शादी के दिन दूल्हे वालों ने दुल्हन की बहनों के साथ की छेड़खानी, फिर दुल्हन ने जो किया देख सभी के होश

आत्मसम्मान की दुल्हन – पूनम की कहानी

शादी—यह शब्द सुनते ही हर लड़की की आंखों में सपनों का एक सुंदर संसार बस जाता है। शहनाइयों की गूंज, स्वादिष्ट पकवानों की खुशबू और दो परिवारों के मिलन का सपना… लेकिन क्या हो जब यही सपना एक डरावने सच में बदल जाए?

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लखनऊ के आशियाना मोहल्ले में श्रीवास्तव जी का छोटा सा, लेकिन संस्कारों से भरा घर था। उन्होंने अपनी तीन बेटियों—पूनम, पूजा और आरती—परवरिश और शिक्षा में अपनी पूरी जिंदगी की कमाई लगा दी थी। पूनम सबसे बड़ी थी, पढ़ी-लिखी और आत्मसम्मान वाली लड़की। उसकी शादी कानपुर के एक प्रतिष्ठित वर्मा परिवार के राहुल से तय हुई थी।

शादी का दिन आया। घर में ढोल-नगाड़े, फूलों की सजावट, और हर तरफ खुशी का माहौल था। पूनम सुर्ख लाल जोड़े में, हाथों में मेहंदी लगाए, नए जीवन के सपने देख रही थी। पूजा और आरती अपनी दीदी की शादी में बेहद उत्साहित थीं।

बारात आई। राहुल अपने दोस्तों और भाइयों के साथ शाही अंदाज में आया। लेकिन शादी की रस्मों के दौरान राहुल के दोस्त विक्की और सुमित ने मजाक-मस्ती के नाम पर सारी हदें पार कर दीं। पूजा और आरती के साथ छेड़छाड़, गंदी बातें, और बार-बार उनका अपमान किया गया। पूनम यह सब देख रही थी, लेकिन शादी और परिवार की इज्जत के कारण चुप थी। वह बार-बार राहुल की तरफ देखती, उम्मीद करती कि वह अपने दोस्तों को रोकेगा, लेकिन राहुल तो खुद उनकी हरकतों पर मुस्कुरा रहा था।

फेरों से पहले, जब विक्की और सुमित ने पूजा और आरती को जबरदस्ती पकड़ने और चूमने की कोशिश की, तब पूनम का सब्र टूट गया। राहुल वहां आया, लेकिन उसने अपने दोस्तों को डांटने के बजाय सिर्फ हंसते हुए कहा, “साली आधी घरवाली होती है, छोड़ दो बेचारियों को।” यह सुनकर पूनम के सारे सपने चकनाचूर हो गए।

पूनम ने अपनी बहनों के आंसू पोंछे, गहरी सांस ली और मंडप में जाकर सबके सामने साफ-साफ कहा, “पंडित जी, अब कोई फेरे नहीं होंगे। मैं यह शादी नहीं कर रही हूं।” पूरे मंडप में सन्नाटा छा गया। श्रीवास्तव जी घबराए, लेकिन पूनम ने उन्हें समझाया, “पापा, आज मेरी आंखें खुल गई हैं।”

पूनम ने सबके सामने राहुल और उसके दोस्तों की सारी बदतमीजी बयान की। उसने कहा, “जो इंसान अपनी होने वाली पत्नी की बहनों की इज्जत नहीं कर सकता, वो अपनी पत्नी की क्या करेगा?” उसने शादी से इनकार कर दिया।

श्रीवास्तव जी ने अपनी बेटी के फैसले का समर्थन किया। वर्मा परिवार को शर्मिंदगी झेलनी पड़ी और बारात वापस लौट गई।

सीख और संदेश

यह कहानी हर लड़की, हर परिवार और हर समाज के लिए एक गहरा संदेश छोड़ती है—
आत्मसम्मान किसी भी रिश्ते, किसी भी परंपरा से बढ़कर है।
मजाक और बदतमीजी के बीच फर्क समझना जरूरी है।
अगर कभी ऐसी स्थिति आए, तो चुप मत रहिए, अपनी आवाज उठाइए।
औरत का सम्मान करना हमारी संस्कृति और इंसानियत का पहला पाठ है।

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यह कहानी उन सभी के लिए है, जो अपनी या अपने परिवार की इज्जत के लिए खड़े होने की हिम्मत रखते हैं।