IAS अफसर ने जूते पॉलिश के लिए रोका, बूढ़ा मोची निकला उसका ही बाप… फिर जो हुआ उसने सबको रुला दिया!

शहर की व्यस्त सड़कों पर आईएएस अधिकारी अरुण सिंह अपनी सरकारी गाड़ी में सफर कर रहे थे। एक रेड लाइट पर गाड़ी रुकी और उनकी नजर सड़क किनारे बैठे एक बुजुर्ग मोची पर पड़ी। कमजोर हाथ, झुकी कमर और थकी हुई आंखें उस बूढ़े आदमी की कहानी बयां कर रही थीं। अरुण ने थोड़ी देर तक उस मोची को देखा, मानो उसे कहीं देखा हो। फिर उसकी नजर अपनी चमचमाती, पॉलिश किए हुए जूतों पर पड़ी और एक अनोखा ख्याल उसके मन में आया।

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“ड्राइवर, गाड़ी रोक दो!” अरुण ने आदेश दिया। ड्राइवर और गार्ड हैरान रह गए, लेकिन आदेश था अरुण का। वह धीरे-धीरे उस मोची के पास गया और अपने जूते आगे कर दिए। “बाबा, पॉलिश करोगे?” मोची ने सिर उठाकर उसकी ओर देखा, और अगले ही पल उसके हाथ कांपने लगे। उसकी आंखों में आंसू छलक आए और ब्रश उसके हाथ से गिर पड़ा। “बेटा…” उसकी कांपती आवाज निकली।

आईएएस अधिकारी अरुण की आंखें फटी रह गईं। उसका गला सूख गया, और वह कुछ कह नहीं पाया। “पिताजी?” उसने हिचकिचाते हुए पूछा। क्या एक आईएएस अधिकारी का पिता सड़क पर जूते पॉलिश कर रहा था? क्यों अरुण ने सालों तक अपने माता-पिता की खबर नहीं ली? और आज, जब वह सफलता के शिखर पर था, तो उसकी जिंदगी का सबसे बड़ा सच उसके सामने क्यों आ खड़ा हुआ?

यह कहानी है बिहार के छोटे से गांव सुल्तानपुर के एक गरीब लेकिन मेहनती परिवार की। गिरीश प्रसाद, जो कभी गांव में शिक्षक हुआ करते थे, अब बूढ़े और बीमार थे। उनकी पत्नी लक्ष्मी देवी घर के छोटे-मोटे काम करके गुजारा चलाती थीं। उनका इकलौता बेटा अरुण, जिसे वे अपनी दुनिया समझते थे।

गिरीश प्रसाद ने अपनी पूरी जिंदगी अरुण की पढ़ाई में लगा दी। उन्होंने दिन-रात मेहनत की कि अरुण पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बने। लेकिन अरुण को बचपन से पढ़ाई में दिलचस्पी नहीं थी। वह दोस्तों के साथ खेलकूद में मस्त रहता, स्कूल से भाग जाता और कभी-कभी जुआ खेलने में भी पड़ जाता।

एक दिन गिरीश प्रसाद ने देखा कि अरुण स्कूल के बजाय गांव की चौपाल पर ताश खेल रहा था। वे शांत थे, लेकिन अंदर से टूट चुके थे। उन्होंने कहा, “बेटा, अगर तुझे अपनी जिंदगी से कुछ नहीं चाहिए, तो क्यों सता रहा है?”

अरुण सिर झुकाकर खड़ा रहा। गिरीश प्रसाद ने अपनी बची हुई सारी जमा पूंजी निकालकर अरुण को प्राइवेट स्कूल में दाखिला दिलवाया। लेकिन कुछ महीने बाद स्कूल से नोटिस आया कि फीस नहीं भरी गई है और अरुण कई दिनों से स्कूल नहीं आ रहा है। गिरीश प्रसाद के पैरों तले जमीन खिसक गई।

उन्होंने सख्ती से पूछा, “बेटा, फीस के पैसे कहां गए?” अरुण ने झूठ बोल दिया, “पिताजी, मैंने फीस भर दी थी।” गिरीश प्रसाद ने जाकर सच्चाई जानी और लौटते वक्त उनकी आंखों में गुस्सा और दर्द दोनों थे। उन्होंने कहा, “बेटा, सच बोलना सीखो। मैंने अपनी पूरी जिंदगी तुम्हारे लिए न्योछावर कर दी, और तुमने हमें धोखा दिया।”

अरुण चुप था, लेकिन उसकी आंखों में डर था। गिरीश प्रसाद ने उसे घर से बाहर निकाल दिया, “आज से मेरा तुझसे कोई रिश्ता नहीं। अपनी किस्मत खुद बना।”

लक्ष्मी देवी रोती रहीं, लेकिन गिरीश प्रसाद टस से मस नहीं हुए। अरुण अपने ही माता-पिता से दूर अंधकार में भटकने के लिए मजबूर हो गया। उसने गांव छोड़ दिया और पटना की ओर निकल पड़ा। वहां उसने एक होटल में बर्तन धोने की नौकरी कर ली, लेकिन कुछ ही दिनों में उसका आत्मसम्मान जाग उठा। “क्या मैं पूरी जिंदगी ऐसे ही जिऊंगा?” उसने ठाना कि वह कुछ बड़ा करेगा।

अब वह दिन में काम करता और रात में पटना की पब्लिक लाइब्रेरी में बैठकर पढ़ाई करता। धीरे-धीरे पढ़ाई में अच्छा होने लगा और एक दिन उसने आईएएस बनने का सपना देख लिया। उसने मेहनत के पैसों से किताबें खरीदीं और दिन-रात पढ़ाई शुरू कर दी। पहली बार यूपीएसएससी में असफल हुआ, दूसरी बार भी, लेकिन तीसरी बार उसने बाजी मार ली और आईएएस अधिकारी बन गया।

आज अरुण एक सफल आईएएस अधिकारी था, लेकिन मां-बाप की कमी उसे हमेशा खलती थी। एक दिन जब वह अपनी गाड़ी में ऑफिस से लौट रहा था, उसने सड़क किनारे एक बूढ़े मोची को देखा। उसके अंदर कुछ अजीब सा एहसास हुआ। उसने गाड़ी रोकी, मोची के पास गया और अपने जूते आगे कर दिए। मोची ने सिर उठाया, उसकी आंखों से आंसू बह निकले। अरुण की आंखों में भी आंसू थे। पिता और पुत्र ने एक-दूसरे को देखा और बिना कुछ कहे गले लगा लिया।

अरुण ने पिता से पूछा, “मां कहां हैं?” गिरीश प्रसाद कांपते हुए बोले, “वह बहुत बीमार हैं, बेटा। हमारी हालत खराब हो गई है।”

यह सुनकर अरुण का दिल टूट गया। “चलो पिताजी, अब आप और मां मेरे साथ चलेंगे।” उसने अपने पिता को गाड़ी में बैठाया और घर पहुंचा। मां बिस्तर पर लेटी थी, बेहद कमजोर और बीमार। जब उन्होंने अपने बेटे को देखा, उनकी आंखों से आंसू बह निकले। “बेटा, तू सच में आ गया।”

“हाँ मां, मैं आ गया।” अरुण उनके पैरों में गिर पड़ा और फूट-फूट कर रोने लगा।

अब गिरीश प्रसाद को कभी जूते पॉलिश नहीं करने पड़े। मां को सबसे अच्छे अस्पताल में इलाज मिला। और अरुण, जो कभी एक आवारा लड़का था, आज सबसे ईमानदार और मेहनती आईएएस अधिकारी बन चुका था।

यह कहानी सिर्फ संघर्ष की नहीं, बल्कि मेहनत और प्यार की जीत की मिसाल है। अरुण की कहानी सिखाती है कि मेहनत और आत्म-साक्षात्कार से इंसान अपनी किस्मत खुद लिख सकता है। सपने पूरे होते हैं अगर मेहनत सच्ची हो।