेक मुस्कुराया, “नहीं बेटा, इंसानियत के लिए खाना है, पैसे नहीं चाहिए।”

बच्चा खाने लगा, लेकिन उसने एक पुराना लिफाफा भी रेड़ी पर रख दिया। विवेक ने लिफाफा खोला तो उसमें एक तस्वीर थी—एक सुंदर औरत की, जिसकी गोद में वही बच्चा बैठा था।
विवेक ने पूछा, “यह कौन है?”
बच्चे ने आंसू भरी आंखों से कहा, “यह मेरी मां है। वह बहुत दिनों से मुझसे दूर हो गई है। मैं उन्हें ढूंढ रहा हूं।”

बच्चा खाना खत्म कर चुपचाप चला गया, लेकिन लिफाफा भूल गया। विवेक ने उसे संभालकर घर ले आया। उसकी मां और बहन ने तस्वीर देखी। मां बोली, “मुझे यह चेहरा कहीं देखा सा लगता है।”
अगले दिन, विवेक की मां तस्वीर लेकर काम पर गई। अचानक उन्हें याद आया—छह महीने पहले जिस अमीर घर में वे काम करती थीं, वहां एक चुपचाप, उदास औरत रहती थी। वही औरत, वही चेहरा!

विवेक की मां तुरंत उस घर पहुंची और मालकिन से मिलकर तस्वीर दिखाई। मालकिन ने कहा, “हां, यह वही औरत है।”
मां ने उस औरत को देखा—वह गुमसुम, खोई हुई थी, जैसे दुनिया से कट चुकी हो।

उधर, विवेक अपनी रेड़ी पर उस बच्चे का इंतजार करता रहा। शाम को एक बड़ी कार आकर रुकी। उसमें एक बुजुर्ग आदमी उतरे।
“कल तुमने मेरे नाती को खाना खिलाया था। उसने अपनी मां का फोटो तुम्हारे पास भूल गया है,” उन्होंने कहा।

विवेक ने सारी बात बताई, बुजुर्ग आदमी की आंखों में आंसू आ गए।
“मेरी बेटी आशा, कॉलेज में पढ़ती थी। एक लड़के से प्यार हुआ, घर छोड़कर चली गई। कुछ साल बाद पति की मौत हो गई। मानसिक हालत बिगड़ गई, और एक दिन कहीं चली गई। उसका बेटा, मेरा नाती, अपनी मां को ढूंढता रहता है।”

विवेक ने भरोसा दिलाया कि उसकी मां ने शायद उस औरत को देखा है। अगले दिन, उनकी मां ने सब याद कर लिया और पड़ोस से फोन करके खबर दी। रात में वही बड़ी कार मोहल्ले में आई, सब हैरान थे।
बुजुर्ग आदमी, उनका नाती, विवेक, उसकी मां और बहन—सब उस बड़े घर पहुंचे।
दरवाजा खुला, और बच्चा दौड़कर उस औरत से लिपट गया—”मां!”
बुजुर्ग पिता भी रो पड़े। लेकिन आशा, यानी बच्चा की मां, गुमसुम खड़ी रही। उसकी आंखों में पहचान की चमक नहीं थी।

बुजुर्ग आदमी ने विवेक से कहा, “बहुत-बहुत धन्यवाद। तुम्हारी वजह से आज हमें हमारी बेटी और उसके बेटे की झलक मिल सकी। हम इन्हें अपने साथ ले जाएंगे और इलाज कराएंगे।”

कुछ ही दिनों में आशा की हालत सुधरने लगी। बुजुर्ग दंपति ने विवेक को अपने घर बुलाया और कहा, “तुम हमारी बेटी की देखभाल करो, हम तुम्हें अपने बेटे जैसा मानते हैं।” धीरे-धीरे विवेक उस परिवार का हिस्सा बन गया। उसकी बहन की शादी अच्छे से हुई। और अंत में, विवेक और आशा का विवाह भी पूरे सम्मान और धूमधाम से हुआ।

अब वह साधारण कचौड़ी बेचने वाला लड़का एक बड़े घर का दामाद बन चुका था। उसकी मुस्कान में संघर्ष की थकान नहीं, सुकून की चमक थी।

सीख:
एक छोटी सी मदद, एक प्लेट कचौड़ी, किसी की जिंदगी बदल सकती है। और कभी-कभी वही इंसानियत हमारी किस्मत भी बदल देती है।
अगर आपकी जिंदगी में भी कोई भूखा बच्चा आ जाए, तो क्या आप उसे बिना सोचे खिलाएंगे?

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क्योंकि इंसानियत की यह सीख हर किसी तक पहुंचना जरूरी है।