DSP बेटा मोची का भेष बनाकर अपने ही घर पहुंचा, माता-पिता ने पहचानने से किया इंकार..

यह कहानी है डीएसपी आर्यन वर्मा की, जिन्होंने 5 साल पहले बड़े सपनों के साथ घर छोड़ा था और आज मोची के भेष में अपने ही घर लौटे। उनका मकसद था यह देखना कि क्या उनके माता-पिता उन्हें पहचान पाएंगे या नहीं।

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आर्यन के पिता कैलाश वर्मा एक दर्जी थे, जो अपनी छोटी सी दुकान में मेहनत करते थे, जबकि उनकी मां सरला वर्मा एक साधारण गृहिणी थीं। आर्थिक तंगी के बावजूद, मां-बाप का सपना था कि उनका बेटा बड़ा अफसर बने। आर्यन ने बचपन में पिता की दुकान पर सिलाई में मदद की और जूते पॉलिश किए, लेकिन उसके मन में बड़े सपने थे। उसने कड़ी मेहनत की और डीएसपी बन गया।

पांच साल तक आर्यन अपने माता-पिता से नहीं मिल पाया, केवल चिट्ठियों के जरिए अपनी खबर देता रहा। इस दौरान पिता की दुकान बंद हो गई और मां की तबीयत भी बिगड़ गई। जब आर्यन को यह पता चला तो उसने अपनी पहचान छुपाकर मोची के वेश में अपने घर लौटने का फैसला किया।

पुराने फटे कपड़े पहनकर, नकली दाढ़ी लगाकर, और हाथ में जूते पॉलिश करने का सामान लेकर वह अपने घर पहुंचा। घर की हालत बहुत खराब थी—दीवारें जर्जर, दरवाजा कमजोर, और आंगन में टूटा हुआ झूला पड़ा था। उसने दरवाजा खटखटाया और मां सरला वर्मा ने दरवाजा खोला। मां ने उसे पहचाना नहीं, बल्कि कहा कि उनके पास खुद के खाने तक के पैसे नहीं हैं।

आर्यन ने पिता कैलाश वर्मा को देखा, जो कोने में बैठकर सिलाई मशीन चला रहे थे, लेकिन अब उनके हाथ पहले जैसे मजबूत नहीं थे। पिता ने कहा कि पैसे नहीं हैं, लेकिन मेहनत करते देख अच्छा लगा। मां ने थोड़ी देर बाद रोटी और अचार लेकर आईं और आर्यन को दिया।

फिर आर्यन ने अपनी असली पहचान बताई। मां-बाप की आंखों में आंसू आ गए। मां ने उसे गले लगाया और पिता गर्व से बोले, “बेटा, तू हमारी सबसे बड़ी कमाई है।”

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि असली पहचान वर्दी या ओहदे से नहीं, दिल से होती है। रिश्ते खून से नहीं, दिल से बनते हैं।

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