मालिक ने नौकर को चोरी का इलज़ाम लगाकर निकाला था, कई साल बाद वही नौकर फिल्म स्टार बनकर लौटा, फिर जो
कहानी की शुरुआत
गोविंद, सिंह मेंशन का वफादार नौकर, अचानक चोरी के झूठे आरोप में फंस जाता है। हीरा और उसके साथी उसे फंसाते हैं, मालिक ठाकुर हनीफ कुरैशी गुस्से में उसे घर से निकाल देते हैं। गोविंद की सालों की वफादारी, सम्मान और परिवार सब एक झटके में छिन जाता है। बस छोटी अंजलि ही उस पर विश्वास करती है।
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संकट और संघर्ष
शहर में गोविंद को कोई काम नहीं देता, सब उसे चोर समझते हैं। मजबूरी में वह मुंबई चला जाता है, जहां एक ईरानी कैफे में बर्तन धोने का काम मिलता है। ईमानदारी और मेहनत से मालिक प्रभावित होता है। एक दिन किस्मत पलटती है – फिल्मों की शूटिंग में गोविंद को वेटर का छोटा रोल मिलता है। उसकी सच्ची आवाज और दर्द सबका दिल छू लेता है।
सफलता की ओर
निर्देशक मिस्टर कपूर गोविंद की प्रतिभा पहचानते हैं और उसे अपनी फिल्म में अहम रोल देते हैं। गोविंद का नाम बदलकर किशन कुमार रखा जाता है। मेहनत, सीख और संघर्ष के साथ अगले 5 सालों में किशन कुमार हिंदी सिनेमा का सुपरस्टार बन जाता है। उसके पास शोहरत, दौलत, अवार्ड्स – सब कुछ है, लेकिन दिल में बेइज्जती का दाग रह जाता है।
सच का सामना
एक दिन शूटिंग के सिलसिले में किशन कुमार लखनऊ लौटता है। सिंह मेंशन अब खंडहर है, परिवार बर्बाद हो चुका है। उसे पता चलता है कि असली चोर वे नौकर थे जिन्होंने उसे फंसाया था और बाद में सब लूट लिया। ठाकुर साहब अब मंदिर की सीढ़ियों पर भीख मांग रहे हैं। किशन कुमार भावुक होकर उन्हें ढूंढता है, उनके पैरों पर गिरकर माफी मांगता है। दोनों गले लगकर रोते हैं – मालिक और नौकर नहीं, बल्कि पिता और बेटा।
सम्मान की वापसी
किशन कुमार परिवार को होटल में ले जाता है, इलाज करवाता है, अंजलि की पढ़ाई की जिम्मेदारी लेता है, कारोबार फिर से शुरू करवाता है। सिंह मेंशन वापस खरीद लेता है और परिवार को उनकी खोई हुई इज्जत लौटाता है। असली चोरों को सजा दिलवाता है। अब उसका नाम पूरी तरह बेदाग है।
अंतिम संदेश
ठाकुर साहब कहते हैं – “मेरे लिए तुम इंसान के रूप में भगवान हो।” किशन कुमार कहता है – “वफादारी और ईमानदारी ही इंसान की सबसे बड़ी दौलत है।” अंजलि की मुस्कान लौट आती है, परिवार फिर से खुशहाल हो जाता है। गोविंद के दामन से चोर का दाग मिट जाता है, उसकी ईमानदारी का सितारा चमक उठता है।
कहानी का संदेश
इंसान की असली पहचान उसके पद या दौलत से नहीं, बल्कि उसके चरित्र और नियत से होती है। माफ कर देना बदला लेने से बड़ा होता है। वफादारी का कर्ज चुकाकर इंसान और अमीर हो जाता है।
प्रेरणादायक सवाल:
क्या आपको लगता है कि जिंदगी में सच्चाई और वफादारी सबसे बड़ी पूंजी है?
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