मैं तुम्हें 5 लाख रुपए दूंगा, लेकिन इसके बदले में, तुम्हें मेरे साथ होटल चलना होगा , फ़िर जो हुआ वो
कानपुर की ठंडी रात थी। शहर की चमचमाती गाड़ियों और ऊंची-ऊंची इमारतों के बीच एक पुरानी मंदिर की सीढ़ियों पर संध्या बैठी थी। 25 साल की यह लड़की, जिसकी आंखों में कभी सपने जगे करते थे, आज सिर्फ एक गहरी वीरानी और खालीपन लिए थी। दो साल से वह इसी चौराहे पर बैठकर गुजारा कर रही थी, जहां हर मौसम की मार सीधे उसके जिस्म पर पड़ती थी। पेट में भूख थी, पर उम्मीद की एक किरण भी बाकी थी।
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तभी एक काली चमचमाती Audi कार उसके पास रुकी। गाड़ी का पिछला शीशा धीरे-धीरे नीचे उतरा और अंदर बैठे रवि कपूर ने उसे देखा। रवि कपूर, शहर के सबसे बड़े और सफल बिजनेसमैन, जिसकी दुनिया दौलत और शोहरत से भरी थी। उसकी नजरें संध्या के फटे हुए कपड़ों के पार उस दर्द और मायूसी को पढ़ने की कोशिश कर रही थीं, जो संध्या के चेहरे पर ठहरी थी।
संध्या को उसकी यह नजरें असहज कर रही थीं। उसने सोचा, “यह अमीर आदमी मेरा मजाक उड़ाएगा या मुझे यहां से भगाएगा।” लेकिन रवि ने कुछ ऐसा कहा जिसे सुनकर संध्या का दिल दहल उठा। “मैं तुम्हें ₹5 लाख दूंगा,” उसने गंभीर आवाज़ में कहा। संध्या की आंखें खुली की खुली रह गईं। ₹5 लाख! इतनी बड़ी रकम! क्या यह सच हो सकता है?
रवि ने आगे कहा, “लेकिन इसके बदले में तुम्हें मेरे साथ होटल चलना होगा।” यह सुनते ही संध्या का चेहरा शर्म और गुस्से से लाल हो गया। उसकी आंखों में उम्मीद की किरण नफरत के अंधेरे में बदल गई। उसने कहा, “मैं बिकाऊ नहीं हूं। मैं तुम्हारे साथ नहीं चलूंगी।”
रवि ने कहा, “मैं जानता हूं तुम वैसी लड़की नहीं हो। अगर होती तो मैं यह पेशकश कभी नहीं करता। मैं तुम्हें एक नौकरी देना चाहता हूं, एक इज्जत की जिंदगी। यह ₹5 लाख तुम्हारी नई जिंदगी की शुरुआत के लिए हैं। पर यह सब जानने के लिए तुम्हें मेरे साथ चलना होगा। फैसला तुम्हारा है।”
संध्या हैरान थी। यह सब किसी फिल्मी कहानी जैसा लग रहा था। क्या सच में कोई इतना भला हो सकता है? या यह कोई जाल है? उसने रवि की आंखों में झांकने की कोशिश की। वहां गुस्सा या हवस नहीं, बल्कि एक अजीब सी कशमकश और अनकहा दर्द था।
संध्या ने सोचा, “मेरे पास खोने के लिए क्या है? मेरी इज्जत तो शायद उसी दिन मर गई थी जब मुझे पहली बार किसी के आगे हाथ फैलाना पड़ा था। अगर यह आदमी सच बोल रहा है तो यह मेरी जिंदगी का आखिरी मौका है।” उसने हिम्मत जुटाई और कहा, “ठीक है, मैं आपके साथ चलूंगी।”
रवि ने मुस्कुराते हुए अपनी गाड़ी का दरवाजा खोला। संध्या झिझकते हुए उस आलीशान गाड़ी में बैठ गई। गाड़ी शहर की चमचमाती सड़कों पर दौड़ने लगी। संध्या को नहीं पता था कि यह सफर उसे किस मंजिल पर ले जाएगा, पर उसे एहसास था कि यह उसकी आखिरी भिखारी रात है।
गाड़ी द ग्रैंड इंपीरियल होटल के शानदार पोर्च पर रुकी। वर्दी पहने दरबान झुककर सलाम करने लगे। संध्या जब बाहर निकली तो उसकी आंखें चौंधिया गईं। होटल की भव्यता, झूमरों की जगमगाहट, हवा में तैरती अमीरी की महक—सब कुछ उसके लिए एक सपना था। फटे कपड़े और नंगे पैर उसमें एक दाग की तरह लग रहे थे।
रवि ने उसे डरा नहीं, बल्कि कहा, “डरो मत। नजरें झुका कर नहीं उठाकर चलो। आज से तुम्हारी नई जिंदगी शुरू हो रही है।” संध्या ने गहरी सांस ली और उसके पीछे-पीछे चलने लगी।
रवि उसे होटल के सबसे महंगे सूट में ले गया। कमरा बड़ा और शानदार था। उसने चेकबुक से ₹5 लाख का चेक काटकर टेबल पर रख दिया। “यह तुम्हारे पैसे हैं। सुबह बैंक में जमा करवा देना,” रवि ने कहा और कमरे से बाहर चला गया।
अकेली संध्या उस आलीशान कमरे में खड़ी थी। उसने बाथरूम में जाकर गर्म पानी से स्नान किया, मानो वह अपनी आत्मा की सारी धूल धो रही हो। उसने नया कपड़ा पहना और खाना मंगवाया। सालों बाद पहली बार उसे पेट भरकर खाने का सुख मिला।
अगली सुबह रवि उससे मिलने आया। उसने बताया कि उसे उसके लिए एक नौकरी दी जाएगी—रवि के घर की लाइब्रेरी की देखभाल करनी होगी। संध्या को यह सुनकर विश्वास नहीं हुआ। उसने सोचा, “₹5 लाख और इतना आसान काम? यह सब सच हो सकता है?”
रवि का घर बड़ा और खूबसूरत था। संध्या ने लाइब्रेरी की सफाई शुरू की। उसे किताबें पढ़ना बहुत पसंद था, इसलिए वह काम के बीच-बीच में किताबें पढ़ने लगी। रवि उसे पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता।
धीरे-धीरे संध्या घर का हिस्सा बन गई। वह रवि के लिए खाना बनाती, घर की देखभाल करती। रवि बिजनेस में व्यस्त रहता, पर जब भी घर होता, संध्या से बातें करता। वह उसके सपनों के बारे में जानना चाहता।
संध्या ने रवि को अपने भाई रोहन के बारे में बताया, जो उसके सबसे अच्छे दोस्त और सहारा था, लेकिन एक हादसे में खो गया। रवि उसकी बातें सुनता, उसके चेहरे पर एक अजीब पीड़ा छा जाती।
महीने बीतते गए। संध्या के चेहरे पर मायूसी नहीं, बल्कि आत्मविश्वास और खुशहाली दिखने लगी। रवि ने उसके लिए अच्छे कपड़े खरीदे। एक दिन उसने संध्या से पूछा, “क्या तुम आगे पढ़ना चाहोगी?” संध्या ने हिचकिचाते हुए बताया कि उसने 12वीं तक पढ़ाई की है, पर घर की हालत खराब होने की वजह से कॉलेज नहीं जा पाई।
रवि ने कहा, “कल से तुम कॉलेज जाओगी। मैंने तुम्हारा दाखिला करवा दिया है।” संध्या की आंखों में आंसू आ गए। उसने रवि का धन्यवाद किया।
संध्या कॉलेज जाने लगी। वह पढ़ाई में होशियार थी और जल्दी ही लोकप्रिय हो गई। वह घर का काम करती और देर रात तक पढ़ाई करती। रवि उसकी हर जरूरत का ख्याल रखता।
दोनों के बीच दोस्ती का गहरा रिश्ता बन गया। रवि को संध्या की सादगी और मेहनत पसंद आई। वह समझता था कि वह टूटी जरूर है, पर हारी नहीं।
एक शाम संध्या कॉलेज से लौटी तो रवि परेशान था। उसने बताया कि बिजनेस में एक बड़ी डील फिसलने वाली है। संध्या ने सारी फाइलें पढ़ीं और सुझाव दिए। रवि ने उनकी मदद से डील पक्की कर ली।
रवि ने संध्या से अपने दिल की बात कही, “मैं तुमसे प्यार करता हूं। क्या तुम मुझसे शादी करोगी?” संध्या को यकीन नहीं हुआ। उसने कहा, “मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं।” रवि ने कहा, “मुझे दुनिया की परवाह नहीं, मुझे बस तुम्हारी परवाह है।”
दोनों की शादी सादे समारोह में हुई। संध्या को अपनी जिंदगी एक खूबसूरत सपने की तरह लग रही थी। रवि उसे अपने दोस्तों और बिजनेस पार्टनर्स से मिलवाता, सब उसकी तारीफ करते।
एक रात रवि ने संध्या को एक राज बताया—वह बचपन से उसका जानकार था। उसने एक पुरानी फोटो दिखाई जिसमें संध्या, उसका भाई रोहन और रवि साथ थे। रवि ने बताया कि रोहन उसका बचपन का सबसे अच्छा दोस्त था, और वह संध्या को बचपन से जानता था।
संध्या की आंखें नम हो गईं। रवि ने कहा कि जब उसने संध्या को मंदिर की सीढ़ियों पर देखा, तो उसे पहचान लिया था। उसने तय किया था कि वह उसे इस नर्क से बाहर निकालेगा।
संध्या ने रवि का धन्यवाद किया। यह कहानी हमें सिखाती है कि इंसानियत और सच्चे रिश्ते आज भी जिन्दा हैं। एक छोटी सी मदद, एक नेक इरादा किसी की जिंदगी बदल सकता है। नियत साफ हो तो ईश्वर भी फरिश्ते भेज देता है।
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