IPS अफसर की गाड़ी रोक कर भीख मांगने लगी बूढ़ी औरत… जब सच सामने आया, पैरों तले जमीन खिसक गई!”
शाम का समय था, आईपीएस अधिकारी अंकित यादव अपनी सरकारी गाड़ी में गश्त पर निकले थे। जैसे ही उनकी गाड़ी सरस्वती मार्ग पर पहुंची, अचानक एक बुजुर्ग महिला लड़खड़ाते हुए गाड़ी के सामने आ गई। ड्राइवर ने तेजी से ब्रेक लगाया और गाड़ी रुक गई। गाड़ी के अंदर बैठे अंकित ने देखा कि गार्ड उस महिला को हटाने जा रहे हैं, पर अंकित ने सख्त आवाज में कहा, “रुको!” और खुद गाड़ी से उतरकर महिला के पास पहुंचे।
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कमजोर, झुकी हुई कमर, चेहरे पर झुर्रियां, फटे हुए कपड़े और कांपते हाथ — महिला कांपती आवाज में बोली, “बेटा, तू आ गया।” अंकित के कदम वहीं थम गए। उसके दिल में एक अजीब सी हलचल हुई। धीरे से उसने पूछा, “मां जी, आप कौन हैं?” बुजुर्ग महिला ने अजीब सी मुस्कान के साथ कहा, “तू कहां चला गया था, मुझे भूल गया?”
अंकित का दिल जोर से धड़कने लगा। वह कुछ बोलने ही वाला था कि महिला लड़खड़ा कर गिरने लगी। अंकित ने तुरंत उन्हें संभाला। ड्राइवर ने पूछा, “गाड़ी में पानी है?” गार्ड दौड़कर पानी की बोतल लेकर आया। अंकित ने महिला को पानी पिलाया। फिर महिला के गले से वही शब्द निकले, “बेटा, तू आ गया।”
अंकित ने उसकी आंखों में झांका और उनमें एक अजीब सा अपनापन महसूस किया। उसने विनम्रता से पूछा, “क्या मैं आपको कहीं छोड़ दूं, मां जी?” महिला ने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया, “बेटा, तू तो मुझे रोज खाना लाकर देता था ना।” अंकित को यकीन हो गया कि महिला का दिमागी संतुलन ठीक नहीं है। उसने गार्ड से कहा, “इन्हें गाड़ी में बैठाओ, मैं इन्हें अस्पताल ले जाऊंगा।” गार्ड ने कहा, “सर, जो कहा वही करूंगा।”
गाड़ी अस्पताल की ओर बढ़ी। महिला अंकित के चेहरे को गौर से देख रही थी, “बेटा, तू बहुत बदल गया है, पर तेरा दिल वही है ना?” उसकी आंखें चमक रही थीं। अंकित का मन अजीब से सवालों में उलझ गया।
यह कहानी है कानपुर के एक छोटे से मोहल्ले की, जहां शिवकुमार यादव मजदूरी करते थे और अपनी पत्नी सरला देवी के साथ चार बच्चों — अंकित, पूजा, मनोज और चिंटू — की परवरिश करते थे। परिवार गरीब था, लेकिन खुशहाल था। अंकित अपने भाई-बहनों के साथ मोहल्ले की गलियों में खेलता, मां के हाथों की बनी रोटी खाकर सोता, और पिता के कंधों पर बैठकर मेले जाता।

लेकिन एक दिन, जब शिवकुमार घर लौट रहे थे, एक तेज रफ्तार ट्रक ने उन्हें टक्कर मार दी। अस्पताल ले जाते हुए उनकी मौत हो गई। यह खबर सरला देवी तक पहुंची तो उनकी दुनिया उजड़ गई। अब उनके कंधों पर चार छोटे बच्चों की जिम्मेदारी थी। मोहल्ले के कुछ लोग मदद करने लगे, लेकिन समय के साथ सब अपनी दुनिया में व्यस्त हो गए।
सरला देवी ने घर चलाने के लिए दूसरों के घर काम करना शुरू किया, लेकिन छह महीने के छोटे चिंटू को घर पर अकेला नहीं छोड़ सकती थी। कभी-कभी वह चिंटू को भी काम पर साथ ले जाती और बाकी बच्चों को घर में बंद कर देती। धीरे-धीरे लोग उन्हें काम से निकालने लगे। घर में खाने को कुछ नहीं था, बच्चे भूख से बिलखते थे, लेकिन सरला कुछ नहीं कर पा रही थी।
रात भर जागकर उसने एक कठिन फैसला लिया — अपने बच्चों को अनाथ आश्रम में छोड़ने का। उसने अंकित, पूजा, मनोज और चिंटू को गोद में उठाया, आंखों में आंसू लिए, और उन्हें स्नेह बाल आश्रय गृह ले गई। दरवाजे पर पहुंचकर उसके कदम ठिठक गए, दिल तेज़ी से धड़क रहा था। बच्चों की मासूम आंखें उससे पूछ रही थीं, “मां, हमें कहां ले जा रही हो?”
सरला फूट-फूट कर रोने लगी, बोली, “मैं इन मासूमों को पालने में असमर्थ हूं, इन्हें अपने आश्रम में रख लीजिए, कम से कम यहां इन्हें भूख से तड़पना नहीं पड़ेगा।” आश्रम के कर्मचारियों ने बच्चों को अंदर बुला लिया। सरला ने एक-एक कर अपने बच्चों को गले लगाया, माथे को चूमा और कहा, “मां तुमसे बहुत प्यार करती है, लेकिन मजबूरी के आगे हार गई।”
अंकित, जो अब थोड़ा बड़ा हो चुका था, मां की आंखों में आंसू देखकर समझ नहीं पा रहा था कि मां उसे क्यों छोड़ रही है। उसने मां का आंचल पकड़कर कहा, “मां, मुझे मत छोड़ो, मैं भूखा रह लूंगा, पर आपके बिना नहीं।” सरला की रूह कांप गई, लेकिन हालात इतने सख्त थे कि उसे मजबूर होकर बच्चों को छोड़ना पड़ा।
अनाथ आश्रम में पहली रात अंकित, पूजा, मनोज और चिंटू एक कोने में बैठे थे, उनकी आंखों में आंसू थे। छोटी पूजा ने रोते हुए पूछा, “भैया, मां हमें लेने आएगी ना?” अंकित ने दिल पर पत्थर रखकर कहा, “हाँ, मां जरूर आएगी,” लेकिन अंदर से वह जानता था कि उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल चुकी थी।
समय बीतता गया। अनाथ आश्रम में रहना आसान नहीं था। सख्त नियम, नया माहौल, और सबसे ज्यादा मां की कमी हर पल खलती थी। लेकिन अंकित ने जल्दी समझ लिया कि अगर उसे आगे बढ़ना है तो पढ़ाई ही उसका सबसे बड़ा हथियार है। वह दिन में पढ़ता और रात में अनाथ आश्रम के छोटे बच्चों की मदद करता। पूजा, मनोज और चिंटू भी धीरे-धीरे नई जिंदगी की आदत डालने लगे।
कुछ साल बाद, एक समृद्ध परिवार ने पूजा को गोद लेने की इच्छा जताई। अंकित को पता चला तो वह दौड़कर पूजा के पास गया, “भैया, मैं आपके बिना नहीं जाऊंगी।” पूजा बिलख पड़ी, लेकिन अंकित ने आंसू छिपाते हुए कहा, “जा बहन, तुझे अच्छी जिंदगी मिलेगी।” मनोज और चिंटू भी अलग-अलग परिवारों के साथ चले गए।
अनाथ आश्रम में अब अंकित अकेला रह गया। हर रात वह खिड़की से बाहर झाँककर आसमान को देखता, जैसे मां और भाई-बहनों को खोज रहा हो। उसने हार नहीं मानी। अखबार बेचना शुरू किया, जूते पॉलिश किए, कारें साफ की, बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया। उसका सपना था आईपीएस बनना।

एक दिन अखबार में उसने यूपीएसएससी परीक्षा में एक गरीब किसान के बेटे के आईपीएस बनने की खबर पढ़ी। उसके दिल में आग जल उठी, “अगर वह कर सकता है तो मैं क्यों नहीं?” अब उसका मकसद यूपीएसएससी पास करना था। महंगी किताबें नहीं थीं, तो वह पब्लिक लाइब्रेरी में घंटों पढ़ता। दिन में काम, रात में पढ़ाई, कई सालों की मेहनत और कड़ी लगन के बाद वह यूपीएससी पास कर गया।
अब वही अंकित, जिसने कभी फुटपाथ पर सोकर रातें बिताई थीं, सरकारी गाड़ी में बैठता था। और किस्मत देखिए, आज उसी गाड़ी के सामने उसकी मां खड़ी थी — उसकी सगी मां, जो सालों पहले उससे बिछड़ गई थी।
जब सरला देवी को इलाज के बाद होश आया, तो अंकित ने धीरे से उनका हाथ पकड़कर कहा, “मां, मैं ही हूं, तुम्हारा बेटा अंकित।” सरला कुछ पल के लिए सन्न रह गईं, फिर उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े। “बेटा, मैंने तुझे छोड़ दिया था, माफ कर दो।” अंकित भी रो रहा था, उसने मां को गले लगाकर कहा, “मां, इसमें माफी की कोई बात नहीं, तुम मजबूर थीं। आज किस्मत ने हमें फिर से मिला दिया।”
अंकित ने अपने भाई-बहनों को भी खोज निकाला। वे अपनी नई जिंदगी में खुश थे। अंकित ने मां से कहा, “मां, वे खुश हैं, हमें उन्हें उनके नए परिवार के साथ ही रहने देना चाहिए।” सरला की आंखों में आंसू थे, लेकिन उन्होंने बात मान ली।
कुछ दिनों बाद अंकित ने शादी की। उसे नेहा नाम की संस्कारी और समझदार लड़की मिली। सरला देवी ने कहा, “बेटा, यही हमारे परिवार के लिए बनी है।” और इस तरह वर्षों के संघर्ष के बाद अंकित ने अपनी मां को पाया, अपने परिवार को फिर से बसाया और अपने सपनों को साकार किया।
अंकित की कहानी सिर्फ संघर्ष की नहीं, बल्कि मेहनत, इरादे और हौसले की मिसाल है। यह सिखाती है कि सच्ची मेहनत से हर मुश्किल पार की जा सकती है। अब वह एक ईमानदार आईपीएस अधिकारी है, और उसकी मां उसके साथ है।
सपने पूरे होते हैं अगर मेहनत सच्ची हो।
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