ममता की पुकार — एक बेसहारा बच्चे की कहानी

एक महिला सोनिया, जो मल्टीनेशनल कंपनी में काम करती थी, ऑफिस जाते समय उसकी साड़ी का पल्लू एक मासूम 6 साल के बच्चे ने पकड़ लिया। बच्चा बोला — “मां, तुम कहां थी? मुझे बहुत भूख लगी है।”
गार्ड ने बच्चे को भगा दिया, लेकिन सोनिया के मन में उसकी मासूमियत और भूख की बात गूंजती रही।

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सोनिया और उसके पति अमित उत्तर प्रदेश के लखनऊ में रहते थे। शादी को कई साल हो गए थे, लेकिन उनके कोई संतान नहीं थी। गांव में लोग बातें बनाते थे, इसी वजह से वे शहर आ गए थे। सोनिया को कंपनी में नौकरी मिल गई, लेकिन उस बच्चे की याद उसे परेशान करती रही।

तीन दिन बाद सोनिया ने गार्ड से बच्चे के बारे में पूछा। गार्ड ने बताया कि बच्चा रमेश है, उसकी मां इसी कंपनी में काम करती थी, लेकिन गरीबी और पति की शराबखोरी के कारण उसकी मां का निधन हो गया। पिता रमेश की देखभाल नहीं करता, शराबी है, और रमेश भीख मांगकर पेट भरता है।

सोनिया का दिल पसीज गया। गार्ड ने बताया कि रमेश की हालत अब और खराब है, क्योंकि उसका पिता उसे मारकर भाग गया है। पड़ोसी बताते हैं कि रमेश को बेहोशी की हालत में सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

सोनिया और गार्ड अस्पताल गए। वहां रमेश अकेला था, देखभाल करने वाला कोई नहीं। सोनिया ने उसके सिर पर हाथ फेरा, तो रमेश की आंखों से आंसू बह निकले — “मां, तुम आ गई।” सोनिया भी रो पड़ी।
घर जाकर सोनिया ने पति अमित को सब बताया। अमित ने कहा — “हमारे पास वैसे भी बच्चा नहीं है, क्यों न इसे गोद ले लें?” सोनिया भी राजी हो गई।

दोनों ने रमेश का इलाज कराया, उसे अच्छे स्कूल में दाखिला दिलाया, और उसे अपना बेटा बना लिया। धीरे-धीरे रमेश खुश रहने लगा और सोनिया- अमित की जिंदगी में खुशियां लौट आईं।

गांव लौटने पर लोगों ने देखा कि इनके पास बच्चा है, तो सब हैरान रह गए। सोनिया के ऊपर लगे दाग भी मिट गए। दोनों ने सबको यही बताया कि यह उनका ही बेटा है।

सीख और संदेश

ममता सिर्फ जन्म देने से नहीं, अपनाने से भी मिलती है।
हर बच्चे को प्यार और देखभाल का अधिकार है।
कभी-कभी किस्मत हमें ऐसे मोड़ पर ला देती है, जहां हमारी छोटी सी मदद किसी की पूरी दुनिया बदल सकती है।

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मिलते हैं अगली कहानी में।
जय हिंद!