गोपालनगर का साधु: डर के साम्राज्य में न्याय की दस्तक

गोपालनगर का नाम सुनते ही लोग कांप जाते थे। वहां कानून नहीं, दरोगा बलवंत सिंह का राज चलता था। उसकी वर्दी गांव की बेटियों के लिए डर, मां-बाप के लिए चुप्पी, और गरीबों के लिए झूठे मुकदमों का पर्याय थी। हर हफ्ते किसी न किसी की जिंदगी तबाह हो जाती। बलवंत की जीप का सायरन सुनते ही पूरा गांव थरथरा उठता।

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एक साधु की आमद

एक दिन गांव में एक साधु आया—बिल्कुल शांत, बिना शोरशराबे। उसने देखा, कैसे खेत से लौटती बेटियों को दरोगा के गुंडे परेशान करते हैं, कैसे बलवंत का आतंक हवा में घुला है। साधु सबकुछ देखता रहा, सुनता रहा।
फिर एक सुबह, वही साधु थाने पहुंचा। उसकी आवाज गूंजी—
“मैं हूं जिला अधिकारी विजय शर्मा और अब तेरा खेल खत्म!”

थाने, गांव, और पूरी व्यवस्था कांप उठी।
यह कहानी सिर्फ एक दरोगा की नहीं, बल्कि उस न्याय की है जो भेष बदलकर बेटियों की चीखें सुनने आया।

डर का अड्डा

गांव में बेटियां स्कूल जाने से डरती थीं, मां-बाप चुप रहते थे। कोई शिकायत करता तो बलवंत उसे या तो जेल में डाल देता या उसकी बेटी की शादी बूढ़े से करवा देता। खेतों में काम करने वाली औरतों को गुंडे ताका करते। विरोध करने पर ट्रैक्टर ज्त या खेत में आग। पंचायत भी डर के मारे बैठती नहीं थी।
गांव की हंसी दीवारों के अंदर कैद थी, बाहर सिर्फ चुप्पी थी।

विधायक की छतरी

बलवंत के पीछे थी विधायक रघुनाथ पांडे की सियासी छतरी। चुनाव में वोटरों को धमकाना, बूथ कब्जाना, विरोधियों को झूठे केस में फंसाना—सब बलवंत के जिम्मे। बदले में उसे खुली छूट मिलती।

बेटियों की चीख

15 साल की सोनिया कॉलेज जाती थी। रास्ता अब “दरोगा का रास्ता” कहलाता था। एक दिन बलवंत ने रास्ता रोका, सोनिया ने भागने की कोशिश की, भाई अर्जुन ने बचाया, लेकिन शाम को उसे चोरी के केस में जेल भेज दिया गया।
राधा ने शिकायत की, अगले दिन उसके पिता पर शराब का केस बना।
विकास ने बहन की इज्जत के लिए आवाज उठाई—बलवंत ने थाने में गोली मार दी। अखबारों में लिखा गया “नक्सली मारा गया”, लेकिन गांव जानता था सच्चाई।

साधु का भेद खुला

विजय शर्मा ने साधु का भेष अपनाया। गांव के दर्द को महसूस किया। बेटियों की चीखें सुनीं, मांओं की आंखों के आंसू देखे।
एक दिन, साधु ने धोती से पहचान पत्र निकाला—“मैं हूं जिला अधिकारी विजय शर्मा!”
थाने में सन्नाटा छा गया। बलवंत का चेहरा पीला पड़ गया। विजय ने आदेश दिया—
“सीआईडी बुलाओ, थाना सील करो, बलवंत को गिरफ्तार करो।”

न्याय की जीत

आधे घंटे में गाड़ियों की लाइन लग गई। महिला सुरक्षा विभाग, निगरानी शाखा ने छानबीन शुरू की। झूठे केस मिले, मानव तस्करी की साजिश उजागर हुई। बलवंत को हथकड़ी लगी। गांव की सड़कों से उसे ले जाया गया।

नई दरोगा कविता वर्मा आई। जन सुनवाई शुरू हुई। झूठे केस खत्म हुए। बेटियां स्कूल लौटीं, सपने देखने लगीं। माया ने बाल सुरक्षा अभियान शुरू किया। विजय ने पंचायत में कहा—
“मैं इंसान बनकर आया। गांव ने खुद को पा लिया।”

बच्चे पतंग उड़ाने लगे। एक लड़की ने चित्र बनाया—साधु बाबा, नीचे लिखा “हमारे गांव के भगवान”।

बलवंत पर गैंगस्टर एक्ट, पोक्सो और धारा 376 के केस चले। गवाह चुप नहीं थे। गांव की हवा अब डराती नहीं, दुलारती थी।

संदेश

यह कहानी हर उस गांव की है जहां डर जिंदगियां कैद करता है। अगर यह आपके दिल को छू गई, तो शेयर करें। चैनल सब्सक्राइब करें, वीडियो लाइक करें और कमेंट में अपना नाम, शहर, जिला लिखें।
आइए भारत बनाएं जहां बेटियां बिना डर के सपने देखें।

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